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शुक्रवार, 29 नवंबर 2013

दो शब्दों के बीच के खालीपन को भरने के लिये

तुम और मैं
दो शब्द भर ही तो हैं
बस इतना ही तो है
हमारा वज़ूद
जो कब शब्दकोष की भीड में
खो जायेंगे
पता भी नहीं चलेगा
फिर भी प्रयासरत रहते हैं
दो शब्दों के बीच के खालीपन को भरने के लिये
जानते हो
ये दो शब्दों के बीच जो खाई होती है ना
उसमें ही सम्पूर्ण दर्शन समाया है
जीवन का, उसकी उपलब्धियों का
सार क्या है खालीपन का
ये खोजना है ?
और खोज के लिये दूरी जरूरी होती है
मैं से तुम तक की
और तुम से मैं तक की
ताकि गर उस सिरे से तुम चलो
और इस सिरे से मैं तो
प्रतिबिम्बित हों आईने में
और भेद मिट जाये खालीपन का
दो शब्दों की दूरी का
क्योंकि शब्द ही तो अक्षर ब्रह्म है
शब्द ही तो प्रणव है
शब्द ही तो ओंकार है
शब्द की तो साकार है
फिर कैसे रह सकता है दरमियाँ कोई परदा खालीपन का………
बस चिन्तन और विश्लेषण की दरकार ही
खोज को पूर्ण करती है जिसका मुडाव अन्दर की तरफ़ होता है
सत्य की तरफ़ होता है ……
और यही खालीपन ही तो सत्य है
क्योंकि सत्य निराकार होता है……तुम और मैं के बीच भी और उनके साथ भी

मंगलवार, 26 नवंबर 2013

मैं स्वयम्भू हूँ


मेरा मैं 
मुझसे बतियाने आया 
अपनी हर अदा बतलाने आया 

मैं 
स्वयम्भू हूँ 
मैं 
अनादि हूँ 
मैं 
शाश्वत हूँ 
हर देश काल में 
न होता खंडित हूँ 
एक अजन्मा बीज 
जो व्याप्त है कण कण में 

मैं 
अहंकार हूँ 
मैं 
विचार हूँ 
मैं 
चेतन हूँ 
स्वयं के शाश्वत होने 
का विचार करता है पोषित 
मेरे अहंकार को 
क्योंकि चेतन भी 
मैं ही हूँ 
विचारों को , बोध को 
सुषुप्ति से जाग्रति की और ले जाना 
यही तो है मेरी चेतनता 
फिर कैसे न हो मुझमे 
सात्विक अहंकार 
मेरे मैं होने में 

जड़ चेतन मेरी ही अवस्था 
ये मेरा ही एक हिस्सा 
ज्ञानबोध चेतना की चेतन अवस्था 
अज्ञानावस्था चेतना की जड़ अवस्था 
मुझसे परे न कोई बोध 
मुझसे परे न कोई और 
मैं ही मैं समाया हर ओर 
दृष्टि बदलते बदलती सृष्टि का 
मैं ही तो आधार हूँ 
तू भी मैं 
मैं भी मैं 
धरती , गगन , जड़ जीव जंतु 
सभी मैं 
फिर कौन है जुदा किससे 
ज़रा करो विचार 
विचार ही ले जाएगा तुम्हें बोधत्त्व की ओर 
और बोध ले आएगा तुममें आधार 
निर्मल मृदु मुस्कान खिलखिलाएगी 
जब मैं की सृष्टि की कली तुम में खिल जायेगी 
फिर खुद से अलग ना पाओगे कुछ 
खुद ही मैं में सिमट जाओगे तब ............

गुरुवार, 21 नवंबर 2013

कोई नयी कसौटी पर कसना होगा


ओ नटवर चितचोर नंदलाला
यूँ रो रो मुझे ना डराना
सब जानूँ तुम्हारा बहाना
कैसे पहले मन को हरते हो
फिर जो तुम्हें चाहे
उससे मुँह फेर लेते हो
और जब कोई उलाहना दे तो
रो -रो जीना दूभर करते हो
लो ना मानोगे श्याम
रो रोकर मोहिनी मत डारो
मैं ना मानूंगी इस बार
तुहारी भोली बातों में
ना आऊंगी इस बार
मैं ना लाड लडाऊँगी इस बार
तुम्हारी रोज- रोज की ठिठोलियाँ
मुझे बहुत भरमाती हैं
कभी पुचकारना
कभी दुत्कारना
कभी मनुहारना
कभी निहारना
कभी मीठी चितवन
बांकी मुस्कन से
घायल कर जाना
ये दांव पेंच पुराने हुए
अब ढूँढो श्याम
कोई नया बहाना
मैंने नहीं तुम्हारी
चतुराई में आना
इस बार ना चलेगा
पुराना बहाना
गर तुमको मुझे है लुभाना
नया रूप धारण करना होगा
कोई नयी कसौटी पर कसना होगा
श्याम तुम्हें भी अबकी मेरा बनना होगा .............


दूसरा भाव :