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शुक्रवार, 29 नवंबर 2013

दो शब्दों के बीच के खालीपन को भरने के लिये

तुम और मैं
दो शब्द भर ही तो हैं
बस इतना ही तो है
हमारा वज़ूद
जो कब शब्दकोष की भीड में
खो जायेंगे
पता भी नहीं चलेगा
फिर भी प्रयासरत रहते हैं
दो शब्दों के बीच के खालीपन को भरने के लिये
जानते हो
ये दो शब्दों के बीच जो खाई होती है ना
उसमें ही सम्पूर्ण दर्शन समाया है
जीवन का, उसकी उपलब्धियों का
सार क्या है खालीपन का
ये खोजना है ?
और खोज के लिये दूरी जरूरी होती है
मैं से तुम तक की
और तुम से मैं तक की
ताकि गर उस सिरे से तुम चलो
और इस सिरे से मैं तो
प्रतिबिम्बित हों आईने में
और भेद मिट जाये खालीपन का
दो शब्दों की दूरी का
क्योंकि शब्द ही तो अक्षर ब्रह्म है
शब्द ही तो प्रणव है
शब्द ही तो ओंकार है
शब्द की तो साकार है
फिर कैसे रह सकता है दरमियाँ कोई परदा खालीपन का………
बस चिन्तन और विश्लेषण की दरकार ही
खोज को पूर्ण करती है जिसका मुडाव अन्दर की तरफ़ होता है
सत्य की तरफ़ होता है ……
और यही खालीपन ही तो सत्य है
क्योंकि सत्य निराकार होता है……तुम और मैं के बीच भी और उनके साथ भी

9 टिप्‍पणियां:

  1. aap ki shabdik bhawna se sahmat hun, kyun ki mai or tum ki khali jagah koi nahi bhar pata hai. ta zindgi.........................

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  2. बहुत ही सूंदर भावपूर्ण रचना .

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  3. बस चिन्तन और विश्लेषण की दरकार ही
    खोज को पूर्ण करती है जिसका मुडाव अन्दर की तरफ़ होता है
    सत्य की तरफ़ होता है …

    ...बहुत गहन चिंतन, बहुत सहजता से अभिव्यक्त..

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  4. गहन अनुभूति लिए बहुत ही सुन्दर रचना...
    :-)

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  5. क्योंकि शब्द ही तो अक्षर ब्रह्म है
    शब्द ही तो प्रणव है
    शब्द ही तो ओंकार है
    शब्द की तो साकार है
    फिर कैसे रह सकता है दरमियाँ कोई परदा खालीपन का…


    तुम और मैं में ही समाया पूरा ब्रह्मांड ...बेहतरीन रचना

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  6. वाकई इन दो शब्दों के बीच सम्पूर्ण जीवन दर्शन समाया है...जिस दिन ये अंतर मिट जाता है...हर तरफ मै ही दिखाई देता है...

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