गाऊँ गुनगुनाऊँ
उन्हें रिझाऊँ
कमली बन जाऊँ
मगर
मन मधुबन उजड़ गया
उनका प्यार मुझसे बिछड़ गया
अब
किस ठौर जाऊँ
किस पानी से सींचूं
जो मन में फिर से
उनके प्रेम की बेल उगाऊँ
मन महोत्सव बने तो
सखी री
मैं भी श्याम गुन गाऊँ
युगों की अविरल प्यास बुझाऊँ
चरण कमल लग जाऊँ
मैं भी श्याम सी हो जाऊँ....