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गुरुवार, 25 अगस्त 2016

मन महोत्सव बने तो

 
 
मन महोत्सव बने तो
गाऊँ गुनगुनाऊँ
उन्हें रिझाऊँ
कमली बन जाऊँ

मगर
मन मधुबन उजड़ गया
उनका प्यार मुझसे बिछड़ गया

अब
किस ठौर जाऊँ
किस पानी से सींचूं
जो मन में फिर से
उनके प्रेम की बेल उगाऊँ

मन महोत्सव बने तो
सखी री
मैं भी श्याम गुन गाऊँ 
युगों की अविरल प्यास बुझाऊँ 
चरण कमल लग जाऊँ
मैं भी श्याम सी हो जाऊँ....

आज जन्मदिन है तुम्हारा


आज जन्मदिन है तुम्हारा
मना रहे हैं सब
अपने अपने ढंग से
जिसके पास जो है
कर रहा है तुम पर न्यौछावर

मगर
वो क्या करे
जिसके पास अपना आप भी न बचा हो
मेरे पास तो बचा ही नहीं कुछ
और जो तुमने दिया है
वो ही तो तुम्हें दे सकती हूँ
विरह की अग्नि से दग्ध
मेरा मन
स्वीकार सको तो स्वीकार लेना कान्हा

नहीं देखी होगी कभी तुमने कोई ऐसी गोपी
नहीं मिली होगी कभी
तोहफे में ऐसी सौगात
वो भी जन्मदिन पर ... है न

मेरे जैसी एक निर्मोही
जो बन रही है कुछ कुछ तुम सी ही
और तुम्हें लाड लड़वाने
माखन मिश्री खाने की आदत ठहरी
क्यूँ स्वीकारोगे मेरी वेदना की रक्तिम श्वांसें

आह ! कृष्ण ......... जाओ जीयो तुम
अपनी ज़िन्दगी
अपनी खुशियाँ
कि
ये पल है तुम्हारा , तुम्हारे चाहने वालों का
और मैं कौन ?

प्रेम की देग में दहकना है मेरी अंतिम नियति
कभी मिलोगे
इस आस पर नहीं गुजरती अब ज़िन्दगी ...

शुक्रवार, 5 अगस्त 2016

पता तो होगा तुम्हें



मन का मरना
मानो निष्प्राण हो जाना
जानते तो हो ही

अब सावन बरसे या भादों
जो मर जाया करते हैं
कितना ही प्राण फूँको
हरे नहीं होते

जब से गए हो तुम
मन प्राण आत्मा रूह
कुछ भी नाम दे लो
रूठा साज सिंगार
वो देह का विदेह हो जाना
वो आत्मा के नर्तन पर
आनंद का पारावार न रहना
जाने किस सूखे की मार पड़ी
ठूंठ हो गयी हर कड़ी

सुना है आज हरियाली तीज है
और तुम झूलोगे हिंडोलों में
हो सके तो इतना करना
एक पींग हमारे नाम की भी भर लेना
शायद
आखिरी सांस सी एक हिचकी आ जाए
और
तुमने याद किया मुझे
अहसास हो जाए

बाकी
मन का क्या है
उसे तो तुमने बिरहा का गीत सुनाया है जब से
सुलग रहा है दावाग्नि सा
चलो सुना दूं तुम्हें एक हिंडोला मैं भी
'हिंडोले पर झूलें नंदलाल श्यामा जू के संग
सखी मेरी झोटे देत रहीं
वो तो रहते सुखधाम में
मुझसे ही बैरन ओट रही'
 
चलो खुश रहो 
हमारा मरना जीना तो चलता ही रहेगा 
एक मेरे न होने से 
तुम्हें फर्क भी क्या पड़ता है 

सिर्फ साँसों का चलना जीना नहीं होता ......पता तो होगा तुम्हें मोहन