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रविवार, 20 नवंबर 2011

कृष्ण लीला ………भाग 24


नयी नवेली दुल्हनो का तो
और भी बुरा हाल है
सास के डर से ना कुछ कह सकती हैं
और श्यामसुन्दर से मिलने को तरसती हैं
एक दिन सास गयी मन्दिर तब सबने ठान लिया
आज तो दर्शन करके रहेंगी
एक चपला गोपी ने राह सुझायी
कैसे दर्शन होंगे बात बतलायी
घर जा सारी नयी नवेलियों ने
जितने मट्के थे सारे फ़ोड दिये
और छुप कर घर मे बैठ गयीं
सास ने जब आकर देखा तो बहुत गरम हुई
ये किसने उत्पात किया है
कैसे ये सब हाल हुआ है
तब बहू ने बतलाया
जो चपला सखी ने था सिखलाया
वो आया था
सास पूछे कौन आया था
बहू कहे वो आया था
सुन सास का पारा चढता जाता था
अरी तू उसका नाम बता कौन आया था
किसने ये हाल किया
तब बहू ने डरते- डरते बतलाया
नन्द का छोरा आया था
सारे माट- मटका फ़ोड गया
और जाते -जाते कह गया
नन्द का छोरा हूँ
जो करना हो कर लेना
इतना सुन तो सास का पारा चढ गया
उसकी इतनी हिम्मत बढती जाती है
तुमसे इतनी बात कह गया
जाओ उसकी माँ को जाकर
उसकी करतूत बता आना
सुन बहू मन ही मन खुश हुई
बन गयी अब तो बात
होगी सो देखी जायेगी
सोच चौराहे पर पहुंच गयी
जहाँ सारे गांव की नयी नवेली
बाट जोहती थीं
कृष्ण दर्शन को तरसती थीं
सब मिल यशोदा के पास पहुँच गयीं
और यशोदा से शिकायत करने लगीं
तुम्हारे छोरा ने जीना हराम किया है
सारे घर के माट- मटका फ़ोड दिया है
वानर सेना साथ लिया है
घर आँगन मे कीच किया है
सुन मैया कहती है
गोपियो क्यों इल्ज़ाम लगाती हो
मेरा लाला तो यहाँ सोया है
जाकर कान्हा को जगाती है
और सबके सामने लाती है
क्यो लाला तुमने ये क्या किया
ये गोपियाँ क्या कहती हैं
तुमने इनके दही माखन के
सब मटका क्यो फ़ोड दिया
तब कान्हा भोली सूरत बना
मैया को सब बतलाते हैं
मैया मैने ना इनका माखन लिया
ना ही मटका फ़ोडा
ये गोपियाँ झूठ बहकाती हैं
तेरे लाला के दर्शन करने को
बहाने बनाती हैं
पर गोपियाँ कहाँ मानने वाली थीं
वो श्यामल सूरत देखने आयी थीं
मीठी वाणी सुनने आयी थीं
इसलिए उलाहने नये बनाती हैं
जिसे सुन कान्हा मैया को बताते हैं
कैसे गोपियाँ चुगली करती हैं
मै ना इनके घरों को जानता हूँ
यमुना किनारे गली राह मे
बरजोरी पकड ले जाती हैं
कोई मेरा मुख चूमा करती है
कोई कपडे खींचा करती है
कोई टोपी उतारा करती है
कोई गाल पर मुक्का मारा करती है
मुझे कितना दर्द होता है
ये ना इनको पता चलता है
कभी मुझसे अपने घर के
बर्तन मंजवाती हैं
कभी सिर मे तेल लगवाती हैं
तरह तरह से सताया करती हैं
मैया देखो मेरे हाथ कितने छोटे हैं
कैसे मटकी उतारूंगा
सब छींको पर रखा करती हैं
कोई नही मिलता इन्हे बस
मेरी ही शिकायत करती हैं
देख मैया कैसे सब मुझे देख रही हैं
इनकी नज़र से बचा लेना
वरना तेरे लाल को इनकी नज़र लग जायेगी
सुन मैया बलैंया लेती है
मीठी मीठी मोहन की बातो मे
सुख का आनन्द लेती है
इनकी नज़र लगे न लगे
इन मीठी बातों पर कहीं
मेरी नज़र ही न लग जाए 
मैया सोचा करती है 
फिर कहीं बिगड ना जाये
मैया कान्हा को समझाती है
लाला ऐसा ना किया करो
गोपियाँ उलाहना देती हैं
शर्म से गर्दन झुक जाती है
तब कान्हा बोल उठे
मैया अब ना किसी
ग्वालिन के घर जाऊंगा
मैया बातो मे आ जाती है
पर दही माखन चुराकर खाना
नही छोडा

इक दिन गोपियो ने सलाह की
माखनचोर को रंगे हाथो
पकडना होगा
और मैया के सम्मुख लाना होगा
तब ही यशोदा मानेगी
इक दिन मनमोहन
माखन चुराकर खाते थे
सब गोपियो ने मिलकर पकड लिया
और यशोदा के पास ले जाने लगीं
पर कान्हा ने एक छल किया
घूंघट मे गोपी को ना पता चला
कहने लगे मेरा हाथ दुखता है
ज़रा दूसरा हाथ पकड लेना
इतना कह उसके पति का हाथ थमा दिया
पर गोपी ना ये भेद जान सकी
जाकर यशोदा से शिकायत की
अरी यशोदा देख तेरा लाला
आज रंगे हाथो पकड कर लायी हूँ
उसे देख यशोदा खिलखिलाकर हंस पडी
ज़रा घूंघट उठा कर देख तो लो
किसे पकड कर लाई हो , बोल पडी
मेरा कान्हा तो घर मे सोता है
और जैसे ही गोपी ने देखा
अपने पति का रूप दिखा
घबरा कर हाथ छोड दिया
सब तुम्हारे कान्हा की लीला है
कह लज्जित हो घर को चली गयी
यशोदा कान्हा से कहने लगी
लाला कितनी बार मना किया
तू इनके घर क्यो जाता है
माखन तो अपने घर मे भी होता है
सुन कान्हा कहने लगे
मैया ये सब झूठी शिकायत करती हैं
मेरी बाँह पकड अपने घर ले जाती हैं
फिर अपने काम करवाती हैं
कभी मुझको नाच नचाती है
अपने बछडे अपने बच्चे
मुझे पकडाती हैं
सुन कान्हा की मीठी बतियाँ
मैया रीझ गयी
और मोहन प्यारे को
गले लगाती है
स्नेह अपना लुटाती है
प्रेम रस बहाती है


क्रमशः ............

गुरुवार, 17 नवंबर 2011

कृष्ण लीला ………भाग 23



मोहन की मीठीभाषा
मैया को नित लुभाती है
कान्हा की मधुर बातो पर
मैया बलि- बलि जाती है
इक दिन मोहन गोपों संग
बलदाऊ संग खेल रहे थे
खेलते खेलते झगडा हो ग्या
और बलराम जी बोल उठे
इसका ना माँ है ना बाप
हार जीत जाने नाहीं
बेकार मे झगडा बढाता है
ये सुन कान्हा रोते - रोते
मात यशोदा से बोल उठे
मैया दाऊ ने दिल दुखा दिया
क्या मोको तूने मोल लियो है
क्या तुम मेरी माँ नही हो
क्या नन्दबाबा मेरे पिता नही
यशोदा गोरी नन्द बाबा गोरे
तुम कैसे भये कारे
या रिस के कारण खेलन जात नाही
अब तुम ही करो निवारण
कान्हा की मीठी बतियाँ सुन
मैया बलिहारी जाती है
गोधन की सौगंध खा
कान्हा को यकीन दिलाती हैं
मै तेरी माता तू मेरा बेटा
कहकर गले लगाती हैं
कान्हा की छवि हर मन को लुभाती है
नित नयी - नयी लीलाये होती है
जो वृज को आनन्दित करती हैं



इक गोपी अपनी व्यथा
दूजी को ऐसे सुनाती है
जिस दिन से देखा नन्दनन्दन को
मेरा जीवन बदल गया
मेरा शरीर और मन श्याममय हो गया
अब उसे ह्र्दय मे बिठा लिया है
और पलको पर ताला लगा दिया है
पर आश्चर्य ना ये कम हुआ
ह्रदय मे चारो ओर प्रकाश हुआ
सुध बुध अपनी भूल गयी
उसकी छवि मे डूब गयी
अब अपना आपा खो गया
पता नही सखी ये क्या हो गया
मै उसमे थी या वो मुझमे था
कुछ भी ना पता चला
लोक - लाज सब भूल चुकी हूँ
उस दिन से सिर उघाडे घूमती हूँ
सास - ननद परेशान हो गयी
झाड - फ़ूंक सारी करवा ली है
पर समझ ना आती बीमारी है
अब उस रस को कोई क्या जानेगा
कोई विरला ही पहचानेगा
और घायल की गति कोई घायल ही जानेगा




दूसरी गोपिका का भी
यही हाल हो गया
जिस दिन से आँगन मे
खेलते देखा है
रूप लावण्य की राशि को
घर से संबंध टूट चुका है
जब भी उनकी तुतलाती वाणी सुनती है
कान सुनने को उत्कंठित हो जाते है
नेत्र राह से प्रेम रस बहने लगता है
दोनो दंतुलियाँ जग रौशन कर जाती हैं
ह्रदयतम सारा मिटाती हैं
कौन ना उस पर रीझेगा
हर बृज गोपी का हाल बुरा है
किसी ना किसी बहाने
गोपियाँ श्यामसुन्दर की राह तकती हैं
माखन खिलाने के रोज
नये बहाने गढती हैं






क्रमशः ..............



गुरुवार, 10 नवंबर 2011

कृष्ण लीला ………भाग 22




इक दिन
बाल गोपालो और बलराम जी संग
कान्हा क्रीडा करते थे
इसी क्रम मे उन्होने
मृद भक्षण किया
जिसे बाल गोपालो ने देख लिया
जाकर यशोदा को बतलाया
और मैया ने कान्हा को धमकाया
जब यशोदा ने क्रोध किया
तब कान्हा ने बोल दिया
मैया मैने माटी नही खायी
ग्वाल बाल झूठ बोल रहे हैं
श्री दामा बोल पडा
दाऊ दादा से चाहे
पूछ लो मैया
इतना सुन दाऊ दादा ने कह दिया
मैया कान्हा ने माटी खायी है
ये सुन कान्हा दाऊ दादा के पास गये
और धीरे से कान मे कहने लगे
अगर ऐसी बात कहोगे तो
मै भी तुम्हारा सच
मैया को बतला दूँगा
दाऊ दादा भांग का गोला खाते है
सब कह दूँगा
इतना सुन बलराम जी घबरा गये
और कहने लगे
मैया मैने देखा नही
सबने कहा तो मैने भी कह दिया
श्री दामा बोले मैया
ये दोनो एक ही डाल के तूम्बडा हैं
इनकी बातो मे ना आना
बस तुम इसका मूँह
खोल के देख लेना
और जैसे ही कान्हा ने
मूँह को खोला है
मैया को उसमे
त्रिलोक का दर्शन हुआ है
उसमे मैया चर अचर
सम्पूर्ण जगत को देख रही है
आकाश, दिशायें , पाताल
द्वीप , समुद्र, पृथ्वी,
सभी के दर्शन कर रही है
देवी देवता यक्ष किन्नर
सभी जीवो के दर्शन कर रही है
उसी मे उसने
बृज क्षेत्र को भी देखा है
और उसमे ही उसने
नन्दालय मे कान्हा का
मूँह खोलते खुद को देखा है
ये देख मैया घबरा गयी
और आँखे बंद कर लीं
मन मे यशोदा सोच रही है
ये तो चराचर विश्व के पालक हैं
मैने त्रिलोकीनाथ को धमकाया है
कैसे अब मैं माफ़ी मांगूँ
मैया मन ही मन सोच रही है
और डर कर आंखे खोल रही है
उन्हे देख कन्हा मुस्काये हैं
और अपनी सारी माया
समेट ली है
जो कुछ  मैया ने देखा
सब विस्मृत कर दिया 
और जैसे ही दोबारा
माँ ने मूँह मे देखा 
वहाँ ना कोई चमत्कार दिखा
भोली माँ इसे मन का
भ्रम समझ बैठी
और प्राणप्यारे को
गले लगा बैठी

मगर माटी खाने की लीला मे
प्रभु ने एक संदेश दिया है


एक भाव से प्रभु विचारते हैं
मुझमे तो  सिर्फ़ सतगुण का ही बसेरा है
और यहाँ धरा पर कुछ
रजोगुण कर्म भी करना होगा
इसलिये कुछ रज का भी
भक्षण करना होगा

संस्कृत मे पृथ्वी का नाम
‘रसा’ भी होता है
श्री कृष्ण ने सोचा
सभी रसो का आनन्द तो ले चुका हूँ
 कुछ ‘ रसा रस’ का भी
आस्वादन करूँ

इक भाव से खडे सोच रहे हैं
मैने पहले विष भक्षण किया
अब मृदा खा उसका उपचार किया

गोपियो का माखन भी खाया है
तो मिट्टी खा मुख साफ़ भी तो करना है

कान्हा के उदर मे
सम्पूर्ण सृष्टि समाहित है
हर कोई बृज रज और गोपियों की रज
पाना चाहता है
ये सोच कान्हा ने
सबकी मनोकामना पूर्ण करने को
मृदा भक्षण किया
और हर प्राणी को
बृज रज से तृप्त किया

क्रमशः -----------

शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

कृष्ण लीला………भाग 21







गोपियाँ रात रात भर
जाग जाग कर
प्रात: की बाट जोहा करतीं
जल्दी जल्दी दधि मथकर
माखन निकाल छींके पर
रखा करतीं
और कान्हा की बाट जोहतीं
कब कान्हा आयेगे
और उसका माखन खायेंगे
उसका जीवन सफ़ल बनायेंगे
और जब दिन बीता जाता था
तब गोपी का मन घबराता था
बार बार दरवाज़े पर जाती थी
श्याम से आस लगाती थी
कब आओगे मोहन प्यारे
इतनी देर कहाँ लगा दी
दासी का घर
पवित्र ना हो पाया है
कहीं यशोदा ने तो ना रोक लिया है
उनके नौ लाख गऊयें है
माखन की क्या कमी होगी
पर मेरे घर तो वो
कृपा करने को आते हैं
ये सोच खुद को तसल्ली देती है
कान्हा तो बृजवासियों को
सुख देने आये थे
गोपियों की लालसा पूर्ण
करने को ही
माखन चुराकर खाते थे
यह कोई चोरी नही थी
वास्तव मे ये तो गोपियों की
पूजा पद्धति थी जिसे
कान्हा बडे प्रेम से स्वीकारते थे
भगवान की इस दिव्य लीला को
कुछ लोग आदर्श विपरीत बताते हैं
पर नही जानते चोरी का
अर्थ होता है क्या
चोरी वो जो किसी की जानकारी
के बिना अन्जाने मे की जाये
मगर यहाँ तो गोपियो की
जानकारी मे , उनके देखते देखते ही
माखन का भोग लगाते हैं
फिर कहाँ ये चोरी हुई
दूसरी बात
चोरी दूसरे की वस्तु की की जाती है
मगर जब सारा संसार ही
कृष्ण का है तो कोई
अपनी चीज़ की चोरी कैसे करे
माखन चोरी तो प्रभु की
दिव्य लीला है
खुद को भक्तो की
प्रेम अधिकता मे
चोर कहाया है
और ऐसे प्रेम का बंधन निभाया है