1
सुनोइश्क नाकामियों का दूजा नाम है
और
कुछ इश्क होते ही असबाब की तरह हैं
जो एक बार चिपटे तो छूटते ही नहीं
फिर चाहे तुमने एकतरफा ही क्यों न की हो मोहब्बत
और कुछ इश्क महज वहम होते हैं तुम्हारा
तुम सुनते हो और हो जाते हो दीवाने
खुदाई इश्क की नस्लें हैं
जिन्हें काठ की घोड़ी पर भी चढ़ाओ
तो भी चाबुक मार पहुँच ही जाती हैं
सुनहरे ख्वाबगाह में
जहाँ नहीं होता कोई खुदा
बस हुंकारे लगाते तुम
करते हो उद्घोष उसके होने का
कि कहीं हो न जाओ निष्कासित
कि हो न जाये छवि ध्वस्त तुम्हारी
सच के पैरहन खोलने के लिए जरूरी है ख्वाब से हकीकत तक का सफ़र
2
खुदा/इश्वर
एक अलहदा मसले की तरह
फेंका जाता रहता है अलग अलग पाले में
जीत किसी तरफ सुनिश्चित नहीं
और हार किसी की होती नहीं
खेल के नियम एकतरफा जो ठहरे
ऐसे में कैसे संभव है कोई न्याय?
उनके बस्ते में खुदा उस किताब की तरह है
जिसे कभी पढ़ा जाता ही नहीं
लेकिन बस्ता है
तो स्कूल है
स्कूल है तो पढ़ाई है
पढ़ाई है तो मुमकिन है एकछत्र राज
इस पढ़ाई के कायदे थोड़े दूजे किस्म के होते हैं
जहाँ योग्यता के लिए जरूरी है
सिर्फ एक ही सूरत
तुम कितना रख सकते हो खुदा रुपी गेंद को अपने पाले में
अब खुदा कहो या ईश्वर
फर्क नहीं पड़ेगा
वो जानते हैं ईश्वर हो या खुदा गवाही नहीं दिया करते
क्योंकि
यहाँ रिवाज़ नहीं है इनके स्वयं प्रगट होने का
यहाँ ईश्वर हो या खुदा
होते नहीं ....बनाए जाते हैं
ये समझ आये उससे पहले जरूरी है
ईश्वर का होना सुनिश्चित करना
फिर उससे मुकम्मल इश्क के अफ़साने गढ़ने में माहिर है पूरी कौम ......
३
जब स्थापित कर दी जाती हैं मान्यताएं
झुठलाने को चाहिए होते हैं पुख्ता सबूत
फिर ईश्वर इस ब्रह्माण्ड का वो सबसे बड़ा झूठ है
जिसे आदिकाल से गाया जा रहा है
तो ऐसे में कैसे संभव है उसके खिलाफ मोर्चाबंदी ?
जरूरी होता है ऐसे में
स्वयं के विवेक का परिक्षण
आँख कान खुला रख
वक्त की कसौटी पर कसना
यूँ ही नहीं किया जा सकता उसे ख़ारिज
सत्य के आलोक में सत्य को खोजने का सफ़र आसान नहीं होता
जीवन दर्शन कहना और पढना बेहद आसान है
मगर
जीवन की कसौटियों पर खुद को कसते हुए
अपने आप को गिरवीं रखते हुए
जाने कितनी बार होते हो दिग्भ्रमित
जाने कितनी बार गिरोगे
फिर फिर कर उसी दलदल में
जहाँ ईश्वर एक ऐसी मान्यता है
एक ऐसी कसौटी है
जिसके पैरोकार तुम्हें खदेड़कर ही दम लेंगे
ऐसे में जरूरी है आत्मनियंत्रण
ऐसे में जरूरी है खुद में विश्वास
किसी भी प्रयोग को यूँ ही नहीं स्वीकारा जाता
यहाँ बोध प्राप्त होने पर
बेशक तुम चाहे न गढ़ो नया ईश्वर
लेकिन
चलन है यहाँ तुम्हें ही ईश्वर बना देने का
तुम्हारे बताये मार्ग पर चलने का कोई चलन नहीं
मगर ईश्वर बनाने का चलन यहाँ बदस्तूर जारी है
इसलिए सावधान
जान लो जब इस सत्य को
नहीं कहीं इस धरती का कोई ईश्वर
नहीं कोई ब्रह्मांड बनाने वाला
नहीं बताना किसी को
बुद्ध स्वयं के लिए बनना ......जहान के लिए नहीं
४
कितना आसान है
ईश्वर बना लेना
उसे पूज लेना
उसके नाम पर घरबार छोड़ देना
उसे ही धंधा बना लेना
बैठे बैठाए मिल जाता है सारे जहान का सुख
बैठे बिठाए बन जाते हो तुम परम भक्त
और मुफ्त में बन जाती हैं तुम्हारी और तुम्हारे चमत्कारों की अनगिनत कहानियां
तुम नहीं खड़े कर सकते प्रश्न उसके होने पर
कर दिए जाओगे ख़ारिज
फिर चाहे उसके नाम पर तुम्हारा ही दोहन क्यों न हो
फिर चाहे अबलाओं और बच्चियों को
उसके मंदिर में ही क्यों न बलात्कृत किया जाए
अब नहीं प्रगट होता वो
जो द्रौपदी का चीर बढ़ा देता है
जो नरसी भगत की हुंडी भर देता है
जो प्रहलाद को हर मुश्किल से बचा लेता है
जब भी उठाओगे तुम ये प्रश्न
ईशनिंदा के जुर्म में हो जाओगे गुनहगार
संभव है हो जाओ क़त्ल
ओशो या सुकरात की तरह
धंधेबाज नहीं चाहते आँख पर बंधी पट्टियों को खोलना
यदि खोल देंगे तो कैसे संभव है
उनकी बिछाई शतरंज पर मोहरों का विद्रोह
तुम मोहरे हो जान जाओगे जिस दिन
उसी दिन हो जायेगी बगावत ......जानते हैं वो
इसलिए
जानते हैं वो
कैसे खेला जाता है इस शतरंज के खेल को
जहाँ धर्म वो अफीम है
जिसके नाम पर किये गए हर गुनाह को माफ़ कर दिया जाता है
५
ईश्वर है या नहीं
आज के दौर में प्रश्न ही नहीं बचा
वो है
सिद्ध किया जा चुका है इस तरह
कि नकार के लिए
तुम्हें बनाने पड़ेंगे नए ग्रन्थ
सिद्ध करना पड़ेगा वैज्ञानिक पद्धति से
मगर विज्ञान और धर्म में छत्तीस का आंकड़ा है
जानते हो न ........
हम वो लोग हैं
जो जिसे ईश्वर मान लेते हैं न
उसके सौ गुनाह भी माफ़ कर देते हैं
उसकी कमियों को नहीं
उसके गुणों को ही देखा करते हैं
फिर चाहे वो अपनी गर्भवती पत्नी को ही बिना किसी गुनाह के त्याग दे
फिर चाहे वो प्रेम किसी से करे
और जीवन अनगिनत पत्नियों संग गुजारे
फिर चाहे वो खुद को सर्वेसर्वा सिद्ध करने के लिए
महाभारत क्यों न करवा दे
फिर चाहे उसका विश्वास इतना ही खंडित क्यों न हो
कि अगर पत्नी ने दूजी का वेश भी धारण कर लिया तो उसका त्याग कर दे
फिर चाहे अपनी जीत के लिए किसी की पत्नी की अस्मत ही क्यों न लूट ले
फिर चाहे वो किसी को आगे बढ़ता न देख सके
और बामन रूप धर उसका सब लूट ले
हम सबको दरकिनार कर सकते हैं
क्योंकि मान चुके हैं उसे अपना खुदा
जहाँ उसके दोष भी उसके गुणों में परिवर्तित कर दिए जाते हैं
अगले पिछले जन्मों का वास्ता देकर
नयी कहानियां गढ़कर ....
कहानियां गढ़
बना देते हैं हम एक नया धर्म
अपना धर्म
और शुरू हो जाता है एक नया कारोबार
बन जाता है एक नया ईश्वर
यदि उठाओगे सवाल उसके अस्तित्व पर
तो प्रतिप्रश्न किया जाएगा
तुम्हें ही ठोक दिया जाएगा
वो था है वो है और वो रहेगा का ढोल कितना ही जोर से बजाया जाए
जानते हैं वो
इस ढोल की चमड़ी कितनी मोटी है
फाड़ना तो छोडो
किसी औजार से काटना भी चाहोगे तो नहीं काट पाओगे
ये खून में पैबस्त वो चरस है
जिसकी गिरफ्त में हैं सम्पूर्ण मानवता
तुम खींच सकते हो सिर्फ अपने लिए अपनी बनायीं अपनी एक लकीर
दुनिया बदलने का ख्वाब देखना छोड़ दो
ये दुनिया डर के शिकारे पर ही चला करती है
और ईश्वर/धर्म से बड़ा इस दुनिया में दूसरा कोई डर नहीं......मृत्यु भी नहीं
६
ईश्वर एक बिजूका है
जिसके डर से उड़ जाते हैं
तुम्हारी आशंकाओं के पंछी
जिसके होने मात्र की सम्भावना से
हो जाते हो तुम सहज
जिसे तुमने देखा नहीं उसे सहज स्वीकार लेते हो
जिसे तुम आँखों से देख रहे हो
उसे नकारते हो
क्योंकि
तुम जानते ही नहीं सच और झूठ के पलड़ों में संतुलन का काँटा कहाँ है
तुम मानने वाली प्रजाति हो
तुम मान लोगे उसके अस्तित्व को
तुम मान लोगे अपने कर्मों का फल
अगले पिछले जन्मों का
यदि कितना भी तकलीफ में हों तुम
लेकिन नहीं मानोगे उसकी सत्ता का न होना
फिर चाहे कोई प्यासा तड़प तड़प कर दम ही क्यों न तोड़ दे
फिर चाहे किसी की सारी दुनिया ही क्यों न उजड़ जाए
और वो
तुम्हारे ईश्वर से
गुहार लगाते लगाते मर ही क्यों न जाए
मगर उसे दया नहीं आएगी
होगा तो आएगी न .....कहोगे जब भी, नकारे जाओगे
उनके लिए कहना आसान होगा
उसका न्याय है ये
या कर्मों का फल
और तुम जो उम्र भर उसके नाम की माला जपते रहे
उसके लिए तुमने अपनों से भी मुंह मोड़ लिया हो
उसके लिए तुमने जग से भी नाता तोड़ लिया हो
तब भी तुम सताए जाते रहे हों
तब भी चाहे तुम बीमारियों का घर क्यों न बन गए हों
तब भी तुम्हारा पग पग पर अपमान होता रहा हो
वो नहीं आएगा ......होगा तो आता कितना ही कहो
वो नहीं स्वीकारेंगे तुम्हारी दलील
क्योंकि
यहाँ आंखन देखी पर यकीन नहीं
यहाँ कानों सुनी और पढ़ी पर ही यकीन किया जाता है
यहाँ पोथियों से ही खुदा को स्थापित किया गया है
आँखों देखा सत्य हलक से नीचे नहीं उतरा करता है
ऐसे में कैसे अपने ज्ञान की गंगा पहाड़ चढाओगे?
ये वो अंधे हैं
जिनके आगे यदि इनका खुदा भी आ जाए तो उसका विश्वास नहीं करेंगे
फिर सोचो तुम क्या हो ?
तुम्हारी सोच क्या है?
तुम्हारी हस्ती क्या है?
७
यहाँ कहानियां बनाने की खुली छूट है
और राधा कृष्ण एक आसान टारगेट
अब कोई उनमें प्रेम देखे या वासना
सबका अपना दृष्टिकोण
मगर
धर्माचार्यों और भक्तों की मण्डली
दे देती है उसे भी भक्ति का नाम
जब राधा के अंग प्रत्यंगों का वर्णन
खूब चाव के साथ वर्णित किया जाता है
जिसे गोपनीय विषय कह सबके आगे न बखान किया जाता है
जहाँ दोनों के मध्य रति प्रसंग भी बयां किये जाते हैं
लेकिन उन्हें भी भक्ति और प्रेम का दिव्य रूप बताया जाता है
आप प्रश्न नहीं उठा सकते
यदि उठाएंगे
तो आपमें आपके समर्पण भाव में कमी है कह, कर दिया जायेगा निष्कासित
प्रश्न उठता है
आखिर ये कैसा धर्म है
जहाँ प्रिया प्रीतम कह
उनमें वासना का खेल दर्शाया जाता है
उस पर जवाब उनका आपको लाजवाब कर जाएगा
जब ये कहा जायेगा
उन्हें फलाने भक्त ने प्रगट किया है
उनकी गोद में खेले हैं
या उन्होंने भावों में साक्षात् दर्शन किये हैं
या उन्होंने जो देखा वही लिखा है
जबकि खेल तो ये सिर्फ भावों का होता है
अब जाकी रही भावना जैसे प्रभु मूरत देखी तिन तैसी
इन्हीं पर फिट बैठता है
जहाँ किसी कारणवश गृहत्याग कर भी दिया हो
तो भी मन की वासनाएं न खत्म हुआ करती हैं
और वही इन रूपों में भी देखा करती हैं
क्योंकि कहने वाला है तो आखिर इंसान ही न
तो कैसे संभव है वो वासना से मुक्त हो जाए
लेकिन जब भक्त और भगवान् की बात आएगी
आप की हर दलील थोथी सिद्ध की जायेगी
वहां तो बस उसे महान भक्त ही सिद्ध किया जाएगा
रो रोकर उसका ही गुणगान किया जाएगा
लेकिन तुम्हारा किया एक प्रश्न
उसका उत्तर ही नहीं दिया जाएगा
यदि वो भगवान् है तो उसमें वासना क्यों?
यदि वो भक्त है तो उसकी दृष्टि उन अंगों पर क्यों?
यदि वो भक्त है तो कल्पना में भी वासना का दर्शन क्यों?
इन प्रश्नों का न कहीं उत्तर मिलेगा
क्योंकि
कोई ईश्वर हो या उसका भक्त हो तो उत्तर मिले
कसौटियां आपके लिए होती हैं ......धर्म का व्यापार करने वालों के लिए नहीं
८
कसौटियां ज़िन्दगी की हो सकती हैं
कसौटियां मौत की भी हो सकती हैं
लेकिन जिस दिन कसोगे ईश्वर को किसी कसौटी पर
धर्म के पैरोकार सेंक देंगे तुम्हें ही उलटे तवे पर
उनके ईश्वर ने कहा
आत्मा अजर अमर है
आत्मा मरती नहीं, शरीर मरता है
और शरीर ही जन्म लिया करता है
आपने मान लिया
क्या की कोशिश जानने की
आखिर ये आत्मा होती कैसी है?
क्या किसी ने देखी है?
जब शरीर ही मरता और जन्मता है
तो उसमें आत्मा का क्या रोल?
और यदि आत्मा नहीं मरती या जन्मती
तो फिर कैसे अगले शरीर में पहुँच जाती है
और उसके दुःख सुख भोगती है?
जीवनी शक्ति से ये शरीर चलता है
जो न किसी आत्मा द्वारा संचालित होता है
मगर आत्मा और परमात्मा को जोड़
जो गणित रचा गया उससे न कोई निकल पाया
एक ऐसी व्यूहरचना जिसे न कोई भेद पाया
जबकि नश्वरता ही इस शरीर का मुख्य गुण है
जन्मेगा तो मरेगा भी
जैसे प्रकृति में पेड़ पौधे जीव जंतु
पेड़ों पर पत्तियाँ भी अपनी उम्र पा झड़ जाती हैं
ऐसा ही मानव जीवन होता है
फिर कैसे उसे आत्मा से जोड़ा जा सकता है?
सीधे गणित को उलझाना ही उनका मकसद होता है
यूँ धर्म का व्यापार रंग भरता है
धंधेबाजों की जेबें गरम करता है
तुम सोचो कैसे सिद्ध करोगे आत्मा और परमात्मा का न होना?