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शनिवार, 24 जनवरी 2015

माँ शारदे



विद्या की अधिष्ठात्री का आज करूँ आह्वान 
बैठो सबकी बुद्धि में करो निर्मल मन प्राण 

कलमकार की कलम सदा चलती रहे निर्बाध 
शब्द शब्द में झलके तुम्हारी महिमा अपार 

पीली सरसों सा खिल उठे हर मन 
पावन ऋतु बसंत सा हो हर आँगन 

कोयल की कुह कुह हो और पिया का संग 
राधा श्याम मयी हो अब हर प्रेमी का मन 

आओ करें सब मिलकर माँ शारदे को कोटि कोटि नमन 
बसंत पंचमी की शुभकामनाओं से खिले उठे  हर मन 


बुधवार, 21 जनवरी 2015

अतः सुबह होने को है ...........

घुटन चुप्पी की जब तोड़ने लगे 
शब्द भाव विचार ख्याल से 
जब तुम खाली होने लगो 

एक शून्य जब बनने लगे 
और उस वृत्त में जब तुम घिरने लगो 

न कोई दिशा हो न कोई खोज 
एक निर्वात में जब जीने लगो 

अंतर्घट की उथल पुथल ख़त्म हो जाये 
बस शून्य और समाधि के मध्य ही कहीं 
खुद को अवस्थित पाओ 

समझ लेना 
घनघोर अन्धकार सूचक है प्रकाश का 

अतः सुबह होने को है ...........

शनिवार, 17 जनवरी 2015

शब्द एक अर्थ दो

"मैं " शब्द एक अर्थ दो 
एक अर्थ मे " मैं " अहम को पोषित करता है 
तो दूजे में स्वंय की खोज करता है 
बस फ़र्क है तो सिर्फ़ उसके अर्थों में , 
उसे समझने में 
उसे जानने में 
और जिस दिन ये पर्दा हटता है 
जिस दिन द्वैत की चादर हटती है 
और मन की , आत्मा की खिडकी खुलती है 
वहाँ ना कोई " मैं " रहता है 
ना अहंकारी " मैं"  और ना सात्विक " मैं " 
सब आत्मविलास ही लगता है 
और जो इस " मैं " का सौन्दर्य होता है 
जो इस " मैं " की गहराई होती है 
वहाँ सिर्फ़ और सिर्फ़ आनन्दानुभूति ही होती है
जरूरत है तो बस अहम से पोषित " मैं " पर पुनर्चिन्तन करने की 






गुरुवार, 1 जनवरी 2015

जब भी निहारना हो खुद को





जब भी निहारना हो खुद को 
मेरे मन दर्पण में  
अक्स देख लेना 
खुद से कुछ
इस तरह मिल लेना 
बस यहीं तक है मेरा अधिकार 
और तुम्हारा इंतज़ार 

जरूरत नहीं तुम्हें 
कोई शुभ लग्न तिथि मुहूर्त या वार देखने की 
मेरे ह्रदय कमल खुला है 
चारों पहर आठों याम 

प्रेम भक्ति के भावों से भरे घर में 
स्वागत है तुम्हारा  
ओ कान्हा
२०१५ में मेरे घर आना 

नववर्ष मंगलमय हो कान्हा !!!