पिछली बार आपने पढा कि प्रभु मधुबन मे कदम्ब के नीचे आँख बंद किये अधरों पर वेणु धरे मधुर तान छेड रहे हैं जिसे सुनकर गोपियाँ बौरा जाती है और जो जिस हाल मे होती है उसी मे दौडी आती है ………अब उससे आगे पढिये…………
जब प्रभु ने आँखें खोलीं
गोपियों को अपने सम्मुख पाया
प्रभु ने गोपियों का स्वागत किया
आओ आओ गोपियों
तुम्हारा स्वागत है
कहो कैसे आना हुआ
जैसे ही बोला
गोपियों के अरमानों पर तो
जैसे पाला पड़ गया
जैसे कोई आपको घर बुलाकर पूछे
कहो क्यों आये हो
तो इससे बढ़कर उसका
और क्या अपमान होगा
इधर प्रभु अपनी रौ में बोले जाते थे
अच्छा अच्छा तुमने
ये शरद पूर्णिमा की रात्रि नहीं देखी
वो ही देखने आई हो ----देखो देखो
अच्छा तुमने ये यमुना का
कल कल करता निनाद नहीं सुना
सुनो सुनो
अच्छा तुमने ये रंग बिरंगे
पुष्पों से लदे वन की शोभा नहीं देखी
अच्छा अब तो तुमने सब देख लिया ना
अब अपने अपने घर जाओ
तुम्हारे घरवाले राह देखते होंगे
अकेली स्त्री का रात को घर से निकलना ठीक नहीं
तुम्हें लोकनिंदा का तो
डर रखना चाहिए था
जब प्रभु ने बहुत उंच नीच समझाई
मगर गोपियाँ तो सिर्फ
अश्रुजल बहाती रहीं
निगाह नीची किये
अंगूठे के नाखून से
जमीन कुरेदती रहीं
तब प्रभु बोले
मैं इतनी देर से बोले जाता हूँ
कुछ तुमको सुनाई भी देता है
या तुम सारी गूंगी हो गयी हो
और ये बताओ तुम
अंगूठे के नाखून से
ये क्या कर रही हो?
इतना सुन बाकी गोपियाँ तो खामोश रहीं
मगर एक चंचल चपल
गोपी बोल पड़ी
दिखता नहीं क्या
गड्ढा कर रही हैं
प्रभु ने पूछा ,"क्यों"
बोली, कभी तो गड्ढा होगा
उसी में हम सब दब मरेंगी
क्योंकि तुझ जैसे
निर्दयी से पाला जो पड़ गया है
एक तो पहले आवाज़ देकर बुलाते हो
और अब हमें ऊंची ऊंची
ज्ञान की बातें सुनाते हो
हम तो अपने पति , बच्चे
भाई बांधव , घर परिवार
सब छोड़कर आई हैं
अपना सर्वस्व समर्पण तुम्हें किया है
और अब तुम्हीं हमें
दुत्कारते हो
तो बताओ अब हम कहाँ जायें
वापस जा नहीं सकतीं
और तुम स्वीकारते नहीं
तो इसी गड्ढे में ही दब मरेंगी
इतना सुन प्रभु बोले
गोपियों मै तुम्हारे भले की बतलाता हूँ
अपने पति की आज्ञा में
चलना ही पत्नी का परमधरम होता है
पति चाहे जैसा हो उसकी
सेवा सुश्रुषा करना ही उसको शोभा देता है
ऐसे अर्धरात्रि में पर पुरुष के पास जाना
कुलीन स्त्रियों को ना भाता है
मैं तुम्हें एक ऐसे जोड़े
के बारे में बतलाता हूँ
पतिव्रत धर्म की महिमा समझाता हूँ
एक पति पत्नी का जोड़ा
रोज हवन करता था
और नियम से गुजर बसर करता था
एक दिन वो आँगन में
गेहूं बिन रही थी
तभी पति लकड़ियाँ काट कर आया
और पत्नी के घुटने पर
सिर रख कर लेट गया
तभी उसको गहरी नींद ने दबोच लिया
इधर उनका ढाई वर्ष का पुत्र
आँगन में खेल रहा था
वहीँ पास में
अग्निकुंड जल रहा था
बच्चा खेलते खेलते
हवनकुंड पर चढ़ गया
इधर माँ का ध्यान जैसे ही
बच्चे पर गया
वो उठकर बचाने को आतुर हुई
तभी देखा पतिदेव सो रहे हैं
अगर इन्हें जगाकर उठती हूँ
तो पत्नीधर्म खंडित होता है
और नहीं उठती तो
मेरा पुत्र हवनकुंड की भेंट चढ़ता है
बेटे तो और मिल जायेंगे
मगर पति ना रहा तो कहाँ जाऊंगी
सोच वो अश्रु बहाने लगी
तभी दो बूंद अश्रुओं को
पतिदेव के मुख पर गिर पड़ीं
पति एकदम उठा और बोला ---क्या हुआ ?
मगर क्या हुआ वो तो ना उसने जवाब दिया
बल्कि हाय मेरा लाल हाय मेरा लाल
कहती दौड़ पड़ी
तब तक बच्चे ने
हवनकुंड में
छलांग लगा दी थी
जैसे ही हवनकुंड की तरफ गयी
देखा कि बच्चा अग्निदेव के
हाथों में खेल रहा है
पतिव्रता स्त्री के बच्चे को
मैं कैसे जला सकता हूँ माँ
तुम्हारा पुत्र जीवित सकुशल है
कह उनका पुत्र उन्हें दिया
इतना कह प्रभु ने बतलाया
देखो पतिव्रत धर्म की
कितनी भारी महिमा है
जिसके आगे मृत्यु भी शीश नवाती है
देवता भी हार मान जाते हैं
ये पतिव्रत धर्म की महिमा न्यारी है
इतना कह प्रभु चुप हुए
ये सुन एक चपला सी
गोपी बोल उठी
पंडित जी महाराज
आपने कथा सुनाई
क्या हम भी एक कथा सुना सकते हैं
सुन कान्हा बोले , सबको बोलने का अधिकार है
तुम भी जो चाहे कह सकती हो
तुमसे भी ज्यादा
पतिव्रत धर्म को मानने वाला
जोड़ा हमारे पास है
वो ऐसी पतिव्रता नारी थी
जो पति के उठने से पहले उठ जाती
उसको नहलाने के बाद नहाती
उसे भोजन कराने के बाद
स्वयं खाती
उसके सोने के बाद ही खुद सोती
अर्थात हर कार्य
पति के बाद ही करती
एक बार कार्यवश
उसके पति को विदेश जाना पड़ा
सुन वो उदास हुई
कैसे अब मैं रहूँगी
अपनी व्यथा पतिदेव को कही
तब उसके पति ने
अपना एक फोटो उसे दिया
तुम अपनी सारी क्रियाएं
इस फोटो के साथ किया करना
इसी को मेरा प्रतिरूप मान लेना
ये आश्वासन दे पति
विदेश चला गया
अब वो फोटो को ही
सब कुछ मानने लगी
हर क्रिया उसी के साथ करने लगी
उसे सुलाकर खुद सोती
उसे भोग लगाकर खुद खाती
बरसों यूँ ही बीत गए
एक दिन आया दीपावली का त्यौहार
उसने बनाये तरह तरह के पकवान
जैसे भी भोग लगाने बैठी
वैसे ही विदेश गया पति
भी आ पहुँचा
और उसने दरवाज़ा खटखटा दिया
देवी दरवाज़ा खोलो
देवी दरवाज़ा खोली
इतना कह गोपी पूछ बैठी
कहो पंडित जी महाराज
अब वो नारी क्या करे
उस फोटो वाले को भोग लगाये
या जो दरवाज़े पर खड़ा है
उसे अन्दर बुलाये
ये सुन भगवान की
बोलती बंद हो गयी
और मंद मंद मुस्कुराने लगे
गोपी बोली यूँ मुस्कुराने से
ना काम चलेगा
मुँह भी खोलना पड़ेगा
इतना सुन कान्हा बोले
इसमें कौन सी बड़ी बात है
अगर बड़ी बात नहीं
तो बताते क्यों नहीं
गोपी ने उच्चारण किया
अरे जब असली का पति
आ ही गया
तो फिर नकली के
फोटो के पति की क्या जरूरत बची
उठे ,जाये और दरवाज़ा खोले
और असली पति को ही भोग लगाये
कान्हा ने जवाब दिया
सुन गोपी बोली
लो पंडित जी महाराज
तुम्हारा ही सवाल
और तुम्हारा ही जवाब
हम भी तो यही कहती हैं
जब हमें हमारे
परम पति मिल ही गए हैं
अर्थात तुम मिल गए हो
तो फिर इन माटी के पुतलों
अर्थात फोटो के पतियों
का हम अब क्या करें
हमने तो अपना सर्वस्व
तुम्हें ही समर्पित किया है
तुम ही तो हमारे प्राण धन हो
जिसे पाने को हमने
मानव जन्म लिया
जब तुमसे नाता जोड़ लिया
जब तुम हमारे बन गए
फिर इस स्वप्नवत
संसार का हम करें क्या
जिस कारण जीव जन्म लेता है
जब अपना होना जान लेता है
फिर ना उसका संसार से
कोई प्रयोजन रहता है
सब संसार उसे मिथ्या ही दिखता है
सब दृष्टि विलास हो जाता है
जब जीव और ब्रह्म का मिलन हो जाता है
क्रमश:…………
गोपियों को अपने सम्मुख पाया
प्रभु ने गोपियों का स्वागत किया
आओ आओ गोपियों
तुम्हारा स्वागत है
कहो कैसे आना हुआ
जैसे ही बोला
गोपियों के अरमानों पर तो
जैसे पाला पड़ गया
जैसे कोई आपको घर बुलाकर पूछे
कहो क्यों आये हो
तो इससे बढ़कर उसका
और क्या अपमान होगा
इधर प्रभु अपनी रौ में बोले जाते थे
अच्छा अच्छा तुमने
ये शरद पूर्णिमा की रात्रि नहीं देखी
वो ही देखने आई हो ----देखो देखो
अच्छा तुमने ये यमुना का
कल कल करता निनाद नहीं सुना
सुनो सुनो
अच्छा तुमने ये रंग बिरंगे
पुष्पों से लदे वन की शोभा नहीं देखी
अच्छा अब तो तुमने सब देख लिया ना
अब अपने अपने घर जाओ
तुम्हारे घरवाले राह देखते होंगे
अकेली स्त्री का रात को घर से निकलना ठीक नहीं
तुम्हें लोकनिंदा का तो
डर रखना चाहिए था
जब प्रभु ने बहुत उंच नीच समझाई
मगर गोपियाँ तो सिर्फ
अश्रुजल बहाती रहीं
निगाह नीची किये
अंगूठे के नाखून से
जमीन कुरेदती रहीं
तब प्रभु बोले
मैं इतनी देर से बोले जाता हूँ
कुछ तुमको सुनाई भी देता है
या तुम सारी गूंगी हो गयी हो
और ये बताओ तुम
अंगूठे के नाखून से
ये क्या कर रही हो?
इतना सुन बाकी गोपियाँ तो खामोश रहीं
मगर एक चंचल चपल
गोपी बोल पड़ी
दिखता नहीं क्या
गड्ढा कर रही हैं
प्रभु ने पूछा ,"क्यों"
बोली, कभी तो गड्ढा होगा
उसी में हम सब दब मरेंगी
क्योंकि तुझ जैसे
निर्दयी से पाला जो पड़ गया है
एक तो पहले आवाज़ देकर बुलाते हो
और अब हमें ऊंची ऊंची
ज्ञान की बातें सुनाते हो
हम तो अपने पति , बच्चे
भाई बांधव , घर परिवार
सब छोड़कर आई हैं
अपना सर्वस्व समर्पण तुम्हें किया है
और अब तुम्हीं हमें
दुत्कारते हो
तो बताओ अब हम कहाँ जायें
वापस जा नहीं सकतीं
और तुम स्वीकारते नहीं
तो इसी गड्ढे में ही दब मरेंगी
इतना सुन प्रभु बोले
गोपियों मै तुम्हारे भले की बतलाता हूँ
अपने पति की आज्ञा में
चलना ही पत्नी का परमधरम होता है
पति चाहे जैसा हो उसकी
सेवा सुश्रुषा करना ही उसको शोभा देता है
ऐसे अर्धरात्रि में पर पुरुष के पास जाना
कुलीन स्त्रियों को ना भाता है
मैं तुम्हें एक ऐसे जोड़े
के बारे में बतलाता हूँ
पतिव्रत धर्म की महिमा समझाता हूँ
एक पति पत्नी का जोड़ा
रोज हवन करता था
और नियम से गुजर बसर करता था
एक दिन वो आँगन में
गेहूं बिन रही थी
तभी पति लकड़ियाँ काट कर आया
और पत्नी के घुटने पर
सिर रख कर लेट गया
तभी उसको गहरी नींद ने दबोच लिया
इधर उनका ढाई वर्ष का पुत्र
आँगन में खेल रहा था
वहीँ पास में
अग्निकुंड जल रहा था
बच्चा खेलते खेलते
हवनकुंड पर चढ़ गया
इधर माँ का ध्यान जैसे ही
बच्चे पर गया
वो उठकर बचाने को आतुर हुई
तभी देखा पतिदेव सो रहे हैं
अगर इन्हें जगाकर उठती हूँ
तो पत्नीधर्म खंडित होता है
और नहीं उठती तो
मेरा पुत्र हवनकुंड की भेंट चढ़ता है
बेटे तो और मिल जायेंगे
मगर पति ना रहा तो कहाँ जाऊंगी
सोच वो अश्रु बहाने लगी
तभी दो बूंद अश्रुओं को
पतिदेव के मुख पर गिर पड़ीं
पति एकदम उठा और बोला ---क्या हुआ ?
मगर क्या हुआ वो तो ना उसने जवाब दिया
बल्कि हाय मेरा लाल हाय मेरा लाल
कहती दौड़ पड़ी
तब तक बच्चे ने
हवनकुंड में
छलांग लगा दी थी
जैसे ही हवनकुंड की तरफ गयी
देखा कि बच्चा अग्निदेव के
हाथों में खेल रहा है
पतिव्रता स्त्री के बच्चे को
मैं कैसे जला सकता हूँ माँ
तुम्हारा पुत्र जीवित सकुशल है
कह उनका पुत्र उन्हें दिया
इतना कह प्रभु ने बतलाया
देखो पतिव्रत धर्म की
कितनी भारी महिमा है
जिसके आगे मृत्यु भी शीश नवाती है
देवता भी हार मान जाते हैं
ये पतिव्रत धर्म की महिमा न्यारी है
इतना कह प्रभु चुप हुए
ये सुन एक चपला सी
गोपी बोल उठी
पंडित जी महाराज
आपने कथा सुनाई
क्या हम भी एक कथा सुना सकते हैं
सुन कान्हा बोले , सबको बोलने का अधिकार है
तुम भी जो चाहे कह सकती हो
तुमसे भी ज्यादा
पतिव्रत धर्म को मानने वाला
जोड़ा हमारे पास है
वो ऐसी पतिव्रता नारी थी
जो पति के उठने से पहले उठ जाती
उसको नहलाने के बाद नहाती
उसे भोजन कराने के बाद
स्वयं खाती
उसके सोने के बाद ही खुद सोती
अर्थात हर कार्य
पति के बाद ही करती
एक बार कार्यवश
उसके पति को विदेश जाना पड़ा
सुन वो उदास हुई
कैसे अब मैं रहूँगी
अपनी व्यथा पतिदेव को कही
तब उसके पति ने
अपना एक फोटो उसे दिया
तुम अपनी सारी क्रियाएं
इस फोटो के साथ किया करना
इसी को मेरा प्रतिरूप मान लेना
ये आश्वासन दे पति
विदेश चला गया
अब वो फोटो को ही
सब कुछ मानने लगी
हर क्रिया उसी के साथ करने लगी
उसे सुलाकर खुद सोती
उसे भोग लगाकर खुद खाती
बरसों यूँ ही बीत गए
एक दिन आया दीपावली का त्यौहार
उसने बनाये तरह तरह के पकवान
जैसे भी भोग लगाने बैठी
वैसे ही विदेश गया पति
भी आ पहुँचा
और उसने दरवाज़ा खटखटा दिया
देवी दरवाज़ा खोलो
देवी दरवाज़ा खोली
इतना कह गोपी पूछ बैठी
कहो पंडित जी महाराज
अब वो नारी क्या करे
उस फोटो वाले को भोग लगाये
या जो दरवाज़े पर खड़ा है
उसे अन्दर बुलाये
ये सुन भगवान की
बोलती बंद हो गयी
और मंद मंद मुस्कुराने लगे
गोपी बोली यूँ मुस्कुराने से
ना काम चलेगा
मुँह भी खोलना पड़ेगा
इतना सुन कान्हा बोले
इसमें कौन सी बड़ी बात है
अगर बड़ी बात नहीं
तो बताते क्यों नहीं
गोपी ने उच्चारण किया
अरे जब असली का पति
आ ही गया
तो फिर नकली के
फोटो के पति की क्या जरूरत बची
उठे ,जाये और दरवाज़ा खोले
और असली पति को ही भोग लगाये
कान्हा ने जवाब दिया
सुन गोपी बोली
लो पंडित जी महाराज
तुम्हारा ही सवाल
और तुम्हारा ही जवाब
हम भी तो यही कहती हैं
जब हमें हमारे
परम पति मिल ही गए हैं
अर्थात तुम मिल गए हो
तो फिर इन माटी के पुतलों
अर्थात फोटो के पतियों
का हम अब क्या करें
हमने तो अपना सर्वस्व
तुम्हें ही समर्पित किया है
तुम ही तो हमारे प्राण धन हो
जिसे पाने को हमने
मानव जन्म लिया
जब तुमसे नाता जोड़ लिया
जब तुम हमारे बन गए
फिर इस स्वप्नवत
संसार का हम करें क्या
जिस कारण जीव जन्म लेता है
जब अपना होना जान लेता है
फिर ना उसका संसार से
कोई प्रयोजन रहता है
सब संसार उसे मिथ्या ही दिखता है
सब दृष्टि विलास हो जाता है
जब जीव और ब्रह्म का मिलन हो जाता है
क्रमश:…………