मधु हो तुम
और मेरी क्षुधा अनंत
सदियों से अतृप्त
प्रेम सुधामृत हो तुम
और मेरी तृष्णा अखंड
सदियों से अपूर्ण
अलोकिक श्रृंगार हो तुम
रूप का अनुपम भंडार हो तुम
और मैं प्रेमी भंवरा
सदियों से रूप पिपासु
पूर्ण हो तुम
और मेरी यात्रा अपूर्ण
सदियों से भटकता
सदियों तक भटकता
अनंत कोटि मिलन
अनंत कोटि विछोह
अनंत अपूरित
तृष्णाओं का महाजाल
ओह! पूर्ण , कहो
अब कैसे अपूर्ण
पूर्ण हो ?
कैसे विशालता में
बिंदु समाहित हो?
हे पूर्ण तृप्त
करो मुझे भी
अब पूर्ण तृप्त !
और मेरी क्षुधा अनंत
सदियों से अतृप्त
प्रेम सुधामृत हो तुम
और मेरी तृष्णा अखंड
सदियों से अपूर्ण
अलोकिक श्रृंगार हो तुम
रूप का अनुपम भंडार हो तुम
और मैं प्रेमी भंवरा
सदियों से रूप पिपासु
पूर्ण हो तुम
और मेरी यात्रा अपूर्ण
सदियों से भटकता
सदियों तक भटकता
अनंत कोटि मिलन
अनंत कोटि विछोह
अनंत अपूरित
तृष्णाओं का महाजाल
ओह! पूर्ण , कहो
अब कैसे अपूर्ण
पूर्ण हो ?
कैसे विशालता में
बिंदु समाहित हो?
हे पूर्ण तृप्त
करो मुझे भी
अब पूर्ण तृप्त !