मेरी स्मृति का आकाश अब रिक्त है
लिखनी होगी नयी इबारत फिर से
नव तरु नव पल्लव नव शिशु सम
मैं भी जी जाऊँ फिर से
अपने पुनर्जन्म की प्रक्रिया की साक्षी हूँ मैं
कर रही हूँ अपने आकाश का स्वयं निर्माण
प्रेम और शांति केवल दो विकल्पों से कर रही हूँ नया ब्रह्मांड तैयार
ये समय है 'स्व' के उत्स का
बिंदु से सिंधु
और
सिंधु से बिंदु
तक की यात्रा ही
मेरा परिमार्जन है
अब अनहद नाद से गुंजारित हैं मेरी दसों दिशाएं
हे पृथ्वी अग्नि जल वायु आकाश
समस्त ब्रह्मांड की चेतना का आधार मेरी पीठ है