अब कोई प्रतीक्षा नहीं
कोई उमंग कोई उल्लास नहीं
जाने किस परछत्ती में दुबक गयी है
ललक मेरी
कि
सुबहो शाम की गर्द से अटा पड़ा है
ख्याल तेरा
इतना बेनूर हो जाना ज़िन्दगी का
कि
कभी कभी शक होता है खुद के जिंदा होने पर
शायद
मेरे मौन का विलोम थे
तुम ... सिर्फ तुम ... माधव !!!