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सोमवार, 27 अक्टूबर 2014

पशोपेश में हूँ

जिस तरह 
संदेह के  बादलों से नहीं नापी जा सकती पृथ्वी की गहराई
दम्भ के झूठे रागों से नहीं बनायीं  जा सकती मौसिकी 
उसी तरह 
संदिग्ध की श्रेणी में रखा है खुद को 

तुम्हें चाहना 
फिर भी न पूरा पाना 
एक कमी का अधूरा रहना 
और फिर भटकना उम्र के बीहड़ में 
प्रेम का इकतारा ले 
नहीं हूँ सिर्फ इसी से संतुष्ट 

चाहने की प्रक्रिया के परिमाण को 
मापने के यंत्र नहीं होते 
तो कैसे संभव है अधूरापन 
जब तक न तुम्हें पूरी  तरह जान लूँ 

खोज के बिन्दुओं पर लगे पहरों को 
छिन्न भिन्न करने को आतुर 
जब भी पहुँचती हूँ निकट 
एक संदेह की मछली कुलबुलाती है 
और तुम हो जाते हो 
फिर पहुँच से दूर …… बहुत दूर 

पास और दूर होने की प्रक्रिया में 
कभी बनाते हो खुद को संदिग्ध 
तो कभी छोड़ देते हो सारे संदेह के तीर मेरी ओर 

खोज , परिमाण , चाहत , संदेह और तुम 
मेरी विध्वंसता तक 
मुझे ही कर देते हैं खड़ा शक के घेरे में 
जो तुम से होकर गुजरता है 
और हो जाती हूँ मैं निःसहाय 
सच और झूठ की वेदी पर 

और पड़ जाती हूँ सोच में 
किसी को चाहना और पाना एक बात हो सकती है 
मगर यदि किसी को जानना हो 
संदेह की सीपियाँ राहों में बिखरी हों 
और पहचान के चिन्ह प्रश्नचिन्ह बने खड़े हों 
तो शक की ऊँगली खुद की तरफ ही क्यों उठी होती है .......... माधव !!!

संदिग्ध तुम हो या मैं………… पशोपेश में हूँ 

बुधवार, 22 अक्टूबर 2014

शुभ दीपावली

दीपावली सबके जीवन में अज्ञानता के अंधेरे को दूर कर खुशियों और ज्ञान का उजाला करे । 


सभी मित्रों को दीपावली की अनन्त शुभकामनायें ।



आज के 'हमारा मैट्रो' में प्रकाशित दीपावली पर मेरे विचार





बुधवार, 15 अक्टूबर 2014

न कोई गाँव न कोई ठाँव

न कोई गाँव न कोई ठाँव 
फिर भी मुसाफ़िर 
चलना है तेरी नियति

अंजान दिशा अंजान मंज़िल
फिर भी मुसाफ़िर
पहुँचना है तेरी नियति 

देह के देग से आत्मा के पुलिन तक ही है बस तेरी प्रकृति

शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2014

रावण कभी नहीं मरा करते




हर साल रावण को जलाना प्रतीकात्मक संकेत 
मगर फिर भी अंजान रहना इंसानी फ़ितरत से 
नहीं , मुझमें रावण नहीं,  राम है 
फिर क्यों तेरे व्यवहार से जली पडोसी की ऊँगली है 
जब तक ये नहीं जान पाओगे रावण को न मार पाओगे 

जब तक मन रूपी रावण पर 
संयम और संतोष का अंकुश नहीं लगाओगे
रावण का वध सम्भव ही नहीं 

रावण कभी किसी भी युग में नहीं मरा करते 

गुरुवार, 2 अक्टूबर 2014

नवदुर्गा के पूजन यही उद्देश्य है बतलाया


महागौरी सिद्धिदात्री का तेज समाया 
माँ ने आज अदभुत रूप बनाया 

सच्चे मन से जो कोई ध्याता 
हर मनोरथ सिद्ध हो जाता 

नव कन्या के पूजन तक ही न सीमित रहना 
गृहकन्या को भी उचित मान सम्मान देना 

नवदुर्गा के पूजन यही उद्देश्य है बतलाया 

जिसने जीवन में इसे ध्याया 
वो ही माँ का सच्चा भक्त कहलाया 



बुधवार, 1 अक्टूबर 2014

भक्ति के आधार



सप्तम दिवस माँ का कालरात्रि स्वरूप 
शुभफ़ल देने वाली माँ शुभंकरी अनूप  

भूत प्रेत भय ग्रह बाधा पल में  दूर भगाए
नाम स्मरण भर से सब व्याधि मिट जाए

श्रद्धा विश्वास ही भक्ति के आधार 
कालरात्रि की है भक्तों महिमा अपार