मुझ सी हठी न मिली होगी कोई
तभी तो
तुमने भी चुनी उलट राह ... मिलन की
दुखी दोनों ही
अपनी अपनी जगह
दिल न समंदर रहा न दरिया
सूख गए ह्रदय के भाव
पीर की ओढ़ चुनरिया
अब ढूँढूं प्रीत गगरिया
और तुम लेते रहे चटखारे
खेलते रहे , देखते रहे छटपटाहट
फिर चाहे खुद भी छटपटाते रहे
मगर भाव पुष्ट करते रहे
कभी कभी सीधी राहें रास नहीं आतीं
और तुम
'उल्टा नाम जपत जग जाना
वाल्मीकि भये ब्रह्म समाना'
के समान राह आलोकित करते रहे
उसमे भी तुम्हारा प्रेम छुपा था
आर्त स्वर कौन सुनता है सिवाय तुम्हारे
आर्त कौन होता है सिवाय तुम्हारे
एक ही कश्ती में सवार हैं दोनों
आओ खोजें दोनों ही मिलन की कोई स्थली
शायद
मौन का घूँट पीयूँ
और सुहाग अटल हो जाए
ये प्रीत की भाँवरें इस बार उल्टी ली हैं हमने...है न साँवरे