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बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

कृष्ण लीला.......... भाग 39



इक दिन कान्हा कलेवा बांधे 
समस्त अंगों पर सुन्दर चित्रकारी किये
फूलों के गहने पहन
पशु पक्षियों की बोली बोलते
ग्वाल बालों संग
बछड़े चराने गए
सभी बालोचित क्रीड़ायें करने लगे
श्याम सुन्दर संग मनोहारी
खेल खेलने लगे
और आनंद मग्न होने लगे
तभी कंस का भेजा
अघासुर नामक दैत्य 
अजगर रूप बनाकर आया है
और राह में पर्वताकार रूप 
रख बैठ गया है
ग्वाल मंडली जब वहाँ पहुंची है
तब उसे देख यूँ बोली है
ये कौन सा पर्वत है
अब से पहले तो नहीं देखा
ये तो अजगर समान लगता है
तो दूसरा बोला
सूर्य किरण से बादल लाल हो गए हैं
मानो किसी अजगर का ऊपरी होंठ हो 
और जो बादलों की परछाईं
धरा पर पड़ती है
मानो वो इसका निचला होंठ हों
तभी तीसरा बोल पड़ा
ये दायीं और बायीं ओर की 
गिरी कंदराएं अजगर के
जबड़े जैसी लगती हैं
और ऊंची- ऊंची शिखर पंक्तियाँ
इसकी दाढें लगती  हैं
चौथा बोला 
ये लम्बी चौड़ी सड़क तो
अजगर की जीभ सरीखी लगती है
और गिरी शिखरों के बीच का अन्धकार
इसके मुख का भीतरी भाग लगता है 
तभी इक ग्वाल बाल बोल पड़ा
देखो - देखो इधर 
जंगल में आग लगी है
तभी तीखी और गरम हवा चली है
मानो कोई अजगर 
गरम- गरम सांस छोड़ रहा हो
तभी इक ग्वाल बाल बोल उठा
चलो आगे बढ़कर देखा जाये
इस गिरी कन्दरा में घुसा जाये
हमें किसी का क्या डर
जब हमारा कान्हा है हमारे संग
गर कोई राक्षस हुआ भी तो
बकासुर सम नष्ट हो जायेगा
कान्हा के हाथों मारा जायेगा
इतना कह ग्वाल बाल
उसके मुख में प्रवेश करते गए
इधर कृष्ण उनकी बात सुन सोचते रहे
इन्हें रोकना होगा
ये तो सर्प को रस्सी समझ रहे हैं
मगर जब तक रोकते
उससे पहले तो ग्वाल बाल
उसके मुख में प्रवेश कर गए


अघासुर और कोई नहीं
बकासुर और पूतना का भाई था
कान्हा से बदला लेने आया था
उसने अपना मुख ना बंद किया
जब तक कृष्ण ने ना प्रवेश किया
जैसे ही प्रभु ने अन्दर प्रवेश किया
अघासुर ने अपना मुख बंद किया
ये दृश्य देख देवता घबरा गए
हाय -हाय का उच्चारण करने लगे
जब भगवान ने देखा
मेरे भक्त परेशान हुए
तब उसके जबड़े में अपने 
शरीर का विस्तार किया
और अघासुर की श्वासों को बंद किया
उसकी आँखें उलट गयीं
व्याकुल हो छटपटा गया
और ब्रह्मरंध्र को फोड़ प्राणांत किया
उसकी दिव्य ज्योति प्रभु में समा गयी
ये देख देवता सब हर्षित हुए
कर जोड़ प्रभु की स्तुति करने लगे
प्रभु ने ग्वाल बाल सब जिला दिए
प्रभु का गुणगान होने लगा 
आकाश में दुदुभी नगाड़े बजने लगे
अप्सराएं नृत्य करने लगीं
मंगलमय वाद्य बजने लगे
जय जयकार की मंगलध्वनि
ब्रह्मलोक तक पहुँच गयी
तब ब्रह्मा जी ने वह ध्वनि सुनी
और आकर अद्भुत दृश्य देखा
और उनका मन भी 
प्रभु माया से मोहित हो गया

जब अजगर का वो शरीर सूख गया
ग्वाल बालों का वो क्रीड़ास्थल बना
मगर ये लीला ठाकुर ने 
पांचवें वर्ष में की 
जिसका वर्णन ब्रज वासियों को
ग्वालबालों ने छठे वर्ष में किया
ये सुन परीक्षित ने 
शुकदेव जी से पूछ लिया
गुरुदेव ये कैसे संभव हुआ
एक समय की  लीला का वर्णन
दूसरे समय में भी वर्तमानकालीन रहे 
अवश्य इसमें जरूर प्रभु की 
कोई महालीला होगी
कृपा कर गुरुदेव वो सुनाइए
प्रभु की  दिव्य लीलाओं का पान कराइए 


क्रमशः ..........

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

कृष्ण लीला ........भाग 38




इक दिन जब मोहन ने 
राधा जी के कहने पर 
दूध दुहा था
और राधा जी ने जाने का 
उपक्रम किया था 
तब मोहन ने अपनी
चित्ताकर्षक मुस्कान की मोहिनी
राधा पर डाली है
रास्ते में सखियों ने 
जैसे ही मोहन का नाम लिया 
राधा के हाथ से 
दूध का बर्तन छूट गया 
अचेत होते सिर्फ
यह ही शब्द 
अधरों पर आया है
मुझे काले साँप ने काटा है
इतना सुन सखियाँ 
 घर पर ले आयीं
और कीर्ति जी को
राधा की व्यथा बतलाई
जिसे सुन मैया बहुत घबरायी 
और झाड फूंक करवाई 
पर राधा  प्यारी को 
आराम ना आता 
मंत्र यन्त्र भी बेकार हुआ जाता 
जो सखी राधा की प्रीत पहचानती थी 
उसने उपाय बतलाया 
नन्द लाल का बेटा 
साँप काटे का मंत्र जानता है
इतना सुन कीर्ति को याद आ गया
जो राधा ने बतलाया था
वो दौड़ी- दौड़ी यशोदा के पास गयी
हाथ जोड़ विनती करने लगी
श्याम सुन्दर को साथ भेज देना
राधा का जीवन बचा लेना
सुन मैया बोल उठी
मेरा लाला तो बालक है
वो झाड़ फूंक क्या जाने
किसी नीम हकीम को दिखलाओ
अच्छे से राधा का इलाज करवाओ
तब कीर्ति ने सारा किस्सा बयां किया
कैसे मनमोहन ने एक गोपी को बचा लिया

ललिता जी जो दोनों की 
प्रीत पहचानती थीं
किस साँप ने काटा था
सब जानती थीं
जाकर चुपके से 
नंदलाल से कहा
जिसकी तुमने गौ दूही थी
वो अचेत पड़ी है
बस तुम्हारे नाम पर
आँखें खोल रही है
कोई मन्त्र यन्त्र ना काम करता है
तुम्हारे श्याम रंग रुपी 
सांप ने उसे डंसा है
ये विष लहर ना
किसी तरह उतर पाती है
राधा को रह - रहकर
तुम्हारी याद सताती है
विरह अग्नि में जल रही है
अपनी चंद्रमुखी शीतलता से
उसकी अगन शीतल करो
यदि सच में भुजंग ने डंसा हो 
तो भी मैं उन्हें अच्छा कर दूँगा 
कह मोहन घर को गए
वहाँ मैया ने हँसकर पूछा 
कान्हा तुमने साँप डँसे का
मंत्र कहाँ से है सीखा 
जाओ राधा को साँप ने डंसा है
उसे बचा लेना
इतना सुन मोहन
राधिका जू के पास गए
और अपनी मुरली को
राधा से छुआ दिया 
जिससे राधा का ह्रदय
ठंडा हुआ
और प्रेमाश्रु झड़ने लगे
ज्यों ही राधा को होश आया है
 कीर्ति जू  ने सारा हाल
राधा को सुनाया है
और बड़े प्रेम से
नन्कुमार को गोद में उठाया है
इस प्रकार राधा मोहन की 
प्रीत ने रंग चढ़ाया है
जो हर ब्रज वासी के 
मन को भाया है
मगर ललिता जी ने
असल मर्म को पाया है
ये भेद कोई न जान पाया है
अलौकिक प्रीत को लौकिक जन क्या जाने
ये तो कोई प्रेम दीवाना ही पहचाने 
जिसने खुद को पूर्ण समर्पित किया हो
वो ही प्रेम का असल तत्त्व है पहचाने 

क्रमशः ......................

शनिवार, 11 फ़रवरी 2012

कृष्ण लीला ........भाग 37





मगर राधा के मन को 
मोहन ऐसे भाए हैं
उनके बिना चैन
ना जिया को आये हैं 
तीसरे दिन दूध दोहने के बहाने
कान्हा के द्वारे पर आई हैं
और मोहन को आवाज़ लगायी है 
राधा प्यारी के शब्दों ने 
मोहन की प्रीत बढ़ाई है
मैया से बोल उठे , "मैया 
कल मैं यमुना का रास्ता भूल गया था
इक गोपी ने लाकर 
घर पर छोड़ा था 
अभी वो ही गोपी आवाज़ लगायी है
पर लज्जा के कारण
ना भीतर आई है
तुम ही उसे बुला लो मैया
इतना कह मोहन ने
अपनी माया फैलाई है
और मैया के ह्रदय में 
श्यामा की प्रीत बढ़ाई है 
तब मैयाके कहने पर
श्यामसुंदर ने 
राधा की बाँह पकड़ी है
और घर के भीतर लाये हैं 
राधा जू की सुन्दरता में 
मैया ने सुध बुध बिसरायी है 




फिर धैर्य धारण कर
बड़े प्रेम से राधा जी का
परिचय जाना है
कौन गाँव की बेटी हो
कौन तुम्हारे तात हैं
पहले ना कभी देखा है
इतना सुन राधा ने 
अपना नाम पता बतलाया है
जिसे सुन यशोदा का
ह्रदय हर्षाया है
तुम्हारी माँ बड़ी कुलवंती हैं 
तुम बृष भानु लली हो 
कह मैया ने गले लगाया है
और मन में ये ख्याल उतार आया है
कितना अच्छा हो 
मेरे मोहन से इसका विवाह हो
फिर मैया ने श्यामा जी का 
श्रृंगार किया है
और गहने कपडे पहना
मेवा मिठाई तिल चावली 
गोद में डाली है
और कान्हा के साथ 
खेलने की आज्ञा दी है
उन दोनों को खेलते देख
मैया वारी वारी जाती  है
और बार बार उन्हें
मोहन संग खेलने को बुलाती है
जब राधा प्यारी श्रृंगार कर
अपने घर को पहुंची है
तब उनकी मैया अचरज में बोली हैं
ये किसने श्रृंगार किया है
तब राधा जी ने बतला दिया
तुम्हारा और बाबा का नाम पूछकर
यशोदा जी ने श्रृंगार किया है
तिल चावली मेवा मिठाई 
दे विदा किया है
घर में घर में बात फ़ैल गयी
यशोदा के मन की बात जान
कीर्ति जी अपने मन की बात कही है
मेरी बेटी दामिनी सो
मोहन प्यारा श्याम घटा सा
दोनों की जोड़ी मन को भाई है
दोनोका विवाह हो जाये
ये बात बृष भानु जी को बताई है
अब राधा प्यारी नित्य
मोहन प्यारे संग खेला करती थीं
प्रीत को रोज नए रंग में रंगती थीं 

क्रमशः ..........

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

.कृष्ण लीला .........भाग 36



इक दिन मोहन 
मन -मोहिनी रूप बनाये
यमुना किनारे खेलने गए
किरीट कुंडल पहने
उपरना ओढ़े 
लकड़ियाँ हाथ में लिए 
पीताम्बर डाले सखा के 
कंधे पर हाथ धरे खड़े थे
उसी समय बृषभानु दुलारी 
राधिका प्यारी अति सुंदरी 
सात आठ वर्ष की अवस्था वाली 
यमुना स्नान को आई थीं
इक दूजे से नैना चार हुए
प्रीति पुरानी उमड़ पड़ी
दोनों की प्रीत जग पड़ी
हँसकर पूछा मोहन ने
ए सुंदरी गोरी- गोरी
ज़रा अपना नाम बताओ
कौन देस में रहती हो
कहाँ तुम्हारा धाम है 
कौन सा तुम्हारा गाम है 
ज़रा हमें भी बतलाओ
आज तक तुम्हें नहीं देखा है
प्रीती भरी वाणी ने 
राधा का मन मोह लिया
बृषभानु लली हूँ
राधिका नाम है
घर में सखियों संग खेला करती हूँ
बाहर नहीं निकलती हूँ 
इस कारण नहीं देखा है
पर मैंने सुना है
नन्द जी का बेटा
माखन चुरा कर खाता है
गोपियों को बहुत खिजाता है 
क्या तुम वो ही नंदकुमार हो ?
सुन मोहन बोल उठे
तुम्हारा मैंने क्या चुराया है 
बस तुम मेरे मन को भायी हो
सो घडी दो घडी आकर खेला करना
और नहीं कुछ चाहत है
इतना सुन राधा जी सकुचा गयीं
और मन में मोहन की प्रीत रख
बरसाने आ गयीं 


संध्या समय दूध दोहने का बहाना बना
मोहन से मिलने आ गयीं
क्योंकि मन मोहन में लग गया था
मोहिनी मूरत में अटक गया था
प्रीत पुरानी जग गयी थी 
जब दोनों की भेंट हुई थी 
श्यामसुंदर की माया से 
बदली छा गयी थी
दोनों ने प्रेमपूर्वक बात की
और जब देर हुई जाना
तब राधा जी घबरा गयीं
तब जल्दी में मोहन ने उनकी सारी ओढ़ ली 
और अपनी पीताम्बरी उन्हें दी
इधर मोहन सारी ओढ़े घर पर आये हैं 
जिसे देख यशोदा विचार करती हैं
जरूर किसी गोपी से प्रीत कर
उसकी सारी ले ली है 
अंतर्यामी मैया के मन की जान गए 
और मैया से बोल उठे
मैया आज यमुना किनारे 
जब गौओं को पानी पिलाता था 
एक गोपी स्नान के लिए 
सारी रख यमुना में उतर गईं
जैसे ही एक गौ भागी 
मैं उस गौ के पीछे भगा
गोपी ने डर के मारे
मेरी पीताम्बरी ओढ़ लिया
और अपनी सारी छोड़ गयी
मैं उस ब्रजबाला को जानता हूँ
अभी उससे पीताम्बर लेकर आता हूँ
इतना कह घर से बाहर
जाकर मोहन ने माया से 
सारी को  पीताम्बर बनाया
और अपने झूठ को 
और मैया की निगाह में सच बनाया 

इधर राधा प्यारी घबरायी सी 
पीताम्बर ओढ़े अपने घर गयी
उसकी हालात देख उनकी मैया बोल पड़ी
बेटी तेरी ये दशा कैसे हुई 
घर से तो भली चंगी थी गयी
तब राधा जी ने बात बनाई
इक गोपी मेरे साथ थी जिसे
सांप ने काटा था 
तब नंदलाल के झाडे से 
उसने होश संभाला था 
उसी का हाल देख मैं 
मैया डर गयी 
और गलती से उसकी चूनर ओढ़ ली 
मैया बिटिया को बारम्बार गले लगाती है
और समझाती हैं
तुम बाहर दूर खेलने मत जाना
अब मैं घर और गाँव में खेलूंगी
मैया तुम ना चिंता करना
कह राधाने आश्वासन दिया 

क्रमशः ...........