जाने किस खजुराहो की तलाश में
भटकती है मन की मीन
कि एक घूँट की प्यास से लडती है प्रतिदिन
आओ कि घूँघट उठा दो
जलवा दिखा दो
अभिसार को फागुन भी है और वसंत भी
द्वैत से अद्वैत के सफ़र में
प्रीत की रागिनी हो तो
ओ नीलकमल !
मन मीरा और तन राधा हो जाता है
अलौकिकता मिलन में भी और जुदाई में भी
कहो कि कौन से घट से भरोगे घूँट ....साँवरे पिया !!!