मैं भूल जाऊँ कान्हा , कुछ गम नहीं
पर तुम ना मुझको भुला देना
श्यामा , अपना मुझे बना लेना
१) मैं तेरी जोत जलाऊँ या ना जलाऊँ
पर तुम ना मुझे भुला देना
अपनी दिव्य ज्योति जगा देना
कान्हा , अपना मुझे बना लेना
२)मैं तुम्हें ध्याऊँ या ना ध्याऊँ
पर तुम ना मुझे भुला देना
मेरा ध्यान निज चरणों में लगा लेना
कान्हा , अपना मुझे बना लेना
३)मैं प्रीत निभाऊं या ना निभाऊं
तुम ना मुझे भुला देना
प्रीत की रीत निभा देना
श्यामा प्रेम का राग सुना देना
कान्हा, अपना मुझे बना लेना
पेज
बुधवार, 26 मई 2010
मंगलवार, 11 मई 2010
मन की थकान
तन की थकान
तो उतर भी जाये
मन की थकान
कहाँ उतारूँ
किस पेड़ को
साया बनाऊँ
किस डाल पर
झूला डालूँ
कहाँ मैं यादों का
घरौंदा बनाऊँ
कौन सा अब
फूल खिलाऊँ
किस देहरी पर
माथा नवाऊँ
किस आँगन को
मैं बुहारूँ
किस मकां की
दहलीज पर
मन की
रंगोली सजाऊँ
तन की टूटन
जुड़ जाएगी
मन की टूटन
कहाँ जुडाऊँ
किस थाली में
मन को परोसूँ
कौन सा मैं
दीप जलाऊँ
किस देवता का
करूँ मैं पूजन
किस श्याम की
राधा बन जाऊँ
तन की थकन तो उतर भी जाए
मन की थकन उतारने को
किस श्याम का काँधा पाऊँ
कौन सा नेह दीप जलाऊँ
कौन सी बाँसुरी बजाऊँ
जो श्याम दौडे चले आयें
मुझ बिरहन को गले से लगायें
मेरी युगों की थकन मिटायें
तो उतर भी जाये
मन की थकान
कहाँ उतारूँ
किस पेड़ को
साया बनाऊँ
किस डाल पर
झूला डालूँ
कहाँ मैं यादों का
घरौंदा बनाऊँ
कौन सा अब
फूल खिलाऊँ
किस देहरी पर
माथा नवाऊँ
किस आँगन को
मैं बुहारूँ
किस मकां की
दहलीज पर
मन की
रंगोली सजाऊँ
तन की टूटन
जुड़ जाएगी
मन की टूटन
कहाँ जुडाऊँ
किस थाली में
मन को परोसूँ
कौन सा मैं
दीप जलाऊँ
किस देवता का
करूँ मैं पूजन
किस श्याम की
राधा बन जाऊँ
तन की थकन तो उतर भी जाए
मन की थकन उतारने को
किस श्याम का काँधा पाऊँ
कौन सा नेह दीप जलाऊँ
कौन सी बाँसुरी बजाऊँ
जो श्याम दौडे चले आयें
मुझ बिरहन को गले से लगायें
मेरी युगों की थकन मिटायें
शुक्रवार, 7 मई 2010
अश्क कैसे बहाऊँ?
तेरी याद में
जब अश्कों का
दरिया बहता था
तब अंतस में
बैठा तू ही तो
तड़पता था
आज तेरा
ये अंदाज़
समझ आया है
जब मैं और तू
दो रहे ही नहीं
जब तू ही वजूदमें समाया है
हर ओर तेरा ही
नूर समाया है
जहाँ मेरा "मैं"
ना नज़र आता है
जब एकत्व को
अस्तित्व प्राप्त
हो गया है
फिर बता साँवरे
अश्क अब
कैसे बहाऊँ?
तुझे अब कैसे
और तडपाऊँ?
जब अश्कों का
दरिया बहता था
तब अंतस में
बैठा तू ही तो
तड़पता था
आज तेरा
ये अंदाज़
समझ आया है
जब मैं और तू
दो रहे ही नहीं
जब तू ही वजूदमें समाया है
हर ओर तेरा ही
नूर समाया है
जहाँ मेरा "मैं"
ना नज़र आता है
जब एकत्व को
अस्तित्व प्राप्त
हो गया है
फिर बता साँवरे
अश्क अब
कैसे बहाऊँ?
तुझे अब कैसे
और तडपाऊँ?
रविवार, 2 मई 2010
"मोहब्बत " हो गयी
तुझे देखा
नहीं हुई
तुझे पाया
नहीं हुई
तुझे चाहा
नहीं हुई
मगर
जिस दिन
तुझे जाना
"मोहब्बत "
हो गयी
नहीं हुई
तुझे पाया
नहीं हुई
तुझे चाहा
नहीं हुई
मगर
जिस दिन
तुझे जाना
"मोहब्बत "
हो गयी
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