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मंगलवार, 11 जून 2013

धीर धरो सखि पिया आवेंगे



धीर धरो सखि पिया आवेंगे 
गले लगावेंगे 
झूला झुलावेंगे 
मन के हिंडोलों पर 
पींग बढावेंगे 
नैनो से कहो 
नीर ना बहावें 
राह बुहारें 
चुन चुन प्रीत की 
कलियाँ बिछावें 
उम्मीद की बाती जलावें 
प्रेम रस की फ़ुहारें छलकावें 
रुक ना पावेंगे 
दौडे चले आवेंगे 
तेरे प्रेम पर वारि वारि जावेंगे 
धीर धरो सखि पिया आवेंगे 

प्रेम की प्यास उधर भी जगी है 
प्यासी मुरली अधरों पे सजी है 
प्रेम अगन इतना बढ़ा ले 
कि मोहन कुंजन में रुक न पावे 
सखियाँ को छोड़ दौड़े दौड़े आवें 
प्रेम मुरलिया तुझे ही बना लें 
और अधरों पर सजा लें 
फिर प्रेम की रागिनी बजावें 
सुध बुध अपनी भी बिसरावें 
तू मैं का हर भेद मिटावें 
प्रेम रस धार बहावें 
यूं मुरली की तान बढावें 
रसो वयि सः तुझे बनावें 
मधुर मिलन यूं हो जाए 
साकार से निराकार बनावें 
बस तू 
प्रेम अगन इतना बढ़ा ले 
धीर धरो सखि पिया आवेंगे 

16 टिप्‍पणियां:

  1. निर्मल प्रेम का एहसास सहज ही उत्पन हो जाता है ...
    उम्दा ...

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन यात्रा रुकेगी नहीं ... मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,आभार.

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  4. -सुन्दर रचना
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post: प्रेम- पहेली
    LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत खूब, खूबशूरत अहसाह ,बेहतरीन सुन्दर रचना

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  6. बेहद सुन्दर प्रस्तुति ....!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (11-06-2013) के अनवरत चलती यह यात्रा बारिश के रंगों में .......! चर्चा मंच अंक-1273 पर भी होगी!
    सादर...!
    शशि पुरवार

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  7. सुंदर रचना .... धीर देखो कब तक साथ देता है :):)

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आप सब के सहयोग और मार्गदर्शन की चाहत है।