किससे करूँ जिद
कोई हो पूरी करने वाला तो करूँ भी
और तुम , तुमसे उम्मीद नहीं
क्योंकि बहुत जिद्दी हो तुम
मुझसे भी ज्यादा
और मुझसे क्या
इस दुनिया में सबसे ज्यादा
फिर भला कैसे संभव है मेरा पानी पर दीवार बनाना
देखा है तुम्हारी जिद को
और देख ही रही हूँ जाने कब से
कितने युग बीते तुम न बदले
और न ही बदली तुम्हारी परिभाषा , तुम्हारे मापदंड
वैसे भी सुना है
जहाँ चाहत होती है वहाँ ही जिद भी होती है
मगर मुझे तो पता ही नहीं
तुम्हारी चाहत मैं कभी बनी भी या नहीं
तो बताओ भला किस आस की पालकी पर चढूँ
और करूँ एक जिद तुमसे तुम्हारे दीदार की ……ओ मोहना !!!
कोई हो पूरी करने वाला तो करूँ भी
और तुम , तुमसे उम्मीद नहीं
क्योंकि बहुत जिद्दी हो तुम
मुझसे भी ज्यादा
और मुझसे क्या
इस दुनिया में सबसे ज्यादा
फिर भला कैसे संभव है मेरा पानी पर दीवार बनाना
देखा है तुम्हारी जिद को
और देख ही रही हूँ जाने कब से
कितने युग बीते तुम न बदले
और न ही बदली तुम्हारी परिभाषा , तुम्हारे मापदंड
वैसे भी सुना है
जहाँ चाहत होती है वहाँ ही जिद भी होती है
मगर मुझे तो पता ही नहीं
तुम्हारी चाहत मैं कभी बनी भी या नहीं
तो बताओ भला किस आस की पालकी पर चढूँ
और करूँ एक जिद तुमसे तुम्हारे दीदार की ……ओ मोहना !!!
बहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंअब जिद करने की उम्र गयी आपकी।
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दूसरा जन्म लेकर ही जिद करना अच्छा लगेगा अब तो सबको।
बहुत भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंओ मोहना...
जवाब देंहटाएंप्रेम की अभिव्यक्ति..
zid to karni banti hai vandana ji...
जवाब देंहटाएंsundar bhaav...
meri 100th post pe aapka swagat hai
http://raaz-o-niyaaz.blogspot.com/2014/09/blog-post.html
वाह ! बहुत ही सुन्दर एवं भावपूर्ण ! लेकिन वो ज़िद ही क्या जो पानी पर दीवार खड़ी ना कर सके ! बस हौसले और दृढ़ इच्छाशक्ति की ज़रूरत है !
जवाब देंहटाएंकिस आस की पालिकी पर चढूं--
जवाब देंहटाएंबात पूरी हो गई.
किस आस की पालिकी पर चढूं--
जवाब देंहटाएंबात पूरी हो गई.