आज भी याद है वो शाम जब अचानक तुम उस मन्दिर में मुझसे टकराए थे और मेरी पूजा की थाली गिर गई थी । कितने शर्मिंदा हुए थे तुम और फिर एक नई पूजा की थाली लाकर मुझे दी थी। भगवान के आँगन में हमारी मुलाक़ात शायद उसका एक इशारा था। उसी की इच्छा थी की हम उस पवित्र बंधन में बंधें और अपने रिश्ते को पूर्ण करें। उस मुलाक़ात के बाद तो जैसे तुम्हारा और मेरा रोज मन्दिर आना एक नियम सा बन गया था। हम दोनों ने एक दूसरे से बात करना भी शुरू कर दिया था । तब पता चला कि तुम इंजिनियर हो और मैं भी स्कूल में अध्यापिका थी । बहुत ही सुलझे हुए इंसान लगे तुम। हर बात को एक दम सटीक और नपे- तुले शब्दों में कहने की तुम्हारी अदा मुझे अच्छी लगने लगी। धीरे -धीरे तुम मेरे वजूद पर छाने लगे.............तुम्हारी हर बात , हर अदा मुझे तुम्हारी ओर खींचती। मैं अपने आप को जितना रोकने की कोशिश करती उतनी ही विफल होती गई.........शायद पहले प्यार का आकर्षण ऐसा ही होता है। जब तुम्हारी आंखों में झांकती तो उन गहराइयों में इतना गहरे उतर जाती कि ख़ुद को भी भूल जाती .........एक अजब आलम था .........हर पल तुम्हारा ही ख्याल रहता और तुम्हारा ही इंतज़ार। अब तक हम दोनों ने साथ जीने का निर्णय ले लिया था और फिर एक दिन तुम अचानक मेरे घर अपने माता -पिता के साथ आए और मेरा हाथ माँगा। दोनों ही परिवार में कोई भी ऐसा न था जो इस रिश्ते को ना कर पाता। सर्वगुण संपन्न रिश्ता घर बैठे मिल रहा था तो और चाहिए ही क्या था। दोनों परिवारों की आपसी सहमति से हम परिणय-सूत्र में बंध गए।
ज़िन्दगी सपनो के पंख लगाकर उड़ने लगी । रवि मेरी छोटी से छोटी इच्छा ,मेरी हर खुशी के लिए दिन- रात कुछ न देखते । बस मेरे चेहरे पर हँसी की लकीर देखने के लिए कुछ भी कर गुजरते। मेरे दिन- रात मेरे नही रहे थे सब रवि को समर्पित हो गए थे। मैं भी रवि की राहों में अपने प्रेम के पुष्प बिछाए रहती। रवि की हर इच्छा जैसे मेरे जीने का सबब बन जाती............दिन ख्वाबों के सुनहरे पंख लगाये उड़ रहे थे। एक -दूसरे में कभी कोई कमी ही नज़र न आती । सिर्फ़ प्रेम ही प्रेम था । हर कोई हमें देखकर यही कहता कि ये दोनों तो जैसे बने ही एक दूजे के लिए हैं । ऐसा सुनकर हम दोनों बहुत खुश होते ,अपने आप पर गर्व होता । पता ही नही चला कब एक साल गुजर गया।
उस दिन हमारी शादी की पहली सालगिरह थी । कितनी उमंगें थी हम दोनों के दिलों में। हम इस हसीन शाम को यादगार बनाना चाहते थे और उन सब लोगो को शामिल करना चाहते थे जिनकी निगाहों में हम आदर्श दंपत्ति थे। फिर तुमने एक पार्टी का आयोजन किया और हम दोनों के दोस्तों को बुलाया ताकि इस हसीन शाम का आनंद अलग ही हो जो बरसों भुलाये न भुला जा सके।
पार्टी हॉल में तुम अपने दोस्तों के साथ मेरा इंतज़ार कर रहे थे और जब मैं तैयार होकर वहां आई तो मुझे देखकर तुम बुत बने रह गए थे..........तुम्हारी उस अदा ने तो जैसे मेरी जान ही ले ली थी। ज़िन्दगी में कभी ऐसे क्षणों के बारे में नही सोचा था सब एक सपना सा लग रहा था। उस दिन तुम्हारे पाँव जमीन पर नही पड़ रहे थे। केक काटने के बाद जब रात गहराने लगी तब तुमने भावनाओं के अतिरेक में बहकर एक खवाहिश जाहिर की कि मैं भी तुम्हारे साथ एक पैग लूँ। मैं स्तब्ध रह गई तुम्हारे वो शब्द सुनकर। मेरी प्यार की सारी खुमारी तुम्हारे इन शब्दों से उतरने लगी। तुम्हें अच्छी तरह पता था कि मैं उस तरह को सोच की नही हूँ मगर फिर भी उस दिन की खुशी में या अपने प्यार के नशे में डूबे तुम मुझसे जिद करने लगे कि आज के दिन निशा तुम मुझे ये एक छोटा सा उपहार भी नही दे सकती । मैं जो रवि के लिए कभी भी कुछ भी कर सकती थी उस वक्त सकते में आ गई कि आज ये रवि को क्या हो गया है । आज से पहले तुमने कभी ऐसी कोई फरमाइश नही की थी और न ही कभी ऐसी जिद पकड़ी थी। मगर उस दिन न जाने रवि को क्या हो गया था वो मुझसे सबके सामने जिद करने लगा और मैं उस वक्त ख़ुद को लज्जित महसूस करने लगी जब तुम मुझे जबरन पिलाने की कोशिश करने लगे। और फिर मैं तुम्हारी ज्यादती बर्दाश्त न कर पाई और पार्टी बीच में छोड़कर घर आ गई। बस वो रात , सारी रात गरजती रही और बरसती रही। एक खामोशी पसर गई दोनों के बीच। काफी दिन तक तुम मुहँ छुपाते फिरते रहे शायद तुम्हें अपने किए पर पछतावा था और फिर तुमने अपने किए पर मुझसे माफ़ी मांगी और शायद अपनी ज़िन्दगी की ये पहली लड़ाई थी इसलिए मैंने भी तुम्हें जल्दी माफ़ कर दिया ये सोचकर की कई बार हमारी अपेक्षाएं कुछ ज्यादा बढ़ जाती हैं तो उन्हें पूरा करने के लिए हम सही ग़लत कुछ नही सोच पाते शायद ऐसा ही रवि के साथ हुआ था...........................मगर ज़िन्दगी के सबसे हसीन पल सबसे दुखद पल में बदल गए थे .............एक ऐसी याद बन गए थे जो कभी मिटाए नही मिट पायी...................
क्रमशः ................................