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शनिवार, 29 जून 2013

सखी री कोई उनको संदेसा पहुँचा दे



सखी री कोई उनको संदेसा पहुँचा दे

तेरी प्यारी राह तकत है

बैठी बिरहा की मारी
सखी री कोई उनको संदेसा पहुँचा दे

सुबह शाम का होश नहीं है

तनमन की सुध बिसरत है
कोई प्रियतम से मिलवा दे
सखी री कोई उनको संदेसा पहुँचा दे

मेरे सलोने नटवर नागर

नैनन की प्यास बुझा दे
बस इक बेर दरस दिखा दे
सखी री कोई उनको संदेसा पहुँचा दे

शुक्रवार, 21 जून 2013

कैसे कहूं सखी मन मीरा होता तो श्याम को रिझा लेता




कैसे कहूं सखी 

मन मीरा होता तो 
श्याम को रिझा लेता 
उन्हे नयनो मे समा लेता 
ह्रदयराग सुना देता 
पर ये तो निर्द्वन्द भटकता है
ना कोई अंकुश समझता है
या तो दे दो दीदार सांवरे
नहीं तो दर बदर भटकता है
पर मीरा भाव ना समझता है
ना मीरा सा बनता है
फिर कैसे कहूं सखी
मन मीरा होता तो
श्याम को रिझा लेता

अब तो एक ही रटना लगाता है
किसी और भुलावे में ना आता है
अपने कर्मों की पत्री ना बांचता है
अपने कर्मों का ना हिसाब लगाता है
जन्म जन्म की भरी है गागर
पापों का बनी है सागर
उस पर ना ध्यान देता है
बस श्याम मिलन को तरसता है
दीदार की हसरत रखता है
ये कैसे भरम में जी रहा है
फिर कैसे कहूं सखी
मन मीरा होता तो
श्याम को रिझा लेता

जाने कहाँ से सुन लिया है
अवगुणी को भी वो तार देते हैं
पापी के पाप भी हर लेते हैं
और अपने समान कर लेते हैं
वहाँ ना कोई भेदभाव होता है
बस जिसने सर्वस्व समर्पण किया होता है
वो ही दीदार का हकदार होता है
बता तो सखी ,
अब कैसे ना  कहूं
मन मीरा होता तो
श्याम को रिझा लेता

मंगलवार, 11 जून 2013

धीर धरो सखि पिया आवेंगे



धीर धरो सखि पिया आवेंगे 
गले लगावेंगे 
झूला झुलावेंगे 
मन के हिंडोलों पर 
पींग बढावेंगे 
नैनो से कहो 
नीर ना बहावें 
राह बुहारें 
चुन चुन प्रीत की 
कलियाँ बिछावें 
उम्मीद की बाती जलावें 
प्रेम रस की फ़ुहारें छलकावें 
रुक ना पावेंगे 
दौडे चले आवेंगे 
तेरे प्रेम पर वारि वारि जावेंगे 
धीर धरो सखि पिया आवेंगे 

प्रेम की प्यास उधर भी जगी है 
प्यासी मुरली अधरों पे सजी है 
प्रेम अगन इतना बढ़ा ले 
कि मोहन कुंजन में रुक न पावे 
सखियाँ को छोड़ दौड़े दौड़े आवें 
प्रेम मुरलिया तुझे ही बना लें 
और अधरों पर सजा लें 
फिर प्रेम की रागिनी बजावें 
सुध बुध अपनी भी बिसरावें 
तू मैं का हर भेद मिटावें 
प्रेम रस धार बहावें 
यूं मुरली की तान बढावें 
रसो वयि सः तुझे बनावें 
मधुर मिलन यूं हो जाए 
साकार से निराकार बनावें 
बस तू 
प्रेम अगन इतना बढ़ा ले 
धीर धरो सखि पिया आवेंगे 

बुधवार, 5 जून 2013

कौन आँगन मन पंछी ले उडा .............




लोग पूछते हैं कैसे हो और मैं कह देती हूँ बढिया हूँ 
अब कैसे बताऊँ जी की दशा ,कौन समझेगा यहाँ 
कौन आँगन मन पंछी ले उडा .............

मुंडेर पर काक कोई आता नहीं 
पिया का संदेसा लाता नहीं
हिलोरें दिल में उठती नहीं 
बेचैनी किसी खंजर से कटती नहीं 
सखि , किसे कहूँ मैं मन की दशा 
कौन आँगन मन पंछी ले उडा .............

ग्रीष्म का ताप अखरता नहीं 
आंतरिक ताप भाप बन उड़ता नहीं 
यादों की लू भी लगती नहीं 
सांकल कोई बजती नहीं 
सखी , कैसे पाऊँ उनका पता 
कौन आँगन मन पंछी ले उडा .............


बांसुरी कोई बजती नहीं 
वेदना ह्रदय की मिटती नहीं 
विरह के बादल छंटते नहीं 
प्रीत के मनके पिरते नहीं 
सखी , माला मैं कैसे गूंथूं बता 
कौन आँगन मन पंछी ले उडा .............