पेज

मेरी अनुमति के बिना मेरे ब्लॉग से कोई भी पोस्ट कहीं ना लगाई जाये और ना ही मेरे नाम और चित्र का प्रयोग किया जायेये

my free copyright

MyFreeCopyright.com Registered & Protected

शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

श्याम संग खेलें होली

कान्हा ओ कान्हा
कहाँ छुपा है श्याम सांवरिया
ढूँढ रही है राधा बावरिया
होली की धूम मची है
तुझको राधा खोज रही है
अबीर गुलाल लिए खडी है
तेरे लिए ही जोगन बनी है
माँ के आँचल में छुपा हुआ है
रंगों से क्यूँ डरा हुआ है
एक बार आ जा रे कन्हाई
तुझे दिखाएं अपनी रंगनायी
सखियाँ सारी ढूँढ रही हैं
रंग मलने को मचल रही हैं
कान्हा ओ कान्हा
कान्हा ओ कान्हा
तुझ बिन होली सूनी पड़ी है
श्याम रंग को तरस रही है
प्रीत का रंग आकर चढ़ा जा
श्याम रंग में सबको भिगो जा
प्रेम रस ऐसे छलका जा
राधा को मोहन बना जा
मोहन बन जाये राधा प्यारी
हिल मिल खेलें सखियाँ सारी
रंगों से सजाएँ मुखमंडल प्यारी
लाल रंग मुख पर लिपटाएँ
देख सुरतिया बलि बलि जायें
श्याम रंग यूँ निखर निखर जाये
श्यामल श्यामल सब हो जाये

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

ऐसा आखिर कब तक -----------अंतिम भाग

दीप्ति से अलग होने के बाद , उसे किये वादे की लाज रखने और उसके त्याग को सम्पूर्णता प्रदान करने के लिए तथा अपना बेटा होने का कर्त्तव्य पूरा करने के लिए आकाश ने अपनी सभी इच्छाओं की बलि चढाते हुए माता- पिता की पसंद की बहुत ही सुन्दर , रईस खानदान की अपनी ही जाति की लड़की रश्मि से शादी कर ली । वक़्त अपनी रफ़्तार से गुजरने लगा ---------आकाश अपनी तरफ से पुरजोर कोशिश करता कि किसी को भी उससे कोई शिकायत ना हो और अपना बेटा और पति होने के फ़र्ज़ को बखूबी निभा सके। उसने खुद को सबकी खुशियों के प्रति समर्पित कर दिया था अपने हर शौक अपनी हर इच्छा का गला तो उसी दिन घोंट दिया था जिस दिन दीप्ति से अलग हुआ था -----------उसकी आवाज़ जो उसकी सबसे बड़ी पहचान थी ना जाने कहाँ वक़्त की गर्दिशों में खो गयी थी यहाँ तक कि रश्मि को तो उसकी इस खूबी का पता भी ना था क्यूँकि उसने कभी आकाश के मन में झाँकने का प्रयास ही नही किया। इसी तरह २ साल निकल गए मगर रश्मि एक रईस खानदान की इकलौती लड़की थी। उसने जो ऐशो -आराम अपने घर देखे थे उसकी तुलना में आकाश तो कुछ भी ना था। मगर फिर भी किसी तरह २ साल उसने निकाल लिए मगर आखिर कब तक एक लगी बँधी तनख्वाह में वो गुजारा करती , कब तक अपनी इच्छाओं को मारती। और जब वो अपनी सहेलियों की ज़िन्दगी की तुलना खुद से करती तब तो वो तिलमिला उठती । धीरे- धीरे २ साल में उसके सब्र का घड़ा भर चुका था और अब उसने छलकना शुरू कर दिया था । अब रश्मि बात -बात पर आकाश को उलाहना देने लगी थी । उसे किसी ना किसी बहाने जलील करती कि इतने पैसों में क्या होता है, आमदनी बढ़ाने के लिए इंसान और भी हथकंडे अपनाता है मगर आकाश एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देता क्यूँकि वो बात बढ़ाना नही चाहता था । जब इसका असर नही दिखा तो रश्मि ने आकाश के माँ -बाप को कोसना शुरू कर दिया ------------उसे लगने लगा कि अगर इन दोनों का खर्च उसके सर से हट जाये तो वो उन पैसों से ज़िन्दगी की खुशियाँ खरीद सकती है। इसलिए वो आकाश पर अपने माँ -बाप से अलग होने का दबाब बनाने लगी । उसे लगा कि जो पैसा उन पर खर्च हो रहा है वो बच जायेगा। रोज- रोज की कलह से तंग आकर आकाश के माँ -बाप भी परेशान रहने लगे और उन्होंने आकाश को मजबूर किया कि वो उनसे अलग हो जाये ताकि उसका जीवन खुशहाल हो सके और वो भी बुढ़ापे में दो रोटी चैन की खा सकें। आकाश को मन मारकर अपने माँ- बाप की खुशहाली के लिए और घर में कुछ सुकून रह सके , अलग होना पड़ा मगर इसका नतीजा तो और भी उल्टा निकला। अब तो रश्मि पर किसी तरह का कोई अंकुश ना था । आकाश तो सारा दिन ऑफिस में होता और रश्मि अपने दोस्तों के साथ कभी पार्टी, कभी पिकनिक, कभी मूवी और कभी किट्टी पार्टी आदि में मशगूल रहने लगी। वो तो ऐसे ही जीवन की आदी थी इसलिए वो अब अपने मन के मुताबिक जीने लगी और उसने अब आकाश पर बिलकुल भी ध्यान देना बंद कर दिया । उसके लिए तो वो बस सिर्फ पैसा कमाने की मशीन था या कहो ऐसा बैंक था जिससे जब चाहे जितना चाहे रुपया निकाल सके । इससे आगे उसे आकाश से कोई मतलब ना होता। मगर आकाश को वो भी मंजूर था क्यूँकि वो चाहता था कि किसी भी तरह घर में शान्ति रहे मगर कुछ ही महीनो में रश्मि की आकांक्षाएं बुलंदियों को छूने लगीं। वो आकाश से दिन पर दिन अपना रहन - सहन का स्तर ऊँचा करने के लिए दबाब डालने लगी। उसे नाजायज तरीकों से पैसा कमाने के लिए उकसाने लगी मगर आकाश को ये तरीका पसंद ना था । वो तो सादा जीवन उच्च विचार के आदर्शों का पालन करने वाला इंसान था और रश्मि उससे बिलकुल उलट थी। आखिर कब तक दोनों की निभती। धीरे- धीरे अब सम्बन्ध और भी बिगड़ने लगे। और फिर एक दिन तो उसके सब्र का सारा बाँध ढह गया जब उसने रश्मि को अपने ही घर में नशे की हालत में धुत होकर उसके एक दोस्त की बाँहों में झूमते हुए देखा , वो पल उसकी ज़िन्दगी का सबसे बुरा पल था। जिस इज्ज़त , शान्ति और खुशहाली के लिए उसने इतने त्याग किये थे वो सब आज धुल -धूसरित हुए उसके आगे पड़े थे। बस उस दिन उन दोनों में इतनी ज्यादा तकरार हुई कि रश्मि घर छोड़कर अपने पिता के घर चली गयी। उस पल तो आकाश ने भी जाने दिया ,मगर जब अगले दिन गुस्सा शांत हुआ तो उसे मनाने उसके घर गया मगर वहाँ उसके पिता और रश्मि ने उसकी इतनी बेईज्ज़ती की कि वो उलटे पैर वापस आ गया। कुछ दिनों बाद आकाश ने फिर उसे मनाने की कोशिश की मगर वो नही मानी। अब रश्मि अपनी ज़िन्दगी से किसी भी प्रकार का कोई समझौता नही करना चाहती थी। अब जब आकाश और उसके माता- पिता भी अपनी तरफ से हर संभव कोशिश करके हार गए तब आकाश ने एक गंभीर निर्णय लिया। आकाश ने सोचा कि इस निर्णय से घबराकर शायद रश्मि वापस आ जाये इसलिए आकाश ने तलाक के कागजात रश्मि के पास भेजे। मगर परिणाम आकाश की सोच के विपरीत हुआ। रश्मि ने वापस आने की बजाय कोर्ट जाना पसंद किया। अब दोनों कोर्ट की तारीखों में घिसटने लगे और इसी जद्दोजहद में आकाश की ज़िन्दगी के पांच साल निकल गए। आकाश को हर रिश्ता सिर्फ स्वार्थपरक लगने लगा। उसे लगता कोई भी उसका अपना नही है सब उसे प्रयोग करना चाहते हैं। माँ बाप ने अपने प्यार , इज्जत और जाति की दुहाई दी और उसके प्रेम का बलिदान ले लिया मगर उसे क्या हासिल हुआ -------वो जिसे उसने जीवनसाथी बनाया वो कभी उसकी ना हुई , उसके लिए तो आकाश का कोई अस्तित्व ही ना था। इन सब बातों ने आकाश को अंधेरों के गर्त में धकेल दिया और जिन राहों को वो बुरा समझता था आज उन्ही राहों पर कदम उसे ले गए थे। अब वो अपना गम शराब की बोतलों में डुबाने की कोशिश करता क्यूँकि कुछ देर के लिए ही सही मगर वो इस मतलबी दुनिया से दूर हो जाता था और आज भी तलाक का इंतज़ार करते -करते जब उसे अगली तारीख मिली तो एक बार फिर उसने शराब का सहारा लिया और उसी हालत में दीप्ति को मिला।
इतन कहकर आकाश चुप हो गया। दीप्ति तो इतना सब सुनकर वैसे ही सुन्न हो गयी थी। उसे तो खुद समझ नही आ रहा था कि ये क्या हो गया है। कैसे आकाश को सांत्वना दे । मगर किसी तरह खुद को संभालकर उसने आकाश को समझाया और थोडा - बहुत खिलाया पिलाया। फिर दीप्ति ने पूछा कि तुम्हें तलाक अब तक क्यूँ नही मिला तो आकाश ने बताया कि रश्मि उससे बदला ले रही है इतने दिन की तड़प का , चाहती तो वो भी है मगर मुझे तड़पते देख उसे सुकून मिल रहा है इसलिए वो हर बार तारीख लेकर निकल जाती है जबकि आकाश को हर बार इस शहर में आना पड़ता है क्यूँकि रश्मि का मायका यहीं है और हर बार सिर्फ तारीख लेकर ही चला जाता है। बस इन्ही हालात ने उसे परेशान कर दिया है । उसकी ज़िन्दगी कोर्ट की सीढियां चढ़ने- उतरने में ही बर्बाद हो रही है और कोई हल नही मिल रहा क्यूँकि रश्मि को औरत होने का भी फायदा मिल रहा है कोर्ट की भी सारी सहानुभूति उसके साथ है।
अब दीप्ति ने आकाश को समझाया और कुछ दिनों की छुट्टी लेकर आकाश के साथ उसके शहर गयी। आज उसे ये शहर अपना होते हुए भी अजीब लग रहा था मगर किसी तरह दिल पर पत्थर रखकर वो आकाश के साथ उसके माता -पिता के पास गयी उनसे मिली । आज वो भी अपने किये पर शर्मिंदा थे। अब उन्हें भी अपनी गलती का अहसास हो गया था मगर अब पछताय होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत । अब जब उन्होंने अपने बेटे की ज़िन्दगी बर्बाद होते देखी तब उन्हें समझ आया कि जाति -बिरादरी कोई काम नही आता और जहाँ प्रेम हो वहां इन सबकी कोई जरूरत नही होती । सिर्फ अपने उसूलों की वजह से आज उन्होंने तीन जिंदगियां बर्बाद कर दी थीं। आज वो दीप्ति के आगे खुद को बहुत छोटा महसूस कर रहे थे। आज वो तहेदिल से चाहते थे कि आकाश और दीप्ति एक हो जायें मगर आज उनके बीच था आज का कानून। साल पर साल निकल रहे थे मगर आकाश और रश्मि का अभी तलाक नही हुआ था। आकाश और दीप्ति का प्रेम एक बार जाति -पांति के चक्कर में बलिदान हुआ था और अब कानून के चक्रव्यूह में फँसा अपने भविष्य की बाट जोह रहा था। कब तक हमारा समाज इन बेड़ियों में जकड़ा रहेगा और मासूमों की ज़िंदगियाँ बर्बाद करता रहेगा। कब तक कानून की जटिल प्रक्रियाएं मानव मन को खोखला करती रहेगी और वो बेबस , असहाय -सा निरीह पशु की भाँति कानून के शिकंजे में फँसा बर्बाद होता रहेगा। ऐसा आखिर कब तक????????????

बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

ऐसा आखिर कब तक ?

गतांक से आगे ..................

जैसे ही आकाश ने अपने घर में दीप्ति के बारे में बताया तो उसके माता- पिता बहुत खुश हुए। वो तो कब से इस दिन का इंतज़ार कर रहे थे इसलिए उसी दिन रिश्ता लेकर दीप्ति के घरवालों के पास गए मगर वहाँ जब पता चला कि दीप्ति छोटी जाति की है और आकाश राजपूत तो आकाश के माता -पिता उलटे पैर वापस आ गए । उन्हें अपने से छोटी जाति की लड़की से अपने बेटे का विवाह मंजूर ना था। आकाश ने लाख समझाया ,अपने प्यार की दुहाई दी मगर उसके माता -पिता अपनी बात से टस से मस ना हुये । उन्हें अपने समाज , अपनी बिरादरी सब से ऊपर लगती थी और अपनी इज्ज़त की खातिर उन्होंने आकाश का दिल तोडना उचित समझा क्यूँकि वो समझते थे कि प्यार- व्यार कुछ नही होता महज शारीरिक आकर्षण है जो दूसरी जगह शादी होने के बाद अपने आप खत्म हो जायेगा और वो ये सब कुछ भूल जायेगा। आकाश की सबसे बड़ी विडंबना यही थी कि वो अपने माता- पिता की इकलौती संतान था इसलिए उसका फ़र्ज़ भी बनता था कि कुछ भी ऐसा ना करे जिससे उनका दिल दुखे क्यूँकि उन्होंने उसे बहुत ही लाड -प्यार से पाला था तो क्या वो सिर्फ अपने स्वार्थ की खातिर अपने माता- पिता को दुखी कर दे और इस कारण उन्हें छोड़ भी नही सकता था और दीप्ति के बिना रह भी नही सकता था । उसने अपनी तरफ से हर मुमकिन कोशिश की मगर नतीजा शून्य ही रहा और इसी जद्दोजहद में २ साल निकल गए । उधर दीप्ति भी बहुत दुखी थी मगर वो सिवाय इंतज़ार के कर भी क्या सकती थी. इधर जब २ साल निकल गए और कोई हल ना निकला समस्या का तब एक दिन आकाश के माता -पिता ने दीप्ति को बुलाया क्यूँकि उन्हें लगता था कि दीप्ति के कारण ही उनका बेटा शादी नही कर रहा है इसलिए यदि वो ही उसे कहेगी तभी आकाश शादी के लिए राजी होगा इसलिए उन्होंने दीप्ति पर अपने प्यार,त्याग और तपस्या की दुहाई देकर दबाब बनाया कि आकाश उनकी इकलौती संतान है और उसकी खुशियाँ देखने के लिए ही तो वो जिंदा हैं इसलिए अगर दीप्ति कहे तो आकाश मान जायेगा और दूसरी जगह शादी कर लेगा । बहुत गहरा धक्का लगा था दीप्ति को उस दिन। एकदम आसमान से धरती पर आ गयी थी आंखों के आगे अँधेरा छा गया था मगर किसी तरह खुद को सँभाल कर और अपने आँसुओं को आँखों में ही दफ़न करके वो वहाँ से वापस आई। सारी रात रोती रही क्यूँकि उसे एक विश्वास था कि शायद कुछ दिन में आकाश के माँ -बाप का दिल पिघल जायेगा अपने बेटे की हालत देखकर तो मान जायेंगे मगर नतीजा कुछ नही निकला बल्कि उसे ही बलि की वेदी पर बिठा दिया गया कितना स्वार्थमय है ये संसार । किसी के अरमानो की चिता जलाकर हाथ सेंकना ही आता है शायद सबको मगर फिर आकाश के बारे में सोचकर , उसकी जिम्मेदारियों , कर्तव्यों के बारे में सोचकर उसने आकाश को समझाने के फैसला लिया क्यूँकि उसने सोचा यदि वो खुश नही रह सकती तो कम से कम किसी को तो ख़ुशी के कुछ पल ही दे दे कम से कम कुछ और ज़िंदगियाँ बर्बाद होने से तो बच जाएँगी। अपने प्यार की दुहाई देकर किसी तरह दीप्ति ने आकाश को मना लिया और दोनों ने एक -दूसरे से एक अच्छे दोस्त की तरह विदा ली। दीप्ति को सुकून था कि चलो उसे आकाश तो नही मिला मगर उसका प्रेम तो हमेशा उसका ही रहेगा और वो ही उसके जीवन का सबसे अनमोल तोहफा होगा तथा आकाश और उसके माता- पिता एक खुशहाल जीवन तो जी सकेंगे। चाहे उसकी मोहब्बत को मुकाम नही मिला मगर सुकून तो मिला। इस प्रकार दीप्ति ने खुद को तसल्ली देकर कभी विवाह ना करने का फैसला कर लिया और अपना ट्रान्सफर उस शहर से दूसरे शहर में करवा लिया और उस दिन के बाद आज आकाश को इस हालत में अपने शहर में भटकते पाया तो उसका दिल दहल गया । उसे समझ ही ना आया कि ऐसा क्या हो गया आकाश के साथ जो उसकी ये हालत हो गयी थी क्या इसी दिन के लिए उसने अपनी मोहब्बत कुर्बान की थी ।अब उसे सुबह का इंतज़ार था जब आकाश उठे तो उससे जाने उसके अतीत के बारे में ।
अगले दिन सुबह जब आकाश उठा तो उसने अपने आप को एक अजनबी घर में बिस्तर पर लेटा पाया तो हडबडाकर उठ बैठा। उसे समझ नही आ रहा था कि वो कहाँ है तभी दीप्ति हाथ में चाय की ट्रे लेकर कमरे में दाखिल हुई और जैसे ही आकाश ने दीप्ति को देखा तो उसे अपनी आँखों पर विश्वास ही ना हुआ । उसे लगा कि वो कोई सपना देख रहा है मगर जब दीप्ति ने आकाश का हाल पूछा तो उसे यकीन आया कि जो सामने है वो भी हकीकत ही है । थोड़ी देर के लिए दोनों के बीच ख़ामोशी पसर गयी। मगर इस बार दीप्ति ने ख़ामोशी को तोडा और आकाश से उसके बारे में पूछा । उसका ये हाल कैसे हुआ सब जानना चाहती थी दीप्ति । सारी रात उसने इसी उधेड़बुन में काटी थी मगर जैसे ही दीप्ति ने ये प्रश्न किया आकाश तिलमिला उठा जैसे जलते हुए तवे पर उसका पाँव पड़ गया हो सारे जहान का दर्द उसके चेहरे पर उतर आया था । ना जाने कौन सी पीड़ा समेटे था कि दीप्ति के पूछने पर वो एकदम फूट -फूटकर रोने लगा । दीप्ति के लिए ये एक अप्रत्याशित घटना थी । वो चेहरा जिसे उसने हमेशा हँसता -खिलखिलाता, जीवन की उमंगों से भरपूर देखा था वो आज उसके आगे रो रहा था । दीप्ति से बर्दाश्त नही हो रहा था मगर क्या करती किस तरह उसे सांत्वना दे उसे समझ नही आ रहा था । जब आकाश रोने के बाद कुछ हल्का हुआ तो उसने बताना शुरू किया ---------------क्रमशः .........................


मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

ऐसा आखिर कब तक?

यूँ लगा दहकता अंगारा सीने पर रख दिया हो किसी ने ---------जैसे ही दीप्ति ने आकाश को देखा । ये क्या हाल हो गया था आकाश का ? वो तो ऐसा ना था । आज ५ बरस बाद जब उसने आकाश को देखा तो ज़िन्दगी के बीते लम्हे सामने आ खड़े हुए ।

दीप्ति ने आकाश को उठाया और अपने साथ अपने घर ले गयी । उसे दवाई देकर सुला दिया और खुद अतीत की गलियों में विचरने लगी । उसे याद है आज भी जब आकाश उसकी ज़िन्दगी में आया था ।
हँसता मुस्कुराता जिंदादिल इंसान था आकाश । हर कोई उसके साथ के लिए तरसता था । हर महफ़िल की जान हुआ करता था । सबसे बड़ी चीज उसकी शख्सियत की ----------उसकी आवाज़ ------जब वो गाता था तो यूँ लगता जैसे सावन की रिमझिम फुहार पड़ रही हों ----------सारा आलम उस पल रुक जाता था । हर कोई मंत्रमुग्ध सा उसकी आवाज़ सुनता और उसी में खो जाता । गाना कब ख़त्म होता किसी को पता ही नही चलता जब तक कि खुद वो इस बात का बोध ना कराता । ऐसे ही एक महफ़िल में दीप्ति की मुलाक़ात आकाश से हुई थी और आकाश की आवाज़ सुनते ही दीप्ति को यूँ लगा जैसे दूर पहाड़ों की वादियों से कोई उसे आवाज़ दे रहा हो , जैसे ना जाने कितने जलतरंग एक साथ बज रहे हों ।आकाश की आवाज़ ने उसका तन मन भिगो दिया था और वो उसकी गहराइयों में डूबती चली गयी। उस दिन दीप्ति आकाश की आवाज़ को अपना दिल दे आई थी ।
दीप्ति एक ऑफिस में कार्यरत साधारण रूप रंग वाली मध्यमवर्गीय लड़की थी । उसकी कोई बहुत ऊँची आकांक्षायें नही थी । बस उसमें आकर्षण था तो सिर्फ एक ---------उसकी आँखें । आँखें क्या थी जैसे ज़िन्दगी वहीँ बसती हो । ऐसी नशीली स्वप्निल आँखें थी कि जो एक बार देख लेता तो भूल नही सकता था । बस सिर्फ यही एक उसके अस्तित्व की सबसे बड़ी पहचान थी बाकी सब उसमें साधारण ही था।
उसके पिता भी नौकरीपेशा इंसान थे और एक भाई और एक बहन की शादी होचुकी थी और वो उनकी तीसरी संतान थी। एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार की साधारण सी लड़की थी इसलिए किसी भी तरह के अरमानो को अपनी ज़िन्दगी में जगह नही देती थी । उसे अपनी सीमा पता थी। मगर जिस दिन से आकाश की आवाज़ सुनी थी , सारी बंदिशें , सारी सीमाएं ना जाने कहाँ लुप्त हो गयी थी। अब तो उसे हर जगह सिर्फ आकाश की आवाज़ सुनने की इच्छा होती और वो चाहती किसी तरह एक बार फिर वो ही आवाज़ सुनने को मिले। एक अजीब सी बेचैनी, एक तड़प ना जाने कब चुपके से दिल में घर कर गयी थी ।
उधर आकाश यूँ तो ना जाने रोज कितनी ही लड़कियों से मिलता था । एक से बढ़कर एक सुन्दर होती मगर जिस दिन से उसने दीप्ति को देखा उसकी आँखों की शोखी में अपना सब कुछ लुटा बैठा था ।दिन का चैन रात की नींद , सब ना जाने कहाँ उड़नछू हो गए थे । ना जाने कौन सा जादू था उन आँखों में कि उसे हर पल अपने आस -पास उन्ही निगाहों की मौजूदगी का अहसास होता। यूँ तो आकाश पेशे से इंजिनियर था । घर में माँ, बाप की इकलौती संतान होने के कारण उनकी आँखों का तारा था । किसी बात की ज़िन्दगी में कोई कमी ना थी। बस कमी थी तो इतनी कि कोई अच्छी सी लड़की जीवनसाथी बन उसकी ज़िन्दगी में आ जाती।
इधर जबसे उसने दीप्ति को देखा था अपना दिल अपना चैन सब उसकी निगाहों पर लुटा बैठा था। ना जाने कैसी कशिश थी उन आँखों में जिनसे वो खुद को आज़ाद नही कर पा रहा था इसलिए एक दिन उसने पता लगाने की कोशिश की कि वो थी कौन? इसके लिए उसने अपने उसी दोस्त को कहा जिसने उसे महफ़िल में बुलाया था । वो पार्टी आकाश के दोस्त समीर ने दी थी इसलिए उसने समीर से दीप्ति के बारे में जानना चाहा तो पता चला कि वो तो समीर की दूर के रिश्ते की बहन है । बस इतना ही काफी था आकाश के लिए। किसी तरह उसने समीर को उससे मिलने के लिए मनाया और फिर एक दिन योजना के मुताबिक वो समीर के साथ दीप्ति के ऑफिस के नीचे पहुँच गया और वहां जब दीप्ति आई तो समीर ने उन दोनों का परिचय करवाया और चला गया क्यूँकि वो जानता था कि आकाश के साथ दीप्ति को छोड़ने में कोई बुराई नही है । आकाश एक समझदार इंसान है वो कोई ऐसी बात नही करेगा जो उसकी सीमा से बाहर हो ।
अब आकाश और दीप्ति आमने -सामने थे । दोनों की चिर- प्रतीक्षित अभिलाषा आज पूर्ण हो गयी थी । दोनों ही एक दूसरे से मिलना चाहते थे मगर आज जुबान साथ छोड़ गयी थी । काफी देर दोनों के बीच यूँ ही मौन पसरा रहा । आकाश तो वैसे भी दीप्ति को देखते ही उसकी आँखों के जादुई आकर्षण में खो गया था । अब उसे अपना होश कहाँ था और दीप्ति वो तो अभी तक इस आश्चर्य से बाहर ही नही आ पा रही थी कि आकाश उसके सामने खड़ा है । उसने तो स्वप्न में भी नही सोचा था कि इस तरह अचानक आकाश से यूँ मुलाक़ात होगी। काफी देर दोनों यूँ ही जडवत से एक दूसरे को देखते रहे। फिर जब काफी देर बाद उन्हें अपनी स्थिति का आभास हुआ तो दोनों साथ- लगे। सबसे पहले आकाश ने बात शुरू की और जैसा कि उसकी आदत थी कभी भी खामोश ना रहना और हँसते हँसाते रहना वो यहाँ भी बदस्तूर जारी था और दीप्ति सिर्फ 'हाँ' 'हूँ' में जवाब देती उसकी हर अदा पर फ़िदा होती जा रही थी। नारी मन की कोमल भावनाएं वो इतनी जल्दी किसी को दिखा भी नहीं सकती थी और ना ही किसी को बता सकती थी। बस इसी प्रकार धीरे -धीरे दोनों का मिलना जारी रहा । एक दूसरे को अच्छी तरह जान चुके थे दोनों और प्रेम का इज़हार भी हो चुका था । बस अब तो सिर्फ शहनाई बजनी बाकी रह गयी थी मगर नियति को तो कुछ और ही मंजूर था।

क्रमशः .......................

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010

भाव सुमन

आनन्द ही आनन्द समाया है
सतगुरु तुम्हारे चरणों में
अनमोल वचन अब पाया है
सतगुरु तुम्हारी वाणी में
आनन्द ही आनन्द .......................

मैं कैसे भुला दूँ नेह तेरा
तुमने ही मुझे अपनाया है
दुनिया ने मुझे ठुकराया है
सतगुरु ने ज्ञान जगाया है
आनन्द ही आनन्द ........................

मैं दीन- हीन हूँ अज्ञानी
तुम हो चराचर के स्वामी
मुझे मुझसे आज मिलाया है
वो दिव्य रूप दिखलाया है
आनन्द ही आनन्द ..........................

मैं माया बीच भटकती हूँ
माया के हाथों ठगती हूँ
सतगुरु ने दीप जलाया है
वो आत्मज्ञान जगाया है
आनन्द ही आनन्द . ...........................

सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

मैं तेरी हो जाऊँ

कान्हा
प्रेम तेरा
वासंतिक हो जाये
ह्रदय- सुमन
मेरा खिल जाये
प्रेम पुष्पित
पल्लवित हो जाये
भक्ति की सरसों
मन में लहराए
पीत रंग
हर अंग समाये
जीव ब्रह्म
धानी हो जाये
द्वि का हर
परदा हट जाये
चूनर मेरी
श्यामल हो जाये
श्याम -श्याम
करते -करते
श्यामल -श्यामल
मैं हो जाऊं
श्याम रस पीते- पीते
मैं भी रसानंद हो जाऊं
श्याम खाऊँ
श्याम पियूँ
श्याम हँसूँ
श्याम रोऊँ
श्याम- श्याम
करते -करते
श्याम ही हो जाऊं
कान्हा मैं
तेरी हो जाऊँ
कान्हा मैं
तेरी हो जाऊँ