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गुरुवार, 21 जून 2018

जब से तुम बिछड़े हो प्रियतम

मरघट का सन्नाटा पसरा है 
मन प्रेत सा भटका है 
जब से तुम बिछड़े हो प्रियतम 
हर मोड़ पे इक हादसा गुजरा है 

मैं तू वह में ही बस जीवन उलझा है 
ये कैसा मौन का दौर गुजरा है 
चुभती हैं किरचें जिसकी 
वो दर्पण चूर चूर हो बिखरा है 

जब से तुम बिछड़े हो प्रियतम 
हर मोड़ पे इक हादसा गुजरा है 


प्रेमाश्रु से न श्रृंगार किया है 
मन यादों के भंवर में डूबा है 
आवारा हो गयी रूह जिसकी 
उसका रोम रोम सिसका है 

जब से तुम बिछुड़े हो प्रियतम 
हर मोड़ पे इक हादसा गुजरा है 

मंगलवार, 19 जून 2018

फिर वो स्त्री हो या ईश्वर

मैं भाग रही हूँ तुमसे दूर
अब तुम मुझे पकड़ो
रोक सको तो रोक लो
क्योंकि
छोड़कर जाने पर सिर्फ तुम्हारा ही तो कॉपीराइट नहीं

गर पकड़ सकोगे
फिर संभाल सकोगे
और खुद को चेता सकोगे
कि
हर आईने में दरार डालना ठीक नहीं होता
शायद तभी
तुम अपने अस्तित्व से वाकिफ करा पाओ
और स्वयं को स्थापित
क्योंकि
मन मंदिर को मैंने अब धोकर पोंछकर सुखा दिया है

एक ही देवता था
एक ही तस्वीर
जिसे तुमने किया चूर चूर
अब
नए सिरे से मनकों पर फिर रही हैं ऊँगलियाँ
जिसमे तुम्हारे ही अस्तित्व पर है प्रश्नचिन्ह
तो क्या इस बार कर सकोगे प्रमाणित खुद को
और रोक सकोगे अपने एक प्रेमी को बर्बाद होने से
संकट के बादल छाये हैं तुम पर इस बार
और
शुष्क रेत के टीलों से आच्छादित है मेरे मन का आँगन
जिसमे नकार की ध्वनि हो रही है गुंजायमान
कहो इस बार कैसे करोगे नकार को स्वीकार में प्रतिध्वनित ?

अस्तित्व की स्वीकार्यता ही मानक है ज़िन्दगी की
फिर वो स्त्री हो या ईश्वर

रविवार, 17 जून 2018

मैं बनूँ सुवास तुम्हारी कृष्णा


मैं बनूँ सुवास तुम्हारी कृष्णा
करो स्वीकार मेरी ये सेवा

जाने कितने युग बीते
जाने कितने जन्म रीते
पल पल खाए मुझे ये तृष्णा
मैं बनूँ सुवास तुम्हारी कृष्णा

जाने कब बसंत बीता
जाने कब सावन रीता
चेतनता हुई मलीन कृष्णा
मैं बनूँ सुवास तुम्हारी कृष्णा

जाने कितनी प्यासी हूँ
जन्म जन्म की दासी हूँ
चरण शरण आई कृष्णा
मैं बनूँ सुवास तुम्हारी कृष्णा

(एक बहुत लम्बे अंतराल बाद कान्हा ने बाँसुरी बजाई)