ये फेरे जन्म मरण के
लगाये तू जा रहा है
कोल्हू के बैल सा
चलता ही जा रहा है
कभी उनकी गली के फेरे
कभी मंडप के हैं फेरे
बस फेरों के फेर में
फिरता ही जा रहा है
कहीं रुसवाइयों के डेरे
कभी डॉक्टर है घेरे
कहीं मंदिर के हैं फेरे
इन फेरों के फेर में
फिरता ही जा रहा है
इक पल घुमा ले वापस
ज़रा ज़िन्दगी की पिक्चर
क्या खोया क्या पाया
इन फेरों के चक्कर में
पशुओं सा जीवन बस
बिता के जा रहा है
इन फेरों के फेर में
फिरता ही जा रहा है
कुछ पल तू ठहर जा
और आत्मज्योति जगा ले
किस मुख से जायेगा
कैसे नज़र मिलाएगा
कुछ अपने लिए भी कर ले
कुछ तो सुकून पा ले
अब फेरों के फेर से
मुक्त हो जा ओ प्यारे
कट जायेंगे सब तेरे
ये जन्म मरण के फेरे
15 टिप्पणियां:
उस दिव्य द्रष्टा जगत नियन्ता के प्रति कर्तव्य से भरती हुई कविता ,,, हम तो बस यही कहेंगे
ओ समग्र पालक अनुभूत करा दो
अपनी उपस्थिति को ,,,,
स्वयं निष्ठ कर दो मेरी स्थिति को ,,,
इन विहंगम फेरो के झंझा वत से निकाल ,,,
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
वही शैली वही भाषा,
समाहित गूढ़ परिभाषा!
वो देखो जा रही भागी,
निराशा संग ले आशा!!
ये फेरे जन्म मरण के
लगाये तू जा रहा है
कोल्हू के बैल सा
चलता ही जा रहा है
कभी उनकी गली के फेरे
कभी मंडप के हैं फेरे
बस फेरों के फेर में
फिरता ही जा रहा है
कहीं रुसवाइयों के डेरे
कभी डॉक्टर है घेरे
SACHAI BAYAAN KI HAI VANDAN JI..
Jeevan ke Falsafe ko behatreen dhang se darshati kavita..
क्या बात है , लाजवाब लगी कविता ।
दर्शन के भाव लिये सुन्दर रचना
ik aur naya but jordar prayas, aapke lekhan main dino din paina pan aata ja raha hai, ishwar kare aapke lakhne ke chata dino din ujwal hokar failte rahe
फ़ेरों के फ़ेर में ...बहुत सुंदर कलम फ़ेरी है आपने जी ..शुभकामनाएं
अजय कुमार झा
vandana ji,
bahut he sundar bhaav...
shubhkaamnaaayein!
वंदना जी ,
बहुत सुन्दर, सहज दार्शनिक भाव लिए हुए एक अच्छी रचना !!
कुछ पल तू ठहर जा
और आत्मज्योति जगा ले
किस मुख से जायेगा
कैसे नज़र मिलाएगा
कुछ अपने लिए भी कर ले
कुछ तो सुकून पा ले
......शाश्वत सत्य.....
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से....
http://laddoospeaks.blogspot.com
sab 99 ka fer hai.. :)
बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई !
बढ़िया अन्दाज़ है ।
vandana ji
ati uttam likha hai.
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