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शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

खामोशी की डगर और उम्मीद की किरण …………………………भाग 3

इधर रोहित जब से पूजा से मिला उसमे परिवर्तन आना चालू हो गया. अब उसमे पहले से ज्यादा गंभीरता आने लगी .उसके मन में भावों का सागर अँगडाइयाँ लेने लगता मगर कहे किससे ? कौन समझेगा? इसी उहापोह में धीरे धीरे रोहित ने अपने मन की बातें अपनी डायरी  में लिखनी शुरू कर दीं कविताओं के रूप में. ना जाने क्या- क्या लिखता रहता और कई बार पूजा को भी सुनाता तो वो बहुत खुश होती और रोहित को लिखने को प्रेरित करती रहती उसे क्या पता था कि रोहित के मन में क्या चल  रहा है या वो ये सब उसके लिए लिख रहा है . तो वो जैसे सबको वैसे ही रोहित से भी व्यवहार करती ..................

अब आगे --------------



समय अपनी रफ़्तार से गुजरता रहा और इस बीच रोहित की भी गृहस्थी बस गयी और वो दो प्यारे- प्यारे बच्चों की सौगात से लबरेज़ हो चुका था मगर रोहित ने कभी भी अपने ह्रदय के बंद दरवाज़े किसी के आगे नहीं खोले थे . ये तो उसका निजी प्रेम था , अपनी पीड़ा थी , अपनी चाहत थी जो उसे प्रेरित करती थी और उसने पूजा की प्रतिमा को अपने ह्रदय के मंदिर में विराजमान कर लिया था . उससे प्रेरित होकर ही अपने भावों को संगृहीत करता रहता था. 

अपनी गृहस्थी  से, अपनी जिम्मेदारियों से कभी मूँह नहीं मोड़ा . हमेशा हर जगह तत्पर रहता मगर अपने दिल के अन्दर किसी को भी झाँकने की इजाज़त नहीं देता यहाँ तक कि अपनी पत्नी निशा को भी नहीं मगर उसे उसके अधिकार और प्यार दोनों से कभी वंचित भी नहीं किया ........उसे जो प्यार , सम्मान देना चाहिए और जो हर स्त्री की चाह होती है उसमे कभी कोई कमी नहीं आने दी .

रोहित ने प्रेम को , अपनी प्रेरणा को हमेशा जीवंत रखा अपने अहसासों में , अपनी कविताओं में , जहाँ वो अपने प्रेम के साथ एक ज़िन्दगी जी लेता था . एक दिन किसी काम से पूजा उनके घर आई और रोहित के कमरे में ही बैठी थी और जब निशा घर के कामों में लग गयी  तो पूजा मेज पर रखी चीजें देखने लगी और तभी उसके हाथ रोहित की डायरी हाथ लगी और वो उसे पढने लगी. पढ़ते - पढ़ते पूजा ये तक भूल गयी कि कितना वक्त हो गया और वो कब से बैठी है . उस डायरी में यूँ तो कवितायेँ ही थीं . उनसे से कुछ उसने सुनी भी थीं मगर तब कभी ध्यान नहीं दिया क्यूँकि सुनने और पढने में फर्क होता है मगर उस दिन जब वो पढ़ रही थी तो एक बात ने उसका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया कि जितनी भी कवितायें थी उसमे एक चीज़  खास थी ...........वो था एक नाम ---------पूजा . और इस बात ने उसे अन्दर तक हिलाकर रख दिया. जब उसने देखा हर कविता में पूजा शब्द किसी ना किसी बहाने प्रयोग किया गया है तो वो सन्न रह गयी . अब पूजा इतनी नादान तो थी नहीं जो समझ ना पाती  इसका अर्थ. आखिर शादीशुदा औरत थी भरपूर गृहस्थी  की  मलिका और वैसे भी औरत की छठी इन्द्रिय बहुत तेज़ होती है जो उसे पहले ही आगाह कर देती है . ऐसा ही अब हुआ.


पूजा को समझ आने लगा था कि माज़रा कुछ और भी है मगर वो इसे किसी पर ज़ाहिर नहीं होने देना चाहती थी , पहले अपनी तरफ से इत्मिनान करना चाहती थी . अभी वो इन सब ख्यालों में डूबी हुई ही थी कि उसे पता भी ना चला कि कब से रोहित आकर  उसके पीछे खड़ा है . वो तो रोहित ने जब कहा , "पूजा जी , आज आपके कदम इस गरीब की दहलीज  तक कैसे आ गए ? और ये हमारी अमानत पर दिन -दहाड़े डाका कैसे डाल  रही हैं ?" तब पूजा चौंकी और खुद को संयत करते हुए बोली ,"रोहित , तुम क्या समझते हो , तुम्हारी चोरी कोई पकड़ नहीं सकता. पूजा नाम है मेरा , बड़े बड़ों को पानी पिला देती हूँ ."

इतना सुनते ही रोहित का चेहरा सफ़ेद पड़ गया उसने सोचा ना जाने पूजा को क्या पता चल गया , और जब मन में कुछ छुपा हो तब तो ऐसा होना स्वाभाविक है . क्या वाकई पूजा उसके दिल का हाल जान गयी? अभी रोहित ये सोच ही रहा था कि पूजा बोल पड़ी , " अरे रोहित क्या हुआ? चोरी पकडे जाने से डर गए , देखो तो कैसे पसीने छूट रहे हैं ?" मगर जब पूजा को लगा कि कहीं रोहित को शक ना हो जाए एकदम बात पलटकर बोली , "क्यूँ बच्चू , इतनी सारी कवितायेँ लिख लीं और मुझे सुनाई भी नहीं , पहले तो बड़ी जल्दी- जल्दी सुनाते थे मगर अब तो इतने दिन हो गए क्या हुआ?" तब रोहित की सांस में सांस आई . थोड़ी देर हँसी - मजाक करके पूजा तो चली गयी मगर रोहित सोचने लगा कि आज तो बात आई- गयी हो गयी मगर पूजा जितनी होशियार है ये वो जानता था .कहीं वो उसके भीतर के प्रेम के दर्शन ना कर ले इसलिए थोडा संभलकर रहना होगा. उसका प्रेम उसके लिए पूजा थी और अपनी आराधना में वो पूजा का भी खलल नहीं चाहता था ..........उसे प्रेम का प्रतिकार नहीं चाहिए था सिर्फ पूजा का अधिकार ही चाहिए था और वो उसके पास था ही मगर अपने प्रेम को सार्वजानिक नहीं करना चाहता था ............प्रेम ने कब प्रेम के बदले प्रेम चाहा है वो तो प्रेमी की ख़ुशी में ही खुश रहता है ..........उसके अधरों की एक मुस्कान के लिए अपना सब कुछ कुर्बान करने के लिए तैयार रहता है .........जब उसका प्रेम इस ऊँचाई पर पहुँच गया तो वो नहीं चाहता था कि उसके प्रेम पर कोई ऊंगली उठाये इसलिए ...................


क्रमशः ...................

11 टिप्‍पणियां:

समयचक्र ने कहा…

बहुत ही रोचक प्रस्तुति ....

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

कहानी एक नया मोड़ ले रही है... रोहित पूजा के प्रेम की आराधना ख़ामोशी से कर रहा है.. ट्विस्ट है कहानी में .. इन्तजार कर रहा हूँ... अगली कड़ी का ..

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

हम्म प्रेम की पराकाष्ठा ....दोनों कड़ियाँ एक साथ पढ़ीं ....अच्छी जा रही है कहानी ...क्या वास्तव में ऐसा पूज्य प्रेम होता है ?

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

परिस्थितियाँ गहरा रही हैं।

ZEAL ने कहा…

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Story has taken a beautiful turn. You truly made me curious.

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Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

सांस थामे पढ रहे हैं
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वह खूबसूरत चुड़ैल।
क्‍या आप सच्‍चे देशभक्‍त हैं?

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…

kahani rochak hai. pej save kar liya hai...aagey bhi padhna hai...

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…

vandanaa ji... ye bhi aapka blog .. umda..

राजेश उत्‍साही ने कहा…

यह तो होना ही था।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

जब उसका प्रेम इस ऊँचाई पर पहुँच गया तो वो नहीं चाहता था कि उसके प्रेम पर कोई ऊंगली उठाये इसलिए ....
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अगली कड़ी की प्रतीक्षा है!

kshama ने कहा…

Jigyasa badhi jaa rahee hai!