ये दिल के गली कूचे
भर चुके हैं तेरे
भर चुके हैं तेरे
प्रेम के गुलाबों से
अब उमड़ते भावों
की गागर
अब उमड़ते भावों
की गागर
छलक छलक
जाती है
वेदना की अधिकता
अश्रु सिन्धु में बही
जाती है
कौन हो तुम ?
कहाँ हो तुम?
कैसे हो तुम?
नहीं जानती
मगर फिर भी
ह्रदय कुञ्ज में
तुम्हारे प्रेम का
बीज रोपित हो चुका है
मेरे अश्रुओं में
बहने वाले
एक अक्स तो
अपना दिखा जाओ
तुम हो कहीं
जानती हूँ
मगर पाने की चाह
अपनी प्रबलता में
सारे बांध तोड़ देती है
मुझमे समाहित तुम
मगर फिर भी
विलगता का अहसास
वेदनाओं के ज्वार में
उफन जाता है
शायद अभी
तड़प अपने जाती है
वेदना की अधिकता
अश्रु सिन्धु में बही
जाती है
कौन हो तुम ?
कहाँ हो तुम?
कैसे हो तुम?
नहीं जानती
मगर फिर भी
ह्रदय कुञ्ज में
तुम्हारे प्रेम का
बीज रोपित हो चुका है
मेरे अश्रुओं में
बहने वाले
एक अक्स तो
अपना दिखा जाओ
तुम हो कहीं
जानती हूँ
मगर पाने की चाह
अपनी प्रबलता में
सारे बांध तोड़ देती है
मुझमे समाहित तुम
मगर फिर भी
विलगता का अहसास
वेदनाओं के ज्वार में
उफन जाता है
शायद अभी
चरम पर नहीं
पहुंची है
शायद अभी
भटकन बाकी है...................
18 टिप्पणियां:
कौन हो तुम ?
कहाँ हो तुम?
कैसे हो तुम?
नहीं जानती
मगर फिर भी
ह्रदय कुञ्ज में
तुम्हारे प्रेम का
बीज रोपित हो चुका है
--
बहुत सुन्दर भावों के साथ आपने रचना प्रस्तुत की है!
--
इसमें अन्तरमन के विचारों का बढ़िया विश्लेषण किया गया है!
प्रेम को जितनी विविधता से आप व्यक्त करती हैं .. कर रही हैं... कुछ प्रत्यक्ष और कुछ अप्रत्यक्ष विम्ब के माध्यम से वह विलक्षण है.. नदी की तरह अविरल बहती कविता पुनर्पठनीय है..
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...प्रवाहपूर्ण रचना ..
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...प्रवाहपूर्ण रचना ..
मेरे अश्रुओं में
बहने वाले
एक अक्स तो
अपना दिखा जाओ
तुम हो कहीं
जानती हूँ
.......
प्रेम की अभिभूत कर देने वाली प्रस्तुति . शुभकामना .
कुछ भी हो जाये, जीवनपर्यन्त कुछ न कुछ भटकन बनी रहती है।
सुंदर भावो से सजी आप की रचना धन्यवाद
सुन्दर अभिव्यक्ति .
वंदना जी, जीवन के मर्म को बखूबी समझा है आपने।
---------
त्रिया चरित्र : मीनू खरे
संगीत ने तोड़ दी भाषा की ज़ंजीरें।
कविता निश्चय ही सुंदर है. प्रोफ़ाइल फ़ोटो भी नई नई लगी...
बहुत सुन्दर भाव है वंदना
प्रेमानुभूति को बहुत ही सुन्दर शब्द सामंजस्य के साथ आपने अभिव्यक्त किया है,ये खूबी मानी जाएगी आपकी कविता में.
बहुत सुन्दर कविता
"शायद अभी भटकन बाकी है "
अति सुन्दर... यह भटकन ही तो सफर कि मिठास है कभी कभी.,.
सुन्दर प्रेमानुभूति। बधाई इस बेहतरीन रचना के लिये।
मुझमे समाहित तुम
मगर फिर भी
विलगता का अहसास
कस्तूरी कुंडली बसे, मृग ढूढे वन माहे.
शायद अभी
भटकन बाकी है...................
yah bhatkan jivan ke ant tak rahta hai
कमाल की रचना लिखी है। बधाई हो।
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
==============================
प्रेम पर एक सदाबहार टिप्पणी-
==================
प्रेम सुपरफ्लेम है।
मजेदार गेम है॥
हार-जीत का इसमें
होता न क्लेम है॥
-डॉ० डंडा लखनवी
एक टिप्पणी भेजें