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बुधवार, 8 दिसंबर 2010

शायद अभी भटकन बाकी है ...................

ये दिल के गली कूचे
भर चुके हैं तेरे
प्रेम के गुलाबों से
अब उमड़ते भावों
की गागर 
छलक छलक
जाती है
वेदना की अधिकता
अश्रु सिन्धु में बही
जाती है
कौन हो तुम ?
कहाँ हो तुम?
कैसे हो  तुम?
नहीं जानती
मगर फिर भी
ह्रदय कुञ्ज में
तुम्हारे प्रेम का
बीज रोपित हो चुका है
मेरे अश्रुओं में
बहने वाले
एक अक्स तो
अपना दिखा जाओ
तुम हो कहीं
जानती हूँ
मगर पाने की चाह
अपनी प्रबलता में
सारे बांध तोड़ देती है
मुझमे समाहित तुम
मगर फिर भी
विलगता का अहसास
वेदनाओं के ज्वार में
उफन जाता है
शायद अभी
तड़प अपने
चरम पर नहीं

पहुंची  है
शायद अभी
भटकन बाकी है...................

18 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

कौन हो तुम ?
कहाँ हो तुम?
कैसे हो तुम?
नहीं जानती
मगर फिर भी
ह्रदय कुञ्ज में
तुम्हारे प्रेम का
बीज रोपित हो चुका है
--
बहुत सुन्दर भावों के साथ आपने रचना प्रस्तुत की है!
--
इसमें अन्तरमन के विचारों का बढ़िया विश्लेषण किया गया है!

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

प्रेम को जितनी विविधता से आप व्यक्त करती हैं .. कर रही हैं... कुछ प्रत्यक्ष और कुछ अप्रत्यक्ष विम्ब के माध्यम से वह विलक्षण है.. नदी की तरह अविरल बहती कविता पुनर्पठनीय है..

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...प्रवाहपूर्ण रचना ..

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...प्रवाहपूर्ण रचना ..

मेरे भाव ने कहा…

मेरे अश्रुओं में
बहने वाले
एक अक्स तो
अपना दिखा जाओ
तुम हो कहीं
जानती हूँ
.......
प्रेम की अभिभूत कर देने वाली प्रस्तुति . शुभकामना .

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कुछ भी हो जाये, जीवनपर्यन्त कुछ न कुछ भटकन बनी रहती है।

राज भाटिय़ा ने कहा…

सुंदर भावो से सजी आप की रचना धन्यवाद

ASHOK BAJAJ ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति .

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

वंदना जी, जीवन के मर्म को बखूबी समझा है आपने।

---------
त्रिया चरित्र : मीनू खरे
संगीत ने तोड़ दी भाषा की ज़ंजीरें।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

कविता निश्चय ही सुंदर है. प्रोफ़ाइल फ़ोटो भी नई नई लगी...

vijay kumar sappatti ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव है वंदना

Kunwar Kusumesh ने कहा…

प्रेमानुभूति को बहुत ही सुन्दर शब्द सामंजस्य के साथ आपने अभिव्यक्त किया है,ये खूबी मानी जाएगी आपकी कविता में.

शिवा ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता

जयंत - समर शेष ने कहा…

"शायद अभी भटकन बाकी है "
अति सुन्दर... यह भटकन ही तो सफर कि मिठास है कभी कभी.,.

निर्मला कपिला ने कहा…

सुन्दर प्रेमानुभूति। बधाई इस बेहतरीन रचना के लिये।

M VERMA ने कहा…

मुझमे समाहित तुम
मगर फिर भी
विलगता का अहसास
कस्तूरी कुंडली बसे, मृग ढूढे वन माहे.

Suman Sinha ने कहा…

शायद अभी
भटकन बाकी है...................
yah bhatkan jivan ke ant tak rahta hai

डॉ० डंडा लखनवी ने कहा…

कमाल की रचना लिखी है। बधाई हो।
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
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प्रेम पर एक सदाबहार टिप्पणी-
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प्रेम सुपरफ्लेम है।
मजेदार गेम है॥
हार-जीत का इसमें
होता न क्लेम है॥
-डॉ० डंडा लखनवी