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शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

कृष्ण लीला ………भाग 1

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
श्री गणेशाय नमः
श्री सरस्वत्यै नमः
श्री सदगुरुभ्यो नमः

दोस्तों
आज से श्रीमद भागवत के दशम स्कंध में जो भगवान कृष्ण की लीलाएं हैं उनको काव्य के रूप में लिखने की कोशिश की है ............अब ये हमारे कान्हा की मर्ज़ी है कब तक और क्या क्या लिखवाते हैं और आप सबको पढवाते हैं. ये मेरा इस तरह का पहला प्रयास है कोई त्रुटि हो तो माफ़ी चाहती हूँ.

मेरे ख्याल से गुरुपूर्णिमा से उत्तम कोई दिन नहीं होगा ये श्रृंखला शुरू करने का .........सब प्रभु प्रेरणा से हो रहा है.

जब शुकदेव जी परीक्षित को भगवान के दिव्य चरित्र सुना रहे थे और नौ स्कंध तक भगवान के विभिन्न अवतारों की कथा सुना चुके और देख लिया कि अब प्याला भर गया है तब इतना कह शुकदेव जी चुप हो गए उस वक्त परीक्षित व्याकुल हो गए क्योंकि अब तो प्रभु के चरित्रों का समय आया था और इसी वक्त शुकदेव जी चुप हो गए तब परीक्षित उनसे प्रार्थना करने लगे .........शायद शुकदेव जी भी देखना चाहते थे कि प्यास कितना बढ़ी है .




चतुर्थ दिवस की कथा ने कराया
परीक्षित को ज्ञान बोध
कर जोड़ कहने लगे 

शुकदेव जी
सूर्य वंशी राजाओं का
उद्भव आपने सुनाया है
जो मेरे मन को भाया है
ज्ञानोदय अब हो गया
मुक्ति का मार्ग दिख गया
कर कृपा अब कुछ
यदुवंशियों का हाल सुनाइए
और मेरे जीवन को सफल बनाइये
जिसमे जन्मे चन्द्र किरण स्वरूपी
आनंदघन कन्हैया लाल हैं 

उनकी बाल लीलाओं का अब दिग्दर्शन कराइए
उनके दिव्य चरित्रों का अब पान कराइए
कैसे मारा कंस को वो सब बतलाइए
इस अमृत तत्व रुपी सुधा का पान कराइए
मेरे मन मंदिर में
कान्हा प्रेम का सागर बहाइये
मेरे ह्रदय कमल पर
ठाकुर जी को बिठाइए 


इतना सुन शुकदेव जी कहने लगे
राजन चार दिन से तुमने
कुछ ना खाया पीया है
कुछ खा पीकर चित्त ठिकाने कर लेना
उसके बाद कृपामृत का पान कर लेना
इतना सुन राजन यो कहने लगे
नौ स्कंधों में जो आपने
अमृत पान कराया है
कर्ण दोने से मैंने वो
अमृत पान किया है
अब ना क्षुधा तृषा कोई सताती है
अब तो सिर्फ मनमोहन की
कथा ही याद आती है
इतना सुन प्रफुल्लित शुकदेव जी
प्रभु के चरणों में ध्यान लगा यो कहने लगे
शूरसेन राजा की पञ्च कन्याएं
और दश पुत्र हुए
बड़े पुत्र वासुदेव का विवाह किया
सत्रह पटरानियों को उसने
अंगीकार किया
अठारहवीं शादी जब
देवकी से होने लगी
आकाशवाणी तब ये होने लगे
आठवां पुत्र देवकी का
कंस को मारेगा
इतना सुन कंस ने
वासुदेव देवकी को कैद किया
वहीँ कैद में परब्रह्म ने जन्म लिया
इतना सुन राजा यों कहने लगा
गुरुदेव कृपा कर बतलाइए
विस्तार से सारी कथा सुनाइए
मेरे प्रभु की यूँ ना पहेलियाँ बुझाइए
जिसे सुनने को मेरा मन मचलता है
उस आनंद के सागर में मेरी भी
डुबकी लगवाइए
वो अलौकिक दिव्य अमृतपान कराइए 





क्रमश:

20 टिप्‍पणियां:

Bharat Bhushan ने कहा…

सुंदर वर्णन कृष्णलीला का.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सावन के आगमन पर भगवान श्रीकृष्ण जी का स्मपण बहुत सुख देता है! आलेख और भजन बहुत बढ़िया लगा!

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

वन्दनीय !!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

shubharambh...shankhdhwani ke saath

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत ही सुन्दर कविता।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

उत्तम प्रयास ..वासुदेव की देवकी के साथ अट्ठारहवीं शादी थी यह बात पता नहीं थी ...बाकी सतरह रानियों का कहीं ज़िक्र नहीं पढ़ा कभी ..आभार ..

Shikha Kaushik ने कहा…

sundar prayas .jari rakhiye ..

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आज 15- 07- 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....


...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
____________________________________

vidhya ने कहा…

सुंदर वर्णन कृष्णलीला का


लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/

आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.

अगर आपको love everbody का यह प्रयास पसंद आया हो, तो कृपया फॉलोअर बन कर हमारा उत्साह अवश्य बढ़ाएँ।

सदा ने कहा…

बहुत ही सुन्‍दर वर्णन किया है आपने ...शुभकामनाओं के साथ बधाई भी ।

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

सुन्दर श्रृखला... भक्तिमय प्रारंभ....प्रतीक्षा है आगे के कथा की.... बहुत सुन्दर...

रेखा ने कहा…

इस दिव्य और अलौकिक धारा का श्रवण करवाने के लिए बहुत -बहुत धन्यवाद .........

बेनामी ने कहा…

वन्दना जी - बहुत ही सुन्दर | मुझे कृष्ण कथा बहुत ही प्रिय है - आपका बहुत आभार यह श्रुंखला शुरू करने के लिए ..

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

शुभ दिवस पर शुभ कार्य का शुभारम्भ.शुभकामनायें.

Vaanbhatt ने कहा…

अलौकिक...दिव्य अमृतपान...

Dr Varsha Singh ने कहा…

भक्ति एवं श्रद्धामय सुन्दर रचना....

Sapna Nigam ( mitanigoth.blogspot.com ) ने कहा…

चलिये बहुत उपयोगी श्रृंखला शुरु की हैं - सावन के साथ. हर कड़ी में हम भी अपना ज्ञानवर्धन कर लेंगे.

Rakesh Kumar ने कहा…

सद्गुरू की सादर वंदना
कृष्ण लीला की वंदना.
सब संतों की वंदना.
वंदना जी की वंदना.

"ये मेरा इस तरह का पहला प्रयास है कोई त्रुटि हो तो माफ़ी चाहती हूँ."

आप 'व्यास'आसन पर बिराजी हैं तो अब आपकी वाणी में 'शुकदेव'जी ही सुनाई दे रहे हैं मुझे.

बहुत सुन्दर कथा का प्रारम्भ किया है आपने.
बहुत बहुत आभार और वंदन.

Ragini ने कहा…

बहुत ही सुन्दर वर्णन है...बधाई!

Ragini ने कहा…

बहुत ही सुन्दर वर्णन है...बधाई!