दोस्तों,
आज की ये रचना एक कविता की उपज है...........मैंने रश्मि प्रभा जी की कविता कैकेयी की ख्वाहिश पढ़ी जिसमे केकैयी के मातृ प्रेम और दर्द को दर्शाया गया था जो सच मे एक अनूठी कल्पना है उसे पढ़कर मुझे ये सारा प्रसंग याद आ गया तो सोचा केकैयी के जीवन का एक उज्जवल पक्ष भी आपके सामने रखना चाहिए .........आखिर उसने ऐसा किया क्यों ? और जब आप ये जानेंगे तो उसके व्यक्तित्व को भी सलाम करेंगे . उम्मीद् करती हूँ रश्मि जी इसे अन्यथा नही लेंगी क्योंकि ये मैने वो ही लिखा है जो मैने कथाओ मे सुन रखा है जिसके बारे मे धर्म ग्रंथों मे वर्णित है।
लिख रही है दुनिया
मन के भावों को
उन अनजानी राहों को
जिन पर चलना मुमकिन ना था
उस दर्द को कह रही है
जो संभव है हुआ ही ना था
कभी किसी ने ना जाना
इतिहास और धर्म ग्रंथों
को नहीं खंगाला
गर खंगाला होता तो
सच जान गए होते
फिर ना ऐसे कटाक्ष होते
हाँ , मैं हूँ केकैयी
जिसने राम को वनवास दिया
और अपने भरत को राज दिया
मगर कोई नहीं जानता
प्रीत की रीतों को
नहीं जानता कोई कैसे
प्रेम परीक्षा दी जाती है
स्व की आहुति दे
हवनाग्नि प्रज्ज्वलित की जाती है
मेरी प्रीत को तुम क्या जानो
राम की रीत को तुम ना जानो
जब राम को जानोगे
तब ही मुझे भी पहचानोगे
मेरा जीवन धन राम था
मेरा हर कर्म राम था
मेरा तो सर्वस्व राम था
जो भी किया उसी के लिए किया
जो उसके मन को भाया है
उसी में मैंने जीवन बिताया है
अब और कुछ नहीं चाह थी मेरी
राम ही पूँजी थी मेरी
जानना चाहते हो तो
आज बताती हूँ
तुम्हें राम और मेरी
कथा सुनाती हूँ
जब राम छोटे थे
मुझे मैया कहते थे
मेरे प्राणधन थे
भरत से भी ज्यादा प्रिय थे
बताओ कौन ऐसा जग में होगा
जिसे ना राम प्रिय होगा
हर चीज़ से बढ़कर किसे ना
राम की चाह होगी
बेटे , पति , घर परिवार
कभी किसी को ना
राम से बढ़कर चाहा
मुझमे तो सिर्फ
राम ही राम था समाया
इक दिन राम ने
प्रेम परीक्षा ली मेरी
मुझसे प्रश्न करने लगे
बताओ मैया
कितना मुझे तुम चाहती हो
मेरे लिए क्या कर सकती हो
इतना सुन मैंने कहा
राम तू कहे तो अभी जान दे दूँ
तेरे लिए इक पल ना गंवाऊँगी
जो तू कहे वो ही कर जाऊँगी
राम ने कहा जान तो कोई भी
किसी के लिए दे सकता है
मज़ा तो तब है जब जीते जी
कांटों की शैया पर सोना होगा
ये ना प्रेम की परिभाषा हुई
इससे बढ़कर तुम क्या कर सकती हो
क्या मेरे लिए अपने पति, बेटे
घर परिवार को छोड़ सकती हो
क्या दुनिया भर का कलंक
अपने सिर ले सकती हो
उसकी बातें सुन मैं सहम गयी
लगा आज राम ने ये कैसी बातें कहीं
फिर दृढ निश्चय कर लिया
मेरा राम मेरा अहित नहीं करेगा
और यदि उसकी इच्छा ऐसी है
तो उसके लिए भी तैयार हुई
कहा राम तेरी हर बात मैं मानूंगी
कहो क्या करना होगा
तब राम यों कहने लगे
मैया सोच लेना
कुछ छोटी बात नहीं माँग रहा हूँ
तुमसे तुम्हारा जीवन माँग रहा हूँ
तुम्हें वैधव्य भी देखना होगा
मेरे लिए क्या ये भी सह पाओगी
अपने पुत्र की नफ़रत सह जाओगी
ज़िन्दगी भर माँ तुम्हे नही कहेगा
क्या ये दुख सह पाओगी
आज मेरे प्रेम की परीक्षा थी
उसमे उत्तीर्ण होने की ठानी थी
कह दिया अगर राम तुम खुश हो उसमे
तो मैं हर दुःख सह जाउंगी
पर तुमसे विलग ना रह पाऊँगी
तुम्हारे प्रेम की प्यासी हूँ
तुम्हारे किसी काम आ सकूँगी
तभी जीवन लाभ पा सकूँगी
कहो क्या करना होगा
तब राम ये कहने लगे
मैया जब मुझे राजतिलक होने लगे
तब तुम्हें भरत को राज दिलाना होगा
और मुझे बनवास भिजवाना होगा
ये सुन मैं सहम गयी
राम वियोग कैसे सह पाऊँगी
राम से विमुख कैसे रह पाऊँगी
तब राम कहने लगे
मैया मैं पृथ्वी का भार हरण करने आया हूँ
इसमें तुम्हारी सहायता की दरकार है
तुम बिन कोई नहीं मेरा
जो इतना त्याग कर सके
तुम पर है भरोसा मैया
इसलिए ये बात कह पाया हूँ
क्या कर सकोगी मेरा इतना काम
ले सकोगी ज़माने भर की
नफ़रत का अपने सिर पर भार
कोई तुम्हारे नाम पर
अपने बच्चों का नाम ना रखेगा
क्या सह पाओगी ये सब व्यंग्य बाण
इतना कह राम चुप हो गए
मैंने राम को वचन दिया
जीवन उनके चरणों मे हार दिया
अपने प्रेम का प्रमाण दिया
तो क्या गलत किया
प्रेम में पाना नहीं सीखा है
प्रेम तो देने का नाम है
और मैंने प्रेम में
स्व को मिटाकर राम को पाया है
मेरा मातृत्व मेरा स्नेह
सब राम में बसता था
तो कहो जगवालों
तुम्हें कहाँ मुझमे
भरत के लिए दर्द दिखता था
मैंने तो वो ही किया
जो मेरे राम को भाया था
मैंने तो यही जीवन धन कमाया था
मेरी राम की ये बात सिर्फ
जानकार ही जानते हैं
जो प्रेम परीक्षा को पहचानते हैं
आज की ये रचना एक कविता की उपज है...........मैंने रश्मि प्रभा जी की कविता कैकेयी की ख्वाहिश पढ़ी जिसमे केकैयी के मातृ प्रेम और दर्द को दर्शाया गया था जो सच मे एक अनूठी कल्पना है उसे पढ़कर मुझे ये सारा प्रसंग याद आ गया तो सोचा केकैयी के जीवन का एक उज्जवल पक्ष भी आपके सामने रखना चाहिए .........आखिर उसने ऐसा किया क्यों ? और जब आप ये जानेंगे तो उसके व्यक्तित्व को भी सलाम करेंगे . उम्मीद् करती हूँ रश्मि जी इसे अन्यथा नही लेंगी क्योंकि ये मैने वो ही लिखा है जो मैने कथाओ मे सुन रखा है जिसके बारे मे धर्म ग्रंथों मे वर्णित है।
लिख रही है दुनिया
मन के भावों को
उन अनजानी राहों को
जिन पर चलना मुमकिन ना था
उस दर्द को कह रही है
जो संभव है हुआ ही ना था
कभी किसी ने ना जाना
इतिहास और धर्म ग्रंथों
को नहीं खंगाला
गर खंगाला होता तो
सच जान गए होते
फिर ना ऐसे कटाक्ष होते
हाँ , मैं हूँ केकैयी
जिसने राम को वनवास दिया
और अपने भरत को राज दिया
मगर कोई नहीं जानता
प्रीत की रीतों को
नहीं जानता कोई कैसे
प्रेम परीक्षा दी जाती है
स्व की आहुति दे
हवनाग्नि प्रज्ज्वलित की जाती है
मेरी प्रीत को तुम क्या जानो
राम की रीत को तुम ना जानो
जब राम को जानोगे
तब ही मुझे भी पहचानोगे
मेरा जीवन धन राम था
मेरा हर कर्म राम था
मेरा तो सर्वस्व राम था
जो भी किया उसी के लिए किया
जो उसके मन को भाया है
उसी में मैंने जीवन बिताया है
हाँ कलंकनी कहायी हूँ
मगर राम के मन को भायी हूँअब और कुछ नहीं चाह थी मेरी
राम ही पूँजी थी मेरी
जानना चाहते हो तो
आज बताती हूँ
तुम्हें राम और मेरी
कथा सुनाती हूँ
जब राम छोटे थे
मुझे मैया कहते थे
मेरे प्राणधन थे
भरत से भी ज्यादा प्रिय थे
बताओ कौन ऐसा जग में होगा
जिसे ना राम प्रिय होगा
हर चीज़ से बढ़कर किसे ना
राम की चाह होगी
बेटे , पति , घर परिवार
कभी किसी को ना
राम से बढ़कर चाहा
मुझमे तो सिर्फ
राम ही राम था समाया
इक दिन राम ने
प्रेम परीक्षा ली मेरी
मुझसे प्रश्न करने लगे
बताओ मैया
कितना मुझे तुम चाहती हो
मेरे लिए क्या कर सकती हो
इतना सुन मैंने कहा
राम तू कहे तो अभी जान दे दूँ
तेरे लिए इक पल ना गंवाऊँगी
जो तू कहे वो ही कर जाऊँगी
राम ने कहा जान तो कोई भी
किसी के लिए दे सकता है
मज़ा तो तब है जब जीते जी
कांटों की शैया पर सोना होगा
ये ना प्रेम की परिभाषा हुई
इससे बढ़कर तुम क्या कर सकती हो
क्या मेरे लिए अपने पति, बेटे
घर परिवार को छोड़ सकती हो
क्या दुनिया भर का कलंक
अपने सिर ले सकती हो
उसकी बातें सुन मैं सहम गयी
लगा आज राम ने ये कैसी बातें कहीं
फिर दृढ निश्चय कर लिया
मेरा राम मेरा अहित नहीं करेगा
और यदि उसकी इच्छा ऐसी है
तो उसके लिए भी तैयार हुई
कहा राम तेरी हर बात मैं मानूंगी
कहो क्या करना होगा
तब राम यों कहने लगे
मैया सोच लेना
कुछ छोटी बात नहीं माँग रहा हूँ
तुमसे तुम्हारा जीवन माँग रहा हूँ
तुम्हें वैधव्य भी देखना होगा
मेरे लिए क्या ये भी सह पाओगी
अपने पुत्र की नफ़रत सह जाओगी
ज़िन्दगी भर माँ तुम्हे नही कहेगा
क्या ये दुख सह पाओगी
आज मेरे प्रेम की परीक्षा थी
उसमे उत्तीर्ण होने की ठानी थी
कह दिया अगर राम तुम खुश हो उसमे
तो मैं हर दुःख सह जाउंगी
पर तुमसे विलग ना रह पाऊँगी
तुम्हारे प्रेम की प्यासी हूँ
तुम्हारे किसी काम आ सकूँगी
तभी जीवन लाभ पा सकूँगी
कहो क्या करना होगा
तब राम ये कहने लगे
मैया जब मुझे राजतिलक होने लगे
तब तुम्हें भरत को राज दिलाना होगा
और मुझे बनवास भिजवाना होगा
ये सुन मैं सहम गयी
राम वियोग कैसे सह पाऊँगी
राम से विमुख कैसे रह पाऊँगी
तब राम कहने लगे
मैया मैं पृथ्वी का भार हरण करने आया हूँ
इसमें तुम्हारी सहायता की दरकार है
तुम बिन कोई नहीं मेरा
जो इतना त्याग कर सके
तुम पर है भरोसा मैया
इसलिए ये बात कह पाया हूँ
क्या कर सकोगी मेरा इतना काम
ले सकोगी ज़माने भर की
नफ़रत का अपने सिर पर भार
कोई तुम्हारे नाम पर
अपने बच्चों का नाम ना रखेगा
क्या सह पाओगी ये सब व्यंग्य बाण
इतना कह राम चुप हो गए
मैंने राम को वचन दिया
जीवन उनके चरणों मे हार दिया
अपने प्रेम का प्रमाण दिया
तो क्या गलत किया
प्रेम में पाना नहीं सीखा है
प्रेम तो देने का नाम है
और मैंने प्रेम में
स्व को मिटाकर राम को पाया है
मेरा मातृत्व मेरा स्नेह
सब राम में बसता था
तो कहो जगवालों
तुम्हें कहाँ मुझमे
भरत के लिए दर्द दिखता था
मैंने तो वो ही किया
जो मेरे राम को भाया था
मैंने तो यही जीवन धन कमाया था
मेरी राम की ये बात सिर्फ
जानकार ही जानते हैं
जो प्रेम परीक्षा को पहचानते हैं
ए जगवालों
तुम न कोई मलाल करना
तुम न कोई मलाल करना
ज़रा पुरानों में वर्णित
मेरा इतिहास पढ़ लेना
मेरा इतिहास पढ़ लेना
जिसे राम भा जाता है
जो राम का हो जाता है
उसे न जग का कोई रिश्ता सुहाता है
वो हर रिश्ते से ऊपर उठ जाता है
फिर उसे हर शय में राम दिख जाता है
इस तत्वज्ञान को जान लेना
अब तुम न कोई मलाल करना
21 टिप्पणियां:
परिकल्पना पर कल कैकयी का सच भी पढ़ा था ... आज यह रचना ... इन विषयों पर गहन पठन पाठन की ज़रूरत होती है ..हम बस वही देखते हैं जो दिखाई देता है या देखना चाहते हैं ...
बहुत अच्छी रचना ..एक सत्य को सामने लाने का प्रयास सराहनीय है ..
अच्छी अभिव्यक्ति, बधाईयाँ !
सिया राम मय सब जग जानी
करउ प्रणाम जोरी जुग पानि
वंदना जी, को शत शत प्रणाम और नमन.वाकई में कठिन है केकैयी को पहचानना.
मेरी प्रीत को तुम क्या जानो
राम की रीत को तुम ना जानो
जब राम को जानोगे
तब ही मुझे भी पहचानोगे
बढ़िया चिन्तन से उपजी भावप्रणव रचना!
तत्वज्ञान को जाना
कैकयी को पहचाना
ममता का क्रंदन
हे देवी! तेरा वंदन
आभार
कैकयी का सच पढ़ा था.....
बहुत उम्दा चिंतन और बेहतरीन रचना.
बहुत ही सुन्दर रचना है,
मैंने सहेज ली है पढ़ने पढाने के काम आयेगी
ओह अनूठी रचना है...पहले शायद ही किसी ने कैकई के इस पक्ष को उजागर किया हो...विलक्षण पोस्ट.
नीरज
मैंने राम को वचन दिया
जीवन उनके चरणों मे हार दिया
अपने प्रेम का प्रमाण दिया
तो क्या गलत किया
प्रेम में पाना नहीं सीखा है
प्रेम तो देने का नाम है
और मैंने प्रेम में
स्व को मिटाकर राम को पाया है... sachmuch bahut hi prerak prasang hai...
एक सराहनीय प्रयास !!
उम्दा लेखन ... यदि कैकयी न होती तो आगे की रामायण की कल्पना कोई कर भी नहीं सकता ... ... इनकी भी एक अहम भूमिका रही है ... बढ़िया प्रस्तुति ...
कैकयी और राम के बीच का यह सच तो आज आपकी इस पोस्ट से ही मेरे जानने में आ रहा है । आभार सहित...
एक स्त्री ही इतनी महान हो सकती थी
पुत्र प्रेम में अपना सम्मान खो सकती थी
पत्नी माता के अधिकार वंचित वो सारे दुःख पी गयी
एक पवित्रात्मा सदा के लिए कलंकिनी सी जी गयी
राम की ममता के लिए उस माँ ने क्या क्या सहा होगा
भरत जैसा रामभक्त बेटा जिसकी कोख में रहा होगा
उस माँ को खुद भरत ने भी तो दोषी ठहराया था
खुद पूर्णब्रह्म ने राम बनकर ये स्पष्ट सत्य बताया था
मेरी माँ तुझमे दोष तो बस भक्तिहीन लोग देखेंगे
संतो की कृपा से आपको समझने वाले विरले ही रहेंगे
इतनी अच्छी पोस्ट के लिए वंदना जी आपको साधुवाद
माता केकैयी के ऐसे महान चरित्र को लिखने का धन्यवाद
--
!! श्री हरि : !!
आपने माता कैकई के दूसरे पहलू से अवगत कराया . सुन्दर प्रयास .
उम्दा सोच। बढिया प्रस्तुति।
पौराणिक पात्रों को दिब्य दृष्टि से देखने का अति सुन्दर प्रयास ...सुन्दर एवं सराहनीय अभिव्यक्ति
सत्य को सामने लाने का प्रयास करती विलक्षण पोस्ट....बहुत अच्छी रचना... .
रामकथा के अनछुये चरित्रों पर बड़ी ही सशक्त प्रस्तुति।
अच्छी सोच और शानदार रचना! बढ़िया चिंतन के साथ अनुपम प्रस्तुती!
व्यक्ति सही या गलत नहीं होता...परिस्थितियां जो ना करवाएं वो कम...तस्वीर का दूसरा रुख भी देखना चाहिए...
मौन का साम्राज्य वैसे भी बहुत विस्तृत है
कैकयी का सच ...हर उस माँ का सच है जो
प्रश्नों के कटहरे में खड़ी....प्यार से लबालब माता कैकयी ..नमन है आपकी सोच को वंदना जी
आभार
एक टिप्पणी भेजें