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मंगलवार, 30 अगस्त 2011

कृष्ण लीला ……भाग 10


सत्ताईस दिनों में 


फिर वो ही नक्षत्र पड़ा था
 
आज कान्हा ने भी


करवट लिया था
 
नन्दभवन में 


आनंद उत्सव मन रहा था
 
ब्राह्मन स्वस्तिवाचन कर रहे थे

 
नन्द बाबा दान कर रहे थे

 
मेरा लाला अभी अभी सोया है

 
गोपियाँ आएँगी तो बड़ा सताएंगी

 
कोई गाल  खिंचेगी तो कोई गले लगाएगी

 
मेरे लाला की  नींद बिगड जाएगी
ये सोच मैया ने एक छकड़े में
कपडा बाँध लाला को लिटा दिया
अब मैया गोपियों के संग
नाचने गाने लगी
कान्हा के लिए उत्सव मनाने लगी

वहाँ तो बात बात मे उत्सव मनता था
लाला ने करवट ली जान 
आनन्द मंगल होने लगा
इधर कंस का भेजा शकटासुर आया था
और छकड़े में आकर छुप गया था
जब कान्हा ने देखा ये मुझे मारना चाहता है
तब कान्हा ने रोना शुरू किया
सोचा कोई होगा तो मुझे उठा लेगा
मगर मैया तो नाचने गाने में मगन थी
और आस पास ग्वाल बाल  खेल रहे थे
मगर किसी ने भी ना कान्हा का रोना सुना
जब देखा कान्हा ने सब अपने में मगन हुए हैं
तब कान्हा ने धीरे से अपना पैर उठाया है
और छकड़े को जोर लगाया है
पैर के छूते  ही छकड़ा उलट गया
और सारा दधि  माखन बिखर गया
कपडा भी फट गया
और कान्हा नीचे गिर गया
मगर शकटासुर का काम  तमाम हुआ
इधर जैसे ही सबने शोर सुना
गोप गोपियाँ दौड़े आये
और आपस में बतियाने लगे
ये छकड़ा कैसे पलट गया
कोई आया भी नहीं
कोई उल्कापात भी नहीं हुआ
कहीं से कोई आँधी  नहीं चली
पृथ्वी में भी ना कम्पन हुआ
फिर छकड़ा कैसे उलट गया
तब वहाँ खेलते ग्वाल बाल बोल उठे
ये लाला ने पैर से उल्टा दिया
मगर उन्हें बच्चा जान
किसी ने ना विश्वास किया
फिर नंदबाबा ने शान्तिपाठ करा
ब्राह्मणों का आशीर्वाद दिलाया
और लाला को गले लगा लिया


क्रमश:…………

17 टिप्‍पणियां:

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

कृष्णमय करती कविता...बहुत सुन्दर...

रेखा ने कहा…

रोचक और आनंददायक .प्रसंग ...

बेनामी ने कहा…

बहुत बहुत बहुत सुन्दर लीला है | :)

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कान्हा की सुन्दर बाल लीला।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

धूरि भरे अति शोभित श्याम जू, तैसी बनी सिर सुंदर चोटी।
खेलत खात फिरैं अँगना, पग पैंजनिया कटि पीरि कछौटी॥
वा छवि को रसखान बिलोकत, वारत काम कलानिधि कोटी।
काग के भाग बड़े सजनी, हरि हाथ सों ले गयो माखन रोटी॥.... कुछ ऐसे ही मोहक दृश्य हैं

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर और रोचक भक्तिमय प्रस्तुति..

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

अति सुंदर।

आरज़ू चाँद सी निखर जाए,
जिंदगी रौशनी से भर जाए,
बारिशें हों वहाँ पे खुशियों की,
जिस तरफ आपकी नज़र जाए।
जन्‍मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ!
------
चित्रावलियाँ।
कसौटी पर शिखा वार्ष्‍णेय..

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन!!

Rakesh Kumar ने कहा…

ओम् शांति! शान्ति! शान्ति!

परम शान्ति का अनुभव करा रहीं है आप वंदना जी.


आपका सद् प्रयास प्रसंसनीय व वन्दनीय है.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

रोचक कृष्ण लीला वर्णन

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना।
--
भाईचारे के मुकद्दस त्यौहार पर सभी देशवासियों को ईद की दिली मुबारकवाद।

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

यह प्रयास सराहनीय और संग्रहणीय है.

सरलतम शब्दों ने इसे और भी अधिक रुचिकर बना दिया है.

Unknown ने कहा…

वंदना जी
आपने कृष्ण लीला, भगवानमय होकर लिखी है। आप भाग्यशाली हैं।
बहुत- बहुत धन्यवाद। पढ़ कर सुख मिल रहा है।

Unknown ने कहा…

वंदना जी
आपने कृष्ण लीला, भगवानमय होकर लिखी है। आप भाग्यशाली हैं।
बहुत- बहुत धन्यवाद। पढ़ कर सुख मिल रहा है।

Shabad shabad ने कहा…

बहुत सुन्दर और रोचक लीला है...

Sapna Nigam ( mitanigoth.blogspot.com ) ने कहा…

वंदना जी , बहुत सरल और सरस प्रसंग श्रृंखला है , हम साथ-साथ चल रहे हैं.

Urmi ने कहा…

बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण कविता ! बेहतरीन प्रस्तुती!
आपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/