इक दिन सांवरे सलोने
सूने घर मे माखन चुराने लगे
खम्बे मे अपने प्रतिबिम्ब
पर दृष्टि पडी
प्रतिबिम्ब देख कान्हा डर गये
और निजस्वरुप से कहने लगे
भैया मैया से कुछ ना कहना
तुझको भी माखन दूंगा
बराबर का अपना हिस्सा ले लेना
तोतली वाणी ओट मे खडी मैया सुन रही थी
और मन ही मन रीझ रही थी
जैसे मैया को देखा कान्हा ने
निज प्रतिबिम्ब दिखा लगे कहने
मैया बताओ ये कौन है?
माखन चुराने घर मे आया है
मना करने पर मानता नही
क्रोध करने पर क्रोध करता है
मुझे माखन का लालच नही
तुम जानती हो
और मैया अपने कान्हा की
मधुर वात्सल्यमयी वाणी मे डूब गयी
कुछ ऐसे मैया को
नित नये सुख देते हैं
जिसे पाने को ॠषि मुनि
सुर आदि भी तरसते हैं
एक दिन गोपियाँ नन्दालय मे एकत्र हुईं
तभी कन्हैया को मयंक दिखा
उसे देख कन्हैया ललचाने लगे
मैया मै तो यही लूँगा
तोतली वाणी मे दोहराने लगे
गोपियाँ कान्हा को समझाने लगीं
तरह तरह के प्रलोभन दिखाने लगीं
मगर कान्हा मचल गया
मोटा मोटा काजल आँखो से
गालों पर लुढ्क गया
जिससे श्याम छवि
और श्यामल हुई
और गोपियो के मनभावन हुई
लाला को रोता देख
मैया समझाने लगी
लाला माखन ले लो
बरगलाने लगी
मगर जब कान्हा ने एक ना मानी
तव मैया ने इसे समझाने की ठानी
गोद मे ले बाल कृष्ण को
मैया कहानी सुनाने लगी
लाला ये माखन तो विषैला है
सुन लाला ने पूछा
इसमे विष कैसे लग गया
अब बात बदल चुकी थी
लाला की जिद भी ह्ट चुकी थी
मैया कहानी सुनाने लगी
एक क्षीरसागर है दूध का समुद्र
सुन कान्हा कहने लगे
वो तो बहुत बडा होगा
कितनी गायों के दूध से भरा होगा
सुन मैया ने बतलाया
ये गायों का दूध नही
भगवान की माया है
उन्होने ही क्षीरसागर बनाया है
एक बार देवता दैत्यों मे युद्ध हुआ
तब मन्दराचल को रई बना
वासुकि सर्प की रस्सी बना
समुद्रमन्थन किया
जैसे गोपियाँ दधि मथा करती हैं
और माखन निकला करता है
ऐसे ही उसमे से पहले विष निकला था
जिसे भोलेनाथ ने पीया था
कुछ बूँदें जो धरती पर पडी थीं
वो सर्पों के मूँह मे गयी थीं
चन्द्रमा की ओर उँगली दिखा कहने लगी
ये चन्द्रमा रूपी माखन भी
उसी मे से निकला था
मगर थोडा सा विष
इसमे भी लगा था
इसीलिये कलंक कहाता है
ओ मेरे प्राणधन
तुम्हारे योग्य ना ये माखन है
तुम तो बस घर का बना
माखन ही खाना
और मैया का मन हुलसाना
सुनते सुनते कान्हा को
निंदिया आ गयी
मैया ने कान्हा को
सुलाया है
और अपने लाल को
ऐसे बहलाया है
19 टिप्पणियां:
तुम तो बस घर का बना माखन ही खाना और मैया का मन हुलसाना
बाल मन को माता के सिवा कौन समझा सकता है...बहुत ही अच्छा चित्रण|
मैया मैं तो चन्द्र खिलौना लैहों।
बहुत ही सुंदर कृष्ण लीला का वर्णन किया है आपने मन प्रसन्न हो जाता है पढ़कर आभार....
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
padhte padhte lagta hai- kanhaiya ko god me utha lun
माखन लीला की सुन्दर प्रस्तुति ...
अच्छी चल रही है कृष्ण लीला !!
दुनिया को झूला झुलाने वाला , बातों से बहलाने वाला खुद माँ की गोद में झूल रहा है , बहल रहा है ...
वात्सल्य धार में नहाये हम भी!
कृष्णा लीला शीर्षक श्रृंखला से आपकी सभी रचना बहुत हि भावपूर्ण और भगवान कि लीलाओं को सचित्र प्रस्तुत करती हैं|
बहुत हि सुन्दर!
माखन लीला की सुन्दर प्रस्तुति| धन्यवाद|
मुझे तो लगता है वंदना जी,यशोदा मैय्या
आप में ही विराज रहीं हैं.आपके नयन,कान
आदि सभी तो कान्हा के रूप लावण्य और
तोतली भाषा का रसपान कर रहे हैं,और
वही रस आप इस पोस्ट के माध्यम से भी छलका
रहीं हैं.यह हमारा परम सौभाग्य ही है.
शत शत नमन आपको.
भक्ति रस की निर्मल धारा बह रही है..
बहुत प्यारी रचना है ...बधाई !
दीपावली की मंगल कामनायें स्वीकार करें !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति कृष्ण लीला की
आपको धनतेरस और दीपावली की हार्दिक दिल से शुभकामनाएं
MADHUR VAANI
MITRA-MADHUR
BINDAAS_BAATEN
सुंदर कृष्ण लीला, मन जैसे डूब गया ।
श्री बालकृष्ण के चन्द्र खिलोना लेने के हठ को क्षीर सागर के पोराणिक आख्यान से संलिप्त कर लीला -रस को प्रवाहित करने के प्रयास को अभिनंदन !
भोला-कृष्णा
aapki mithi wani ka hame anubav kirshna lila likhne ke madaem se jalkti he bahut achai lila danyewad
bahut acha likha he aapne
acha he
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