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गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

कृष्ण लीला ...........भाग ३०






सबसे पहला भाव बतलाता है
प्रभु को तो सिर्फ प्रेम रंग भाता है
प्रेम रज्जू से बंध प्रेमी के वश होना ही उन्हें आता है 
अगला भाव दर्शाता है
जब मैया द्वैत भाव से दूर ना हो पाती है
फिर मैं क्यों व्यर्थ
असंगता प्रगट करूँ
जो मुझे बद्ध समझता है
उसके लिए बद्ध
समझना ही उचित जान
प्रभु बँधन में बंध गए
अगला भाव दर्शाता है
प्रभु ने प्रण लिया है
अपने भक्त के छोटे से भाव को परिपूर्ण करना
फिर मैया के रस्सी से बाँधने के भाव को
कैसे ना पूर्ण करते
इक भाव ये बताता है
चाहे मैं कितना ही गुणवान कहाता हूँ
पर भक्त के अर्थात मैया के 
वात्सल्य स्नेह रुपी रज्जू से ही
स्वयं को पूर्ण पाता हूँ
यूँ सोच कान्हा रस्सी से बंध गए
इक भाव ये बताता है
भगवान् भक्त का कष्ट 
परिश्रम ना सह पाते हैं 
और स्वयं बँधन में बंध जाते हैं
और अपनी दयालुता को दर्शाते हैं
कितने करुणा वरुणालय हैं प्रभु 
जिनका ना हम ध्यान लगाते हैं
भगवान ने  मध्य भाग में बँधन स्वीकारा है 
जो ये तत्वज्ञान बतलाता है
तत्व दृष्टि से कोई 
बँधन नहीं होता है
ये तो सिर्फ आँखों का धोखा है
जो वस्तु आगे पीछे 
ऊपर नीचे नहीं होती है
केवल बीच में भासती है
उसका ना कोई अस्तित्व होता है
वह तो  केवल झूठ का आवरण होता है
तो फिर बँधन भी झूठा कहाता है
यूँ तो भगवान किसी बँधन में 
ना समाते हैं
जब मैया उद्यम  कर हार जाती है
तब ग्वालिनें समझाती हैं
लगता है तुम्हारा लाला
अलौकिक शक्ति वाला है
यूँ तो कमर में छोटी सी किंकिनी 
रुन झुन करती है
पर रस्सी से ना बंधती है
शायद विधाता ने इसके ललाट पर
बँधन लिखा ही नहीं
क्यों व्यर्थ परिश्रम करती हो
पर मैया ने आज हठ किया है
चाहे शाम हो या रात
आज तो इसे बांध कर रहूँगी
और जब भक्त हठ कर लेता है
तब भगवान अपना हठ छोड़ देता है
और भक्त का हठ ही पूरा कर देता है
लेकिन बंधता तब हैं जब
भक्त थक जाता है
और प्रभु को पूर्ण समर्पण करता है 
तब ही प्रभु बँधन स्वीकारते हैं
अहंता ममता की दीवारें 
जब तक ना गिराओगे
कैसे भला प्रभु को पाओगे 
ये प्रसंग यही दर्शाता है
भक्त का श्रम या समर्पण और भगवान की कृपा 
ही ये दो अंगुल की कमी बताई गयी है
या कहो जब तक भक्त अहंकारित  होता है
मैं भगवान को बांध सकता हूँ
तब एक अंगुल दूर हो जाता है
और प्रभु भी एक अंगुल की दूरी बना लेते हैं
यूँ दो अंगुल कम पड़ जाता है
आत्माराम होने पर भी भूख लगना
पूर्णकाम होने पर भी अतृप्त रहना
शुद्ध सत्वस्वरूप होने पर भी क्रोध करना 
लक्ष्मी से युक्त होने पर भी चोरी करना
महाकल यम को भी भय देने वाला होने पर भी
मैया से डरना और भागना
मन से भी  तीव्र गति होने पर भी
मैया के हाथों पकड़ा जाना
आनंदमय होकर भी दुखी होना , रोना
सर्वव्यापक होकर भी बंध जाना
भगवान की भक्त वश्यता  दर्शाता है
उनके करुणामय रूप का ज्ञान कराता है
जो नहीं मानते उनके लिए
ना ये दिव्य ज्ञान उपयोगी है
पर जिसने उसको पाया है
वो तो कृष्ण प्रेम में ही समाया है
ये सोच जब माँ को प्यार करने का अधिकार है 
तो फिर सजा देने का भी तो अधिकार है
और अब मैं बाल रूप में आया हूँ
और ये मेरी माँ है तो 
अब बँधन स्वीकारना होगा
माँ को उसका हक़ देना होगा
यों कृपा कर कान्हा बँधन में बंध गए

क्रमशः ............

16 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

जब माँ को प्यार करने का अधिकार है तो फिर सजा देने का भी तो अधिकार है और अब मैं बाल रूप में आया हूँ और ये मेरी माँ है तो अब बँधन स्वीकारना होगा माँ को उसका हक़ देना होगा यों कृपा कर कान्हा बँधन में बंध गए ... adbhut , manoram

Rakesh Kumar ने कहा…

जो नहीं मानते उनके लिए ना ये दिव्य ज्ञान उपयोगी है पर जिसने उसको पाया है वो तो कृष्ण प्रेम में ही समाया है

अब तो मुझे यकीन हो चला है कि आपने
कान्हा को अपने प्रेम पाश में बाँधा हुआ है.

आपके हर शब्द और पंक्ति में बस उसी के दर्शन हो रहे हैं,वंदना जी.

JaiTridev.com ने कहा…

अरे वाह, कृष्ण लीला ...

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

भगवान और भक्त के बीच दो अँगूल की दूरी का बहुत सुन्दर विश्लेषण...

vandana gupta ने कहा…

वाणी जी का कमेंट ई मेल से आया
प्रेम से बंधे हैं श्रीकृष्ण , जो सोच ले बांध लिया तो वहीं बंध गये ...
प्रेम एवं वात्सल्य का अद्भुत दृश्य !

http://networkedblogs.com/
टिप्पणी बॉक्स नहीं खुल रहा है !

kshama ने कहा…

Wah Vandana wah!

kshama ने कहा…

Naya saal mubarak ho!

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

Dharm ko janne ke liye Shri Krishn ji ka charitr sahi roop me janna ati aawashyak hai.

http://upchar.blogspot.com/2011/12/blog-post_3146.html?showComment=1325158888044#c4751019405633781740

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

बहुत खूब, सुन्दर प्रस्तुति, आपको नव-वर्ष की अग्रिम हार्दिक शुभकामनाये

अजय कुमार झा ने कहा…

बहुत सुंदर, भक्तिभाव से सराबोर और संपूर्ण ।

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

बंधन के भावों की महिमा बहुत ही चतुरता से की गई है.सहज अर्थ भी, गूढ़ अर्थ भी. वाह !!!
जय श्रीकृष्ण.....

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

भक्ति की दार्शनिक अभिव्यक्ति..बहुत सुन्दर..

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

कृष्ण के क्रिया कलापों के गूढ़ अर्थ को बहुत अच्छी तरह बताया है ..सुन्दर प्रस्तुति

Rakesh Kumar ने कहा…

वंदना जी, आपसे ब्लॉग जगत में परिचय होना मेरे लिए परम सौभाग्य की बात है.बहुत कुछ सीखा और जाना है आपसे.इस माने में वर्ष
२०११ मेरे लिए बहुत शुभ और अच्छा रहा.

मैं दुआ और कामना करता हूँ की आनेवाला नववर्ष आपके हमारे जीवन
में नित खुशहाली और मंगलकारी सन्देश लेकर आये.

नववर्ष की आपको बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.

प्रेम सरोवर ने कहा…

प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । नव वर्ष की अशेष शुभकामनाएं । धन्यवाद ।

बेनामी ने कहा…

बहोत अच्छा लगा आपका ब्लॉग पढकर ।

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