इक दिन जब मोहन ने
राधा जी के कहने पर
दूध दुहा था
और राधा जी ने जाने का
उपक्रम किया था
तब मोहन ने अपनी
चित्ताकर्षक मुस्कान की मोहिनी
राधा पर डाली है
रास्ते में सखियों ने
जैसे ही मोहन का नाम लिया
राधा के हाथ से
दूध का बर्तन छूट गया
अचेत होते सिर्फ
यह ही शब्द
अधरों पर आया है
मुझे काले साँप ने काटा है
इतना सुन सखियाँ
घर पर ले आयीं
और कीर्ति जी को
राधा की व्यथा बतलाई
जिसे सुन मैया बहुत घबरायी
और झाड फूंक करवाई
पर राधा प्यारी को
आराम ना आता
मंत्र यन्त्र भी बेकार हुआ जाता
जो सखी राधा की प्रीत पहचानती थी
उसने उपाय बतलाया
नन्द लाल का बेटा
साँप काटे का मंत्र जानता है
इतना सुन कीर्ति को याद आ गया
जो राधा ने बतलाया था
वो दौड़ी- दौड़ी यशोदा के पास गयी
हाथ जोड़ विनती करने लगी
श्याम सुन्दर को साथ भेज देना
राधा का जीवन बचा लेना
सुन मैया बोल उठी
मेरा लाला तो बालक है
वो झाड़ फूंक क्या जाने
किसी नीम हकीम को दिखलाओ
अच्छे से राधा का इलाज करवाओ
तब कीर्ति ने सारा किस्सा बयां किया
कैसे मनमोहन ने एक गोपी को बचा लिया
ललिता जी जो दोनों की
प्रीत पहचानती थीं
किस साँप ने काटा था
सब जानती थीं
जाकर चुपके से
नंदलाल से कहा
जिसकी तुमने गौ दूही थी
वो अचेत पड़ी है
बस तुम्हारे नाम पर
आँखें खोल रही है
कोई मन्त्र यन्त्र ना काम करता है
तुम्हारे श्याम रंग रुपी
सांप ने उसे डंसा है
ये विष लहर ना
किसी तरह उतर पाती है
राधा को रह - रहकर
तुम्हारी याद सताती है
विरह अग्नि में जल रही है
अपनी चंद्रमुखी शीतलता से
उसकी अगन शीतल करो
यदि सच में भुजंग ने डंसा हो
तो भी मैं उन्हें अच्छा कर दूँगा
कह मोहन घर को गए
वहाँ मैया ने हँसकर पूछा
कान्हा तुमने साँप डँसे का
मंत्र कहाँ से है सीखा
जाओ राधा को साँप ने डंसा है
उसे बचा लेना
इतना सुन मोहन
राधिका जू के पास गए
और अपनी मुरली को
राधा से छुआ दिया
जिससे राधा का ह्रदय
ठंडा हुआ
और प्रेमाश्रु झड़ने लगे
ज्यों ही राधा को होश आया है
कीर्ति जू ने सारा हाल
राधा को सुनाया है
और बड़े प्रेम से
नन्कुमार को गोद में उठाया है
इस प्रकार राधा मोहन की
प्रीत ने रंग चढ़ाया है
जो हर ब्रज वासी के
मन को भाया है
मगर ललिता जी ने
असल मर्म को पाया है
ये भेद कोई न जान पाया है
अलौकिक प्रीत को लौकिक जन क्या जाने
ये तो कोई प्रेम दीवाना ही पहचाने
जिसने खुद को पूर्ण समर्पित किया हो
वो ही प्रेम का असल तत्त्व है पहचाने
क्रमशः ......................
9 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर रचना ...राधा कृष्ण के अलौकिक लौकिक प्रेम पर ...
प्रेम का असल तत्व - आरम्भ से अंत तक
वाह !! चित्र भी सुन्दर हैं..
kalamdaan.blogspot.in
यह कथा पहली बार पढ़ी ... सुंदर ॥
Bata nahee paatee ki kitna sundar likhtee ho!
मनमोहन, हे कृष्ण कन्हैया..
बेहद खूबसूरती से शब्दों में ढाला है...यह अलौकिक प्रेम बेमिसाल है|
काश हमें भी ऐसा सर्प काट जाए, तो हमारा भी जीवन सफल हो जाए। ऐसी रचना के लिए साधूवाद्।
कान्हा का नाम हर विष का शमन करे.
हे! मेरे मन तू फिर काहे डरे.
आपने कान्हा को अपनी पिटारी में बंद किया हुआ है.
मनमाना नचा रही हैं,फिर कहती हैं फन्दे में
फंसा उलझन में है.
हम तो अब आपकी बीन और पिटारी पर नजर गडाए हैं.
जय जय जय का उच्चारण कर रहे हैं.
मनमोहना की जय
राधा रानी की जय
वंदना जी की जय जय जय.
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