इक दिन कान्हा कलेवा बांधे
समस्त अंगों पर सुन्दर चित्रकारी किये
फूलों के गहने पहन
पशु पक्षियों की बोली बोलते
ग्वाल बालों संग
बछड़े चराने गए
सभी बालोचित क्रीड़ायें करने लगे
श्याम सुन्दर संग मनोहारी
खेल खेलने लगे
और आनंद मग्न होने लगे
तभी कंस का भेजा
अघासुर नामक दैत्य
अजगर रूप बनाकर आया है
और राह में पर्वताकार रूप
रख बैठ गया है
ग्वाल मंडली जब वहाँ पहुंची है
तब उसे देख यूँ बोली है
ये कौन सा पर्वत है
अब से पहले तो नहीं देखा
ये तो अजगर समान लगता है
तो दूसरा बोला
सूर्य किरण से बादल लाल हो गए हैं
मानो किसी अजगर का ऊपरी होंठ हो
और जो बादलों की परछाईं
धरा पर पड़ती है
मानो वो इसका निचला होंठ हों
तभी तीसरा बोल पड़ा
ये दायीं और बायीं ओर की
गिरी कंदराएं अजगर के
जबड़े जैसी लगती हैं
और ऊंची- ऊंची शिखर पंक्तियाँ
इसकी दाढें लगती हैं
चौथा बोला
ये लम्बी चौड़ी सड़क तो
अजगर की जीभ सरीखी लगती है
और गिरी शिखरों के बीच का अन्धकार
इसके मुख का भीतरी भाग लगता है
तभी इक ग्वाल बाल बोल पड़ा
देखो - देखो इधर
जंगल में आग लगी है
तभी तीखी और गरम हवा चली है
मानो कोई अजगर
गरम- गरम सांस छोड़ रहा हो
तभी इक ग्वाल बाल बोल उठा
चलो आगे बढ़कर देखा जाये
इस गिरी कन्दरा में घुसा जाये
हमें किसी का क्या डर
जब हमारा कान्हा है हमारे संग
गर कोई राक्षस हुआ भी तो
बकासुर सम नष्ट हो जायेगा
कान्हा के हाथों मारा जायेगा
इतना कह ग्वाल बाल
उसके मुख में प्रवेश करते गए
इधर कृष्ण उनकी बात सुन सोचते रहे
इन्हें रोकना होगा
ये तो सर्प को रस्सी समझ रहे हैं
मगर जब तक रोकते
उससे पहले तो ग्वाल बाल
उसके मुख में प्रवेश कर गए
अघासुर और कोई नहीं
बकासुर और पूतना का भाई था
कान्हा से बदला लेने आया था
उसने अपना मुख ना बंद किया
जब तक कृष्ण ने ना प्रवेश किया
जैसे ही प्रभु ने अन्दर प्रवेश किया
अघासुर ने अपना मुख बंद किया
ये दृश्य देख देवता घबरा गए
हाय -हाय का उच्चारण करने लगे
जब भगवान ने देखा
मेरे भक्त परेशान हुए
तब उसके जबड़े में अपने
शरीर का विस्तार किया
और अघासुर की श्वासों को बंद किया
उसकी आँखें उलट गयीं
व्याकुल हो छटपटा गया
और ब्रह्मरंध्र को फोड़ प्राणांत किया
उसकी दिव्य ज्योति प्रभु में समा गयी
ये देख देवता सब हर्षित हुए
कर जोड़ प्रभु की स्तुति करने लगे
प्रभु ने ग्वाल बाल सब जिला दिए
प्रभु का गुणगान होने लगा
आकाश में दुदुभी नगाड़े बजने लगे
अप्सराएं नृत्य करने लगीं
मंगलमय वाद्य बजने लगे
जय जयकार की मंगलध्वनि
ब्रह्मलोक तक पहुँच गयी
तब ब्रह्मा जी ने वह ध्वनि सुनी
और आकर अद्भुत दृश्य देखा
और उनका मन भी
प्रभु माया से मोहित हो गया
जब अजगर का वो शरीर सूख गया
ग्वाल बालों का वो क्रीड़ास्थल बना
मगर ये लीला ठाकुर ने
पांचवें वर्ष में की
जिसका वर्णन ब्रज वासियों को
ग्वालबालों ने छठे वर्ष में किया
ये सुन परीक्षित ने
शुकदेव जी से पूछ लिया
गुरुदेव ये कैसे संभव हुआ
एक समय की लीला का वर्णन
दूसरे समय में भी वर्तमानकालीन रहे
अवश्य इसमें जरूर प्रभु की
कोई महालीला होगी
कृपा कर गुरुदेव वो सुनाइए
प्रभु की दिव्य लीलाओं का पान कराइए
क्रमशः ..........
13 टिप्पणियां:
vandna ise start karo hrudayam par , har hafte ek post krishn leela kee dalo , mujhe batao ki kab se shuru kar rahi ho , so that main ek introduction daal doon .
vandna ise start karo hrudayam par , har hafte ek post krishn leela kee dalo , mujhe batao ki kab se shuru kar rahi ho , so that main ek introduction daal doon .
बहुत सुन्दर रचना....एक अनोखी कृष्णलीला!...आभार!
Hameshakee tarah sundar1
वाह..अति सुन्दर..
kalamdaan.blogspot.in
कान्हा की अद्भुत लीलायें..
बहुत अच्छा वर्णन है...श्रीकृष्ण जी की जय!
वाह!
बहुत उम्दा प्रस्तुति!
कृष्ण लीलाएं जाग्रत हो उठी हैं ...
वाह! बहुत सुन्दर.
'हमें किसी का क्या डर
जब हमारा कान्हा है हमारे संग'
कान्हा की लीला की सुन्दर चर्चा से
मन मग्न है.
मन भक्ति रस से ओत-प्रोत हो गया।
सुंदर चित्रण ... आगे का इंतज़ार है ...
जय श्री कृष्ण। सही है जिसके ऊपर प्रभु का हाथ हो उसे काहे का डर। उसका नाम लिए जाओ और अच्छे कार्य किये जाओ। धार्मिक रचना के लिए बधाई की पात्र हो। राधा जी बोली श्री कृष्णा से इस शर्त पर खेलूगीं प्यार की होली जीतू तो तुझे पाऊँ और हारू तो तेरी हो जाऊँ। होली की मुबारक आपको और आपके परिवार को।
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