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शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

कृष्ण लीला-- रास पंचाध्यायी………भाग 61

तुम्हारी लीला बहुत ही अजब है प्रभु ! 
रास पंचाध्यायी का प्रारंभ 
वो भी आज आपके जन्म पर ………
आहा! इससे शुभ और क्या होगा
तुम आओगे ना …………
इस महारास को सम्पूर्णता देने …………मोहन  !
बस हो जायेगा जन्म तुम्हारा उसी क्षण 
जब दोगे दर्शन गिरधारी
हो जायेगा महारास उसी क्षण 
जब मुस्कान बिखरेगी प्यारी -प्यारी 
और बाँह पकड कहोगे 
आओ सखी! महारास की वेला  प्रतीक्षारत है



ये तो थे मेरे भाव …अब चलिये करते हैं प्रवेश रास- पंचाध्यायी मे और जानते हैं उसकी महत्ता क्या है


अब रास - पंचाध्यायी का प्रारंभ होता है
जिसमे ना सभी को प्रवेश मिलता है
भागवत के पांच अध्याय
पञ्च प्राण कहलाते हैं
जिसमे मोहन ही मोहन नज़र आते हैं
यहाँ तो वो ही प्रवेश कर सकता है
जिसने " स्व " को दफ़न कर रखा है
जब ऐसी अवस्था पाता है
हर पल प्रभु दर्शन करता है
"स्व" विस्मृत होते ही
आत्म तत्व में रत होता है
वो ही रास पंचाध्यायी में
प्रवेश का हक़दार होता है

जब भक्त गर्भोद अवस्था को पाता है
तब रास पंचाध्यायी में प्रवेश पाता है
ज्यों माता नौ महीने तक
गर्भधारण करती है
और दसवें महीने में
शिशु जन्म की राह तकती है
कब आएगा कब आएगा
सोच सोच बाट जोहती  है
पल- पल युगों समान जब कटता है
कुछ वैसा ही हाल
भक्त का जब होता होने लगता है
जब भक्त की गर्भोद अवस्था आती है
नौ स्कंध सुन ह्रदय घट
प्रेम रस  से
आप्लावित हो जाता है
प्रेमानंद ही प्रेमानंद
चहुँ ओर छा जाता है
और प्रभु से मिलन की
उत्कट इच्छा जब
भक्त के ह्रदय में जागृत होती है
सिर्फ कृष्ण ही कृष्ण
रोम -रोम से निकलने लगता है
जीना दुश्वार हो जाता है
संसार ना सुहाता है
अश्रुपात निरंतर होने लगता है
अपनी सुध बुध जब
भक्त बिसरा देता है
जैसे ही कोई प्रियतम का नाम ले
उसे ही अपना मान बैठता है
और प्रभु नाम का
गुणगान करने लगता है
दरस बिन बावरा बन
घूमने लगता है
दुनिया दीवाना कहने लगती है
जो दुनिया के किसी
काम का नहीं रहता है
बस वो ही तो भक्त की
गर्भोद अवस्था होती है
जब आठों याम श्याम का दर्शन करता है
कब आओगे कब दोगे दर्शन
गिरधारी की
रटना लगाने लगता है
परिपक्व गर्भोद अवस्था में ही
प्रभु का अवतरण होता है
और प्रभु से जीव का मिलन ही तो
वास्तविक महारास होता है
जहाँ दो नज़र नहीं आते हैं
एक तत्व ही साकार होता है
सिर्फ एकत्व का राज होता है
रसधारा बहने लगती है
जब ब्रह्म जीव मिलन में
जीवन की पूर्णाहुति होती है
वो ही तो महारास की
अद्भुत बेला होती है
ब्रह्मानंद और रसानंद की
 दिव्य अनुभूति होती है
द्वैत की भावना अद्वैत में विलीन होती है
निराकार साकार हो
साकार को निराकार
बना देता है
बस वो ही तो जीवोत्सव होता है
बस वो ही तो ब्रह्मोत्सव होता है
बस वो ही तो आनंदोत्सव होता है
क्रमश:………… 


15 टिप्‍पणियां:

सुरेश चौधरी प्रस्तुति ने कहा…

bahut sundar panch adhyayon ka ullekh

कविता रावत ने कहा…

बहुत सुन्दर कृष्ण रंग में डुबाती सुन्दर प्रस्तुति ..
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

वाह जी सुंदर

RITU BANSAL ने कहा…

ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
!!!!!! हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे !!!!!!
!!!!!!!!!! हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे !!!!!!!!!
ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभ-कामनाएं

RITU BANSAL ने कहा…

ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
!!!!!! हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे !!!!!!
!!!!!!!!!! हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे !!!!!!!!!
ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभ-कामनाएं

Vinay ने कहा…

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ

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1. Auto Read More हैक अब ब्लॉगर पर भी
2. दिल है हीरे की कनी, जिस्म गुलाबों वाला
3. तख़लीक़-ए-नज़र

रविकर ने कहा…

जय श्री कृष्ण ||

Rakesh Kumar ने कहा…

धन्य हो गया हूँ वंदना जी आपकी यह गहन
तात्विक विवेचना करती हुई अनुपम प्रस्तुति को
पढकर.आपके लिए कुछ शब्द याद आ रहें हैं,जो
डॉ नूतन डिमरी गैरोला जी ने मेरी एक पोस्ट पर
लिखे थे.अभी खोज कर कापी करता हूँ.

Rakesh Kumar ने कहा…

दानाय लक्ष्मी सुकृताय विद्या

चिंता परब्रह्मानिश्चिताय

परोपकाराय वचांसि यस्य

वन्द्यस्त्रीलोकीतिलकः स एकः |

जिसकी धन सम्पदा दान के लिए होती है..जिसकी विद्या पुण्यार्जन के लिए होती है ..जिसका चिंतन निरंतर परमब्रह्मतत्व के निश्चय में लगा रहता है और जिसकी वाणी परोपकार में लगी रहती है - ऐसा पुरुष सबके लिए वन्दनीय है और तीनों लोकों का तिलक स्वरुप है…

पुनर्दद्ताघ्नता जानता सं गमेमहि|| ….हम दानशील पुरुष से विश्वासघात आदि ना करने वालों से और विवेक विचार और ज्ञानवां से सत्संग करते रहे ….

उपरोक्त डॉ नूतन डिमरी जी के शब्द आपको समर्पित हैं,वन्दना जी.

आपने अपने उत्कृष्ट लेखन से समस्त ब्लॉग जगत को धन्य कर दिया है.

सादर वंदन और नमन आपके ज्ञान-भक्तिमय लेखन को.
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vandana gupta ने कहा…

@राकेश जी धन्य तो मै हो गयी इतनी सुन्दर विवेचना पढकर

Shanti Garg ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन और प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग

जीवन विचार
पर आपका हार्दिक स्वागत है।

Sanju ने कहा…

Very nice post.....
Aabhar!
Mere blog pr padhare.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

एक प्राण है, घट घट व्यापा..

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत ज्ञानवर्धक और प्रभावी अभिव्यक्ति...

Bhola-Krishna ने कहा…

अति सुंदर!अगली खेप की प्रतीक्षा है ! - कृष्णा भोला