ये तीसरा भाव
उलाहना
सभी गोपियाँ तुझे हैं प्यारी
वंशी की धुन ऐसी बजायी
सारी गोपियाँ दौड़ी आयीं
मेरी बारी श्याम क्यों देर लगायी
कब से तुमसे टेर लगायी
अंखिया मेरी राह तकत हैं
जन्म जन्म से बाट जोहत हैं
फिर क्यूँ ना प्रेम धुन मुझे सुनाई
क्यूँ ना वंशी ने आवाज़ लगायी
मेरी याद ही क्यूँ बिसरायी
माना हूँ मैल की गागर
भक्ति का ना लगाया काजल
फिर भी आस जोह रही हूँ
सुना है तुम हो दया के सागर
दीन हीन पापियों को सदा है तारा
फिर मेरी बार क्यूँ मुँह है मोड़ा
वंशी तुम्हारी सभी को बुलाती
नाम ले लेकर आवाज़ लगाती
क्या मेरा नाम भूल गए हो
या रास्ता अपना पलट गए हो
ना जाने कौन सा शास्त्र लिखवा रहे हो
जो उहापोह में फँसा रहे हो
कभी अमावास का चाँद बन जाते हो
कभी पूनम सा खिल जाते हो
कभी संदेहास्पद बन जाते हो
कभी उत्तरपुस्तिका बन जाते हो
मोहन ना जाने कौन से खेल रच जाते हो
मेरी पीड़ा जो इतनी बढ़ाते हो
अपना आप भी खो बैठती हूँ
तुम्हें ही झिलकारे देती हूँ
फिर भी तुम मुस्काते हो
ना जाने श्याम ये कौन सी लीला दिखाते हो
जब मन बुद्धि चित रूप में
तुम ही व्यापते हो
फिर ये कौन से खेल रचते हो
जो जीव को भ्रमित करते हो
जानती हूँ
जब सर्वस्व समर्पण किया हो
वहाँ ना किसी चाह का जन्म हुआ हो
फिर भी प्रश्न रूप में
तो कभी संदेह रूप में
आ खड़े होते हो
ये कैसे -कैसे रूप तुम धरते हो
जीव को मायाजाल में उलझाते हो
ये कैसा मिथ्याजाल बिछाते हो
क्या है ये मोहन
कभी लगता है
ये भी तुम्हारी ही चाहत है
जो मेरे मन में उठती है
क्यूँकि बिना तुम्हारी चाह के
ना कोई भावना उठ सकती है
पर दूसरी तरफ तुम ही कहते हो
चाह को प्रबल करो
तभी तुम मिलते हो
मगर मोहन
जिसने अपनी चाह
तुम में मिला दी हो
वो कैसे तुमसे विलग हो
फिर कैसे तुमसे अलग हो
क्यों द्वैत में फंसाते हो
ये भ्रमजाल भ्रमित करता है
जब तुम पूर्ण कहाते हो
तो जिसने स्वयं को समर्पित किया हो
तेरी रज़ा में अपनी रज़ा मिला दी हो
उसकी कहो तो कौन सी चाह बची हो
कभी लगता है
कोई सूक्ष्म चाह बची है
तभी ये मची खलबली है
गर ऐसा कुछ बचा है
तो उसे भी मिटा देना
मेरा वासना रुपी वस्त्र हर लेना
मगर श्याम तुम मूँह ना मोड़ लेना
स्वयं में मिलाकर
मुझ अपूर्ण को पूर्ण कर देना
देखो मुझसे उम्मीद मत करना
मेरा वश तो यहीं तक चलता है
अब सब तुम्हारी कृपा पर ही
निर्भर करता है
ना पहले उद्योग किया
ना अब कर सकती हूँ
तुम सब जानते हो
जैसी भी अधम पापिन हूँ
बस तुम्हारी ही हूँ
इसे स्वीकार कर लेना
श्याम इस जीव का भी उद्धार कर देना
तुम्हारा कुछ ना घटेगा
बस एक नाम और तुम्हारे यश में जुड़ेगा
मगर इस जीव का उद्धार हो जायेगा
इसका भी बेडा पार हो जायेगा
इसका भी बेडा पार हो जायेगा
10 टिप्पणियां:
मंद मुस्कान लिए कृष्ण पढ़ रहे खुद को ... दिवाली की शुभकामनायें
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (11-11-2012) के चर्चा मंच-1060 (मुहब्बत का सूरज) पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
वन्दना जी , अक्षरशः सत्य भावनायुक्त अति प्रेरणादायी रचना : बधाई ! पढते ही तरंगित हुई यह भाव लहरी :
मेरे श्याम -
हर ठांव बस तुम दीखते
कभि रूठते,कभि रीझते ,
बस युम्ही तुम हो दीखते ,
हर हाव में ,हर भाव में,
तुम धूप में औ छाँव में,
आक्रोश औ परिहास में
कुरुखेत में महारास में
अंत हींन है यह सूची क्यूँकी वह सर्व व्यापक ,कहाँ नहीं है ? किस वस्तु किस व्यक्ति में नहीं है ! कोई बता सकता है ?
sundar prastuti,
deepavali ki hardik subhkanaye
बहुत अच्छी रचना!
प्रकाश पर्व के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।
बड़ा ही रोचक है संवाद, भक्त और भगवान का।
आप की ये भगती रस से यूक्त रचना एक मंच के सदस्य भी पढ़ेंगे तो शायद उनका जिवन भी पावन हो जायेगा... ले जा रहा हूं... please mubscribe ekmanch please send mail on subscribe-ekmanch@yahoogroups.com
तमसो मा ज्योतिर्गमय...शुभकामनाएं दीपावली की...
आपकी भाव भक्ति पूर्ण प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार वन्दना जी.
आपको मेरा सादर नमन.
दीपावली,गोवर्धन,भय्या दूज की बहुत बहुत
शुभकामनाएँ.
भक्तिमय पुकार...कृष्ण को सुनना ही पड़ेगा!
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!!
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