पेज

मेरी अनुमति के बिना मेरे ब्लॉग से कोई भी पोस्ट कहीं ना लगाई जाये और ना ही मेरे नाम और चित्र का प्रयोग किया जायेये

my free copyright

MyFreeCopyright.com Registered & Protected

शनिवार, 17 नवंबर 2012

अरे मैं कौन ?


अरे मैं  कौन 
सब  उसी  का  है 
सबमे  उसी  का  वास  है 
वो  ही  प्रस्फुटित  होता  है  शब्द  बनकर

अंतर्नाद जब बजता है
सुगम संगीत का प्रवाह 
मन तरंगित करता है 
इसमें भी तो 
वो ही निवास करता है 
हर राग में
हर तरंग में 
हर ध्वनि में 
वो ही तो प्रस्फुटित होता है सरगम बनकर 

प्रणव कहूं या मैं कहूं
उच्चारित तो वो ही होता है 
ना मैं का लोप होता है
ना मैं का अलोप होता है
हर निर्विकार में 
हर साकार में
सिर्फ उसी का आकार होता है 
फिर कैसे ना कहूं 
ब्रह्मनाद के आनंद में
वो ही तो आनंदित होता है आनंद बनकर 

कहो अब 
किसका दर्शन होता है
कौन सा दृश्य होता है
कौन द्रष्टा होता है
सब दृष्टि का विलास होता है
वास्तव में तो 
ब्रह्म में ही ब्रह्म का वास होता है ब्रह्म बनकर .....ज्योतिर्पुंज बनकर 

7 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

sab wahi hai

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सुंदर भक्ति पूर्ण रचना ....

Bhola-Krishna ने कहा…

वन्दना जी , इतना सार्थक सजीव चित्रण ऐसा लगता है जैसे आपका प्रत्येक शब्द
निजी अनुभूतियों से प्रेरित है !हर नाद में हर सम्वाद में हर गीत सगीत में आपने भी उस "परम" को देखा ! बधाइयाँ !
=श्रीमती कृष्णा एवं व्ही.एन.एस "भोला"

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत ही सुन्दर रचना..

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

बहुत ख़ूब!
आपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 19-11-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1068 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

kavita verma ने कहा…

sundar bhaktipoorn rachna...

Rajesh Kumari ने कहा…

बहुत अच्छी भक्ति मय प्रस्तुति