मैने तो सीखा ही नही
मैने तो जाना ही नहीं
क्या होता है प्रेम
मैने तो पहचाना ही नहीं
क्योंकि
मेरा प्रेम तुम्हारा होना माँगता है
तुमसे मिलन माँगता है
तुम्हारा श्रंगार मांगता है
तुमसे व्यवहार माँगता है
मेरा प्रेम भिखारी है
मेरा प्रेम दीनहीन है
मेरा प्रेम बलहीन है
मेरा प्रेम छदम नहीं
मेरा प्रेम सिर्फ़ विरह नही
मेरा प्रेम सिर्फ़ रुदन नही
मेरा प्रेम सिर्फ़ मौन नहीं
मुखरता में भी मौन हुआ जाता है
और मौन मे भी मुखरता होती है
मगर उसके लिये प्रेमी की जरूरत होती है
और तुम सिर्फ़ आभास हो
कहो फिर कैसे सिर्फ़ अपने में जीयूँ तुम्हें
जिसे देखा नहीं , जाना नहीं ,व्यवहार नहीं किया जिससे
कहो कैसे तुम्हारे प्रेम में स्वंय को भुला दूँ
कहो कैसे तुम्हारे प्रेम मेंशब्दहीन, स्पंदनहीन ,भावहीन
सारहीन ,संज्ञाशून्य हो जाऊँ और गंध सी बह जाऊँ
देह से परे होना , देह को भुला देना
दूसरे के लिये जीना
खुद को मिटा देना
अस्तित्वहीन हो जाना
कहाँ जाना मैने
क्योंकि
कोई अस्तित्वबोध तो होता
कोई स्वप्न में तो मिला होता
कोई सलोना मुखडा तो दिखा होता
ये आभासी प्रेम की संज्ञायें और उनका अस्तित्व तब तक शून्य ही है
किसी के लिये खुद को मिटाने के लिये
कम से कम उनका एक बार साक्षात्कार तो जरूरी है ना
इसलिये कहती हूँ
तब तक कम से कम मेरे लिये तो……मेरा प्रेम स्वार्थी है …मोहन!
अगर इसे भी प्रेम की संज्ञा दी जाती है तो
अगर ऐसे भी प्रेम परिभाषित किया जाता है तो?
मैने तो जाना ही नहीं
क्या होता है प्रेम
मैने तो पहचाना ही नहीं
क्योंकि
मेरा प्रेम तुम्हारा होना माँगता है
तुमसे मिलन माँगता है
तुम्हारा श्रंगार मांगता है
तुमसे व्यवहार माँगता है
मेरा प्रेम भिखारी है
मेरा प्रेम दीनहीन है
मेरा प्रेम बलहीन है
मेरा प्रेम छदम नहीं
मेरा प्रेम सिर्फ़ विरह नही
मेरा प्रेम सिर्फ़ रुदन नही
मेरा प्रेम सिर्फ़ मौन नहीं
मुखरता में भी मौन हुआ जाता है
और मौन मे भी मुखरता होती है
मगर उसके लिये प्रेमी की जरूरत होती है
और तुम सिर्फ़ आभास हो
कहो फिर कैसे सिर्फ़ अपने में जीयूँ तुम्हें
जिसे देखा नहीं , जाना नहीं ,व्यवहार नहीं किया जिससे
कहो कैसे तुम्हारे प्रेम में स्वंय को भुला दूँ
कहो कैसे तुम्हारे प्रेम मेंशब्दहीन, स्पंदनहीन ,भावहीन
सारहीन ,संज्ञाशून्य हो जाऊँ और गंध सी बह जाऊँ
देह से परे होना , देह को भुला देना
दूसरे के लिये जीना
खुद को मिटा देना
अस्तित्वहीन हो जाना
कहाँ जाना मैने
क्योंकि
कोई अस्तित्वबोध तो होता
कोई स्वप्न में तो मिला होता
कोई सलोना मुखडा तो दिखा होता
ये आभासी प्रेम की संज्ञायें और उनका अस्तित्व तब तक शून्य ही है
किसी के लिये खुद को मिटाने के लिये
कम से कम उनका एक बार साक्षात्कार तो जरूरी है ना
इसलिये कहती हूँ
तब तक कम से कम मेरे लिये तो……मेरा प्रेम स्वार्थी है …मोहन!
अगर इसे भी प्रेम की संज्ञा दी जाती है तो
अगर ऐसे भी प्रेम परिभाषित किया जाता है तो?
20 टिप्पणियां:
वाह! सुन्दर बहुत सुन्दर | आभार
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (24-02-2013) के चर्चा मंच-1165 पर भी होगी. सूचनार्थ
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (24-02-2013) के चर्चा मंच-1165 पर भी होगी. सूचनार्थ
बहुत उम्दा पंक्तियाँ ..... वहा बहुत खूब
मेरी नई रचना
खुशबू
प्रेमविरह
:)
प्रेम जब समर्पित हो जाना चाहे तो समझो कान्हा मिल गया।
गहन भाव!!
बहुत खूब बधाई
मोहन सुन लें और साक्षात्कार करा ही दें शायद ... सुंदर रचना
निस्वार्थ प्रेम को तो जीतना ही है ,आशा बनाये रखें
http://guzarish66.blogspot.in/2012/11/blog-post_25.html
bahut sundar shabdon se prem ka astitv vyakt kiya...
आपकी ये रचना दार्शनिक भावनाओं को व्यक्त करती ह, आखिर 'मोहन' को किस स्वरूप में याद किया है? प्रेम तो प्रेम होता है, इसको परिभाषित करना गूँगे के गुड खाने जैसा है. अपने आप को मूर/अमूर्त किसी रूप में उलझाए रखिये, इसमें बहुत आनन्द है.
बहुत सुन्दर प्रेम की अभिव्यक्ति: ,आशा बनाये रखें
,आशा बनाये रखें
latest postमेरे विचार मेरी अनुभूति: मेरी और उनकी बातें
बहुत सुन्दर .....
सस्नेह
अनु
जिसे देखा नहीं, जिसे जाना नहीं, व्यवहार नहीं किया जिससे
कहो कैसे तुम्हारे प्रेम में स्वयं को भुला दूँ
...... निशब्द करती पंक्तियाँ...सम्पूर्ण रचना प्रेम कि नई परिभाषा सिखा गई...अतिसुन्दर!
प्रेम aur swarth to muje ek hi sikke k do pehalu malum hote hain... Prem khud pe aropit ho to swarth... Aur yadi swarth unse jud jaye to prem..
Atyev sundar rachana.
beautiful...
बहुत बढ़िया प्रस्तुति।
नया लेख :- पुण्यतिथि : पं . अमृतलाल नागर
सुन्दर और गहन भावों से सजी रचना ...
बधाई हो जी ...
सुन्दर भावाभिव्यक्ति.
आपकी प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी.
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