अब इसको कहूँ गज़ल या दिल के उदगार
कान्हा कान्हा रट रही सांसो की हर तार
मुरली वारो सांवरो बैठो मन के द्वार
मै बैरन बैठी रही करके बंद किवार
श्रद्धा पूजा अर्चना सब भावों के विस्तार
पूर्ण होते एक मे जो मिल जाते सरकार
एक बूँद एक घट एक ही आकार प्रकार
दृष्टि बदलने पर ही व्यापता ये संसार
मधुर मिलन की आस पर जीवन गयो गुज़र
कब आवेंगे श्यामधनी मिटे ना मन की पीर
श्याम रंग की झांई परे श्यामल तन मन होय
मेरी मन की भांवरों मे श्याम श्याम ही होय
कान्हा कान्हा रट रही सांसो की हर तार
मुरली वारो सांवरो बैठो मन के द्वार
मै बैरन बैठी रही करके बंद किवार
श्रद्धा पूजा अर्चना सब भावों के विस्तार
पूर्ण होते एक मे जो मिल जाते सरकार
एक बूँद एक घट एक ही आकार प्रकार
दृष्टि बदलने पर ही व्यापता ये संसार
मधुर मिलन की आस पर जीवन गयो गुज़र
कब आवेंगे श्यामधनी मिटे ना मन की पीर
श्याम रंग की झांई परे श्यामल तन मन होय
मेरी मन की भांवरों मे श्याम श्याम ही होय
15 टिप्पणियां:
adhyatmik gazal
शाश्वत प्रेम और मिलन की सुंदर रचना-----बहुत सुंदर
बधाई
बहुत सुन्दर!
दिल के उदगार ही तो ग़ज़ल होती है!
बढ़िया पोस्ट | कल २८/०२/२०१३ को आपकी यह पोस्ट http://bulletinofblog.blogspot.in पर लिंक की गयी हैं | आपके सुझावों का स्वागत है | धन्यवाद!
बहुत उम्दा - बहुत बधाई
मेरी नई रचना
ये कैसी मोहब्बत है
खुशबू
कुछ अलग सी पोस्ट अच्छी लगी ......
बहुत खूब
ये कैसी मोहब्बत है
bahut badhiya mn ki peer kab dukhi kar de pta nahi.......
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,सदर आभार.
bahut sundar...shyam my gazal...
बस प्यार ....
शाश्वत प्रेम तो यही है ... मुरली वाले का इंतज़ार या उससे मनुहार ...
बहुत ही सुन्दर प्रेममयी रचना ...
PREM KA SAKSHATKAR KARTI RACHNA...AAPKI KAVITAYEN BAHUT HI SARTHK RACHNAYEN HOTI HAIN...
प्रेम को यूँ ही साँवरे का आधार मिलता रहे..
kirsana LKILKA
एक टिप्पणी भेजें