दर्द का
रूप नही
रंग नहीं
आकार नहीं
फिर भी भासता है
अपना अहसास कराता है
और इस तरह कराता है
कि सहने वाला छटपटा जाता है
बस वो ही तो हो तुम भी
न रूप
न रंग
न आकार
मगर फिर भी हो
और होकर न होना
और ना होकर होने के बीच
जो खेल खेलते हो
उससे जो सहने वाला
छटपटाता है
उसे जानते हो
मगर फिर भी
सामने नही आते
तुम्हें चाहने वाले
तुम्हें मानने वाले
जब तुम्हारी चाहत में
खुद को मिटा देते हैं
बस तुझे ही अपना
सब कुछ मान बैठते हैं
तब भी कितने निष्ठुर हो ना तुम
जब चाहे उसकी
अग्निपरीक्षा ले लेते हो
अरे ! जिसने
सिर्फ़ तुम्हें चाहा
तुम्हें माना
अपना आप मिटा दिया
उसकी भी अग्निपरीक्षा लेना
कहाँ का न्याय हुआ
नहीं! तुम्हें कैसे
सुख स्वरूप कह दूँ
तुम तो पीडा हो
ऐसी पीडा जिसमें
सिर्फ़ पीडित ही
मजबूर होता है
वैसे देखा जाये
तुम अपने चाहने वालों को
और देते ही क्या हो
सिवाय दर्द के
छटपटाहट के
पता नहीं कैसे
कह देते हैं तुम्हें …सुख स्वरूप
मैं तो तुम्हें अब
यही कहूँगी
तुम हो दर्दस्वरूप
एक तरफ़ तो तुम
जो तुम्हें नही मानता
नास्तिक हो
उसके सामने बिना कारण ही
स्वंय को
प्रकट कर देते हो
बिना उसके पुकारे
बिना उसके चाहे
जैसे बस तुम्हारा सब कुछ
वो ही हो
फिर चाहे वो
तुम्हारी कितनी ही
अवहेलना करे
तो दूसरी तरफ़
जो रात दिन
तुम्हें पुकारा करते हैं
तुम ही जिनकी
आस हो, विश्वास हो
जीवन आधार हो
जिन्हें तुम्हें पुकारते पुकारते
एक जन्म नहीं
युग युगान्तर बीत गये
उनकी पुकार का
तुम पर ना असर होता है
तुम तो स्वंय में
निमग्न रहते हो
और
विपत्तियों को आदेश देते हो
बस इसके घर से
ना डेरा हटाना
इसने मुझे चाहा है ना
तो इसका फ़ल यही देता हूँ
इसका सब कुछ हर लेता हूँ
दुख पीडा का
सारा साम्राज्य
इसके अर्पित करता हूँ
यही तुम्हारा परम
उद्देश्य बन जाता है
मगर उसके सामने
ना आते हो
उसकी चाह ना पूरी करते हो
और मन ही मन मुस्काते हो
और सिद्ध करने के लिये बता दूँ
उदाहरण सहित
फिर चाहे परम मित्र
सुदामा हो या गोपियाँ
भरत हों या माँ यशोदा
गज हो या ग्राह
अजामिल हो या मीरा
एक एक कर
सबका आख्यान करती हूँ
और इसे प्रमाणित करती हूँ
कि तुम हो दर्दस्वरूप मोहन!
क्रमश: ……………
7 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर रचना -----.
कुन्ती ने कृष्ण से वरदान माँगा था-जहाँ जन्म लूँ, दुख जीवन के साथ रहे जो तुम्हें कभी भूलने न दे.
दुख में ही उनकी प्रतीति होती है .
पीड़ा पोषित प्रेम प्रतीक्षा
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (08-02-2014) को "विध्वंसों के बाद नया निर्माण सामने आता" (चर्चा मंच-1517) पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहतरीन अभिवयक्ति.....
यह दर्द ही तो उससे मिलने की कशिश बढाता है..सच में वही दर्द है वही दवा भी....बहुत उत्कृष्ट और भावमयी अभिव्यक्ति...
खूबसूरत कथ्य...
एक टिप्पणी भेजें