ईश्वर ' ही ' है या ' शी '
प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है
हम छोटी सोच के बाशिंदे
जानते हैं सिर्फ अपनी ही परिधि
जिसके अन्दर एक दुनिया वास करती है
उससे इतर भी कुछ है
जानने को न उत्सुक होते हैं
और अपनी छोटी सोच की लकुटिया ले
आक्षेपों की टिक टिक करते हैं
ओ खुदा , ईश्वर , अल्लाह
आज तेरे अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा हो गया है
आज तू भी स्त्री पुरुष जैसे लिंगों में बंट गया है
'ही' और 'शी' के मध्य विवाद छिड़ गया है
हँस रहा होगा न तू भी
सोच सोच
न मुझे जाना न पहचाना
बस विवाद को रूप दे दिया
अब तक तो अलग अलग धर्मों में बंटा रहा
और घृणा का कारण बनता रहा
लेकिन अब ?
अब क्या हश्र होगा इस बहस का
जहाँ उसे भी स्त्री और पुरुष बना दिया गया
सुना है
विदेशी तो निराकार को मानते हैं
यहाँ तक कि कुछ धर्मों में तो
निराकार की ही उपासना होती है
हिन्दू धर्म में ही उसे आकार दिया जाता है
ऐसे में उसमे स्त्री और पुरुष तत्व ढूंढना
या उद्बोधन पर प्रश्न खड़ा करना
बचकाना सा लगता है
क्योंकि
जो जानकार हैं वो जानते हैं
वो न स्त्री है न पुरुष
वो है ब्रह्म एक पूर्ण ब्रह्म
जिसका आदि है न अंत
फिर उसे पुरुष मानो या स्त्री
ये तो है तुम्हारे भावों का विस्तार
क्योंकि
वो तो है बस निराकार
जो होता है साकार भक्त की भावना से
जो धारण करता है रूप भक्त के भावानुसार
स्वीकार सको तो स्वीकार लो
ये बेकार की बहस में न उलझो
ईश्वर' ही' भी है और 'शी' भी
'जिस भाव से भजता मुझे उस भाव से भजता उसे '
करो जरा उसकी इस उक्ति पर विचार
अर्थात जिस रूप में आवाज़ दोगे उसमे आ जाएगा
तभी तो उसने
अर्धनारीश्वर का रूप धारण कर ये सिद्ध किया
चाहे 'ही ' कहो चाहे ' शी '
या ' ही ' न मान ' शी ' मानो
उसने तो कदम कदम पर खुद को प्रमाणित किया
भक्त की जिज्ञासानुसार रूप धारण किया
जाने कैसी सोच पनप रही है
हर बात पर आक्षेप कर रही है
ये अंधी दौड़ जाने कहाँ जाकर रुकेगी
जो ईश्वर को पुकारे जाने पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रही है
जानते हो न
भेडचालों के नतीजे तो सिफर ही हुआ करते हैं .........
प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है
हम छोटी सोच के बाशिंदे
जानते हैं सिर्फ अपनी ही परिधि
जिसके अन्दर एक दुनिया वास करती है
उससे इतर भी कुछ है
जानने को न उत्सुक होते हैं
और अपनी छोटी सोच की लकुटिया ले
आक्षेपों की टिक टिक करते हैं
ओ खुदा , ईश्वर , अल्लाह
आज तेरे अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा हो गया है
आज तू भी स्त्री पुरुष जैसे लिंगों में बंट गया है
'ही' और 'शी' के मध्य विवाद छिड़ गया है
हँस रहा होगा न तू भी
सोच सोच
न मुझे जाना न पहचाना
बस विवाद को रूप दे दिया
अब तक तो अलग अलग धर्मों में बंटा रहा
और घृणा का कारण बनता रहा
लेकिन अब ?
अब क्या हश्र होगा इस बहस का
जहाँ उसे भी स्त्री और पुरुष बना दिया गया
सुना है
विदेशी तो निराकार को मानते हैं
यहाँ तक कि कुछ धर्मों में तो
निराकार की ही उपासना होती है
हिन्दू धर्म में ही उसे आकार दिया जाता है
ऐसे में उसमे स्त्री और पुरुष तत्व ढूंढना
या उद्बोधन पर प्रश्न खड़ा करना
बचकाना सा लगता है
क्योंकि
जो जानकार हैं वो जानते हैं
वो न स्त्री है न पुरुष
वो है ब्रह्म एक पूर्ण ब्रह्म
जिसका आदि है न अंत
फिर उसे पुरुष मानो या स्त्री
ये तो है तुम्हारे भावों का विस्तार
क्योंकि
वो तो है बस निराकार
जो होता है साकार भक्त की भावना से
जो धारण करता है रूप भक्त के भावानुसार
स्वीकार सको तो स्वीकार लो
ये बेकार की बहस में न उलझो
ईश्वर' ही' भी है और 'शी' भी
'जिस भाव से भजता मुझे उस भाव से भजता उसे '
करो जरा उसकी इस उक्ति पर विचार
अर्थात जिस रूप में आवाज़ दोगे उसमे आ जाएगा
तभी तो उसने
अर्धनारीश्वर का रूप धारण कर ये सिद्ध किया
चाहे 'ही ' कहो चाहे ' शी '
या ' ही ' न मान ' शी ' मानो
उसने तो कदम कदम पर खुद को प्रमाणित किया
भक्त की जिज्ञासानुसार रूप धारण किया
जाने कैसी सोच पनप रही है
हर बात पर आक्षेप कर रही है
ये अंधी दौड़ जाने कहाँ जाकर रुकेगी
जो ईश्वर को पुकारे जाने पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रही है
जानते हो न
भेडचालों के नतीजे तो सिफर ही हुआ करते हैं .........
2 टिप्पणियां:
वो न स्त्री है न पुरुष
वो है ब्रह्म एक पूर्ण ब्रह्म
जिसका आदि है न अंत
फिर उसे पुरुष मानो या स्त्री
ये तो है तुम्हारे भावों का विस्तार
क्योंकि
वो तो है बस निराकार
जो होता है साकार भक्त की भावना से
जो धारण करता है रूप भक्त के भावानुसार ....... बस इसके आगे कुछ नहीं .... इसके आगे जो बोलते हैं वे मूर्ख है और अहमक़ भी ...... आपने चंद पंक्तियों में सारा दर्शन भर दिया है .... जिसे ना समझ आए उनके लिए मुझे सहानुभूति है .... धन्यवाद ॥
दर्शन के मौलिक प्रश्न
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