मोर वचन चाहे पड़ जाए फीको
संत वचन पत्थर कर लीको
तुमने ही कहा था न
तो आज तुम ही उस कसौटी के लिए
हो जाओ तैयार
बाँध लो कमरबंध
कर लो सुरक्षा के सभी अचूक उपाय
इस बार तुम्हें देनी है परीक्षा
तो सुनो
मेरा समर्पण वो नहीं
जैसा तुम चाहते हो
यानि
भक्त का सब हर लूं
तब उसे अपने चरणों की छाँव दूँ
यानी मान अपमान , रिश्ते नाते, धन, सब
लेकिन तुम्हारी इस प्रवृत्ति की
मैं नहीं पुजारी
और सुनो
मेरा प्रेम हो या व्यवहार
सब आदान प्रदान पर ही निर्भर करता है
मुझे चाहिए हो तो पूरे
साक्षात् सामने
जो बतिया सके
मेरे प्रश्नों के उत्तर दे सके
साथ ही
खुद को पाने की कोई शर्त न रखे
कि
सब कुछ छोडो तो मिलोगे
सुनो
मैं नहीं छोडूंगी कुछ भी
और तुम्हारे संतों का ही कथन है
तुम कहते हो
जो मेरी तरफ एक कदम बढाता है
मैं उसकी तरफसाठ
तो यही है मेरा कदम प्रश्न रूप में
अब बोलो
क्या उतर सकोगे इस कसौटी पर खरा
कर सकोगे उनके वचनों को प्रमाणित
क्योंकि
मज़ा तो तब है
जब गृहस्थ धर्म निभाते हुए बुद्ध हुआ जाए
तुमसे साक्षात्कार किया जाए
प्रेम का दोतरफा व्यवहार किया जाए
क्योंकि
गृहस्थ धर्म का निर्वाह ही मनुष्य धर्म है
जो तुमने ही बनाया है
और जो गृहस्थ धर्म से विमुख करे
वो मेरा ईश्वर नहीं हो सकता
जो सिर्फ खुद को चाहने के स्वार्थ से बंधा रहे
वो मेरा ईश्वर नहीं हो सकता
मेरा ईश्वर तो निस्वार्थी है
मेरा ईश्वर तो परमार्थी है
मेरा ईश्वर तो अनेकार्थी है
मेरे लिए तुम हो तो हो
नही हो तो नहीं
ये शर्तों में बंधा अस्तित्व स्वीकार्य नहीं मुझे तुम्हारा ... ओ मोहना !!!
4 टिप्पणियां:
बोलो मोहना.
सब नियम बनाये तो स्वयं को भी तो निभाने जैसा बनाओ.
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल रविवार (25-09-2016) के चर्चा मंच "शिकारी और शिकार" (चर्चा अंक-2476) पर भी होगी!
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरे लिए तुम हो तो हो
नही हो तो नहीं
ये शर्तों में बंधा अस्तित्व स्वीकार्य नहीं मुझे तुम्हारा ... ओ मोहना !!!
prem ka mool to yahi hona chahiye
मोहना को भी अपनी ही शर्तों में बाँध दिया .... ये प्रीत की लड़ाई है :)
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