ईश्वर होने और बनाए जाने में फर्क होता है
 
नहीं किये तुमने कोई चमत्कार
 
ये जो तप की शक्ति से प्राप्त शक्तियों का
 
असल में तो तुम्हारे द्वारा किये गए अनुसंधानों
 
जिस लगन मेहनत और एकाग्रता की जरूरत होती है
 
हाँ , किये प्राप्त तुमने अलौकिक शस्त्र
 
और प्राप्त नहीं, बनाए तुमने
 
और बना दिया तुम्हें ज़माने ने ईश्वर
 
बरसों से उठते मन के गुबार को
 
यहाँ जो भी कुछ अलग कर देता है
 
जो सामान्य की श्रेणी से परे हो
 
ईश्वर की श्रेणी में स्थापित कर दिया जाता है
 
हाँ , था तुममे वाक् चातुर्य
 
दूरदर्शी , समयानुसार निर्णय लेने वाला चरित्र
 
तो क्या इतने सबसे हो जाते हो भगवान
 
तो क्या कोई पहुँच पाया तुम्हारे मन तक
 
निष्काम योग की शिक्षा देना
 
कभी रह पाए तुम खुद निष्काम एक भी पल
 
जिसमे संभव ही नहीं था निष्काम रहना
 
आज ये पाना लक्ष्य है तो कल वो
 
तो क्या वो कामना की श्रेणी में नहीं आता था
 
खुद को साबित करने को तुमने
 
खंडित की बरसों से स्थापित विभीषिकाएँ
 
और एक कुशल चितेरे योजनाकार की तरह
 
करते रहे पार जीवन के संघर्ष रुपी
 
नदी , पर्वत , नालों और समंदर को
 
तो क्या इस कर्म में निष्कामता थी
 
हाँ बस तुम्हारा लक्ष्य दूसरा था
 
खुद को सर्वेसर्वा सिद्ध करने का
 
तो उसके लिए प्रेम को भी त्यागा
 
प्रेम और ममता सबसे बड़े बाधक होते हैं
 
उसने ही जीवन में मुकाम पाया
 
जब लक्ष्य पर दृष्टि होती है
 
छोटे मोटे कंटको की किसे परवाह होती है
 
जहाँ विश्व कल्याण का उद्देश्य भी निहित था
 
बस कर दिए गए प्रतिस्थापित
 
मगर नहीं थे तुम ईश्वर कृष्ण
 
अगर बात करें तुम्हारे प्रेम प्रसंगों की
 
तो वहाँ भी एक विभ्रम रचा गया
 
तुम्हारी पत्नी बेशक कहलायीं
 
समाज सुधारक की भूमिका में अवतरित हुए
 
जिसे किसी ने नहीं स्वीकारा
 
जिन्हें समाज ने निष्कासित किया
 
उनके उद्धार का भार स्वयं वहन किया
 
लेकिन उन्हें स्वतंत्रता प्रदान की
 
जी सकती थीं स्वयं का जीवन इच्छानुसार
 
स्वतंत्र थीं जीवन यापन हेतु
 
चूंकि तुम्हें दे दिया था ईश्वर का दर्जा
 
तो जरूरी था सब तुम्हारे माथे मढ़ना
 
वर्ना कृष्ण नहीं थे तुम ईश्वर
 
तुम्हारे रूप के चर्चे खूब हुए
 
इसी रूप से यदि कोई आकर्षित हुआ
 
किसी ने तुम्हें अपना मान लिया
 
बताओ तो भला इसमें तुम्हारा क्या दोष हुआ
 
आज भी फिल्मों के नायकों की तरफ
 
तुम्हारे रूप और चंचलता पर
 
तो भला इसमें क्या नया हुआ
 
लेकिन कहीं कोई उठा न दे प्रश्न
 
और स्थापित करने को मान्यताएं
 
जरूरी होता है ईश्वर सिद्ध करना
 
मगर कृष्ण तुम नहीं थे ईश्वर
 
क्या हुआ जो हुई तुम्हारी कोई प्रेयसी
 
कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने हेतु
 
दिया तो ये सन्देश था तुमने
 
भावना से बड़ा कर्तव्य होता है
 
लेकिन जब तुम्हें सिद्ध करना था ईश्वर
 
जरूरी थी तुम्हारी प्रेममयी छवि स्थापित करनी
 
वर्ना कृष्ण नहीं थे तुम ईश्वर
 
करुणा और दया को बनाकर हथियार
 
जहाँ धर्म और अधर्म महज दो कठपुतलियां थीं
 
जिनकी रास तुम्हारे हाथ थी
 
ये था तुम्हारा सम्पूर्ण व्यक्तित्व
 
जहाँ परदे के पीछे भी तुम थे और आगे भी
 
चीजों को अपने पक्ष में करना तुम्हें आता था
 
जिसके आगे सारा जहान नतमस्तक था
 
वरदान और अभिशाप तो महज दो खिलौने हैं
 
जिन्हें कुछ भक्तिवादी कट्टरपंथियों ने
 
अपनी सुविधानुसार घुमाया है
 
वर्ना थे तुम अति साधारण इंसान ही
 
सिर्फ अपनी मेहनत लगन एकाग्रता और कौशल से
 
और विशिष्ट यहाँ पूजनीय होता है
 
इसे भी चाहिए दोषारोपण को एक बुत
 
और तुमसे बेहतर बुत कौन सा होता भला
 
आसान हो जाता है उसका जीना फिर
 
जो होता है ईश्वर की इच्छा से होता है
 
या कृष्णा की इच्छा से होता है
 
आज भी तर्क और कुतर्कों के मध्य
 
फंसा खड़ा है तुम्हारा अस्तित्व
 
जहाँ तुम खुद से ही हो चुके हो निर्वासित
 
पूज्य बनाना सबसे सुगम कृत्य था
 
वो विकारों से मुक्त हो पाए
 
आम इंसान का जीवन तो सभी जीते हैं
 
तुमने कुछ विरल कार्य कर चौंका दिया
 
जैसे सुदर्शन चक्र धारण करना
 
और उसका फिर अंतर्ध्यान हो जाना
 
नहीं था ये कोई जादू या दांव पेंच
 
इस शस्त्र का प्रयोग और आह्वान दोनों ही
 
जैसे मिसाइल कब और कहाँ दागनी है
 
फिर कैसे मानूं तुम्हें ईश्वर
 
जब तुमने उस समय विज्ञान को मुट्ठी में कर
 
ये तो तुम्हें तुम्हारी गलतियों से मुक्त करने को
 
आने वाला कल न मांग ले कहीं जवाब
 
हाँ , कहे जा सकते थे महामानव
 
मानवता के कल्याण हेतु किये तुमने अनेक कृत्य
 
मगर सब पर चढ़ा धर्म की पट्टी
 
आज एक नेत्रहीन समाज के पुरोधा बेच रहे हैं तुम्हें गली गली
 
कितने सस्ते हो गए हो तुम !!!
 
तुम्हारे ईश्वर होने न होने का 
फिर भी प्रश्न उठता रहा 
और शायद युगों तक उठता रहे 
मगर 
 
नकारा नहीं जा सकता तुम्हारा होना 
 
तुम्हारे देवतुल्य कर्म या निष्कामता 
 
फिर चाहे कितना ही कहा जाता रहे 
 
"कृष्ण तुम नहीं थे ईश्वर"
 
"तुम्हारा होना ही तुम्हारी स्वीकार्यता है" 
 
खिले हैं तुम्हारे होने के रंग बिरंगे सुमन 
 
कृष्णा-गोविन्द-माधव-मुरारी-गिरधारी-बनवारी