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सोमवार, 3 सितंबर 2018

कृष्ण तुम नहीं थे ईश्वर



कृष्ण तुम नहीं थे ईश्वर
ईश्वर होने और बनाए जाने में फर्क होता है
नहीं किये तुमने कोई चमत्कार
ये जो तप की शक्ति से प्राप्त शक्तियों का
मचता रहा हाहाकार
असल में तो तुम्हारे द्वारा किये गए अनुसंधानों
का था प्रतिफल
तो क्या अनुसंधान के लिए
जिस लगन मेहनत और एकाग्रता की जरूरत होती है
वो किसी तप से कम होती है
हाँ , किये प्राप्त तुमने अलौकिक शस्त्र
और प्राप्त नहीं, बनाए तुमने
करके नए नए प्रयोग
और बना दिया तुम्हें ज़माने ने ईश्वर
सिर्फ इसी दम पर
वर्ना तो तुम भी थे
महज एक सामान्य इंसान ही


नहीं कृष्ण
नहीं, नकार नहीं रही
बरसों से उठते मन के गुबार को
थोड़ी राहत मिली है
तब जाकर तुम्हें समझने की
कोशिश शुरू की है
चलन है ये मेरे देश का
यहाँ जो भी कुछ अलग कर देता है
जो सामान्य की श्रेणी से परे हो
ईश्वर की श्रेणी में स्थापित कर दिया जाता है


हाँ , था तुममे वाक् चातुर्य
कुशल राजनीतिज्ञ
एक श्रेष्ठ योजनाकार
दूरदर्शी , समयानुसार निर्णय लेने वाला चरित्र
तो क्या इतने सबसे हो जाते हो भगवान
और यदि हुए भी
तो क्या कोई पहुँच पाया तुम्हारे मन तक


हाँ कृष्ण आसान था
निष्काम योग की शिक्षा देना
मगर सोचो ज़रा
कभी रह पाए तुम खुद निष्काम एक भी पल
तुम्हारा पूरा जीवन
एक संघर्षों का पर्वत बना
जिसमे संभव ही नहीं था निष्काम रहना
आज ये पाना लक्ष्य है तो कल वो
तो क्या वो कामना की श्रेणी में नहीं आता था
खुद को साबित करने को तुमने
तोड़ीं अनेक मर्यादाएं
खंडित की बरसों से स्थापित विभीषिकाएँ
और एक कुशल चितेरे योजनाकार की तरह
योजनाबद्ध तरीके से
करते रहे पार जीवन के संघर्ष रुपी
नदी , पर्वत , नालों और समंदर को
तो क्या इस कर्म में निष्कामता थी
नहीं कृष्ण
तुम भी थे आम जन
वैसे ही जैसे हम हैं
हाँ बस तुम्हारा लक्ष्य दूसरा था
खुद को सर्वेसर्वा सिद्ध करने का
तो उसके लिए प्रेम को भी त्यागा
और ममता को भी
क्योंकि
प्रेम और ममता सबसे बड़े बाधक होते हैं
आगे बढ़ने के मार्ग पर
जिसने इनसे पार पाया
उसने ही जीवन में मुकाम पाया
बस वो ही तुमने किया
जब लक्ष्य पर दृष्टि होती है
तब मार्ग में आने वाले
छोटे मोटे कंटको की किसे परवाह होती है
जीवन रेशम का बिस्तर नहीं
जानते थे तुम
इसलिए
चुनी तुमने कठिन राह
जहाँ विश्व कल्याण का उद्देश्य भी निहित था
तो तुम्हारा अपना भी
यही होता है ईश्वरीय गुण
बस कर दिए गए प्रतिस्थापित
मगर नहीं थे तुम ईश्वर कृष्ण

अगर बात करें तुम्हारे प्रेम प्रसंगों की
तो वहाँ भी एक विभ्रम रचा गया
सोलह हजार एक सौ रानियाँ
तुम्हारी पत्नी बेशक कहलायीं
लेकिन यहाँ भी तुम
समाज सुधारक की भूमिका में अवतरित हुए
जिसे किसी ने नहीं स्वीकारा
जिन्हें समाज ने निष्कासित किया
उनके उद्धार का भार स्वयं वहन किया
उनकी सिर्फ सरपरस्ती की
लेकिन उन्हें स्वतंत्रता प्रदान की
जी सकती थीं स्वयं का जीवन इच्छानुसार
स्वतंत्र थीं जीवन यापन हेतु
सम्बन्ध बनाने हेतु
चूंकि तुम्हें दे दिया था ईश्वर का दर्जा
तो जरूरी था सब तुम्हारे माथे मढ़ना
वर्ना कृष्ण नहीं थे तुम ईश्वर

तुम्हारे रूप के चर्चे खूब हुए
इसी रूप से यदि कोई आकर्षित हुआ
किसी ने तुम्हें अपना मान लिया
बताओ तो भला इसमें तुम्हारा क्या दोष हुआ
आज भी फिल्मों के नायकों की तरफ
आकर्षित होती हैं लडकियाँ
फिर उस युग में यदि
तुम्हारे रूप और चंचलता पर
सारा संसार आसक्त हुआ
तो भला इसमें क्या नया हुआ
लेकिन कहीं कोई उठा न दे प्रश्न
और स्थापित करने को मान्यताएं
जरूरी होता है ईश्वर सिद्ध करना
मगर कृष्ण तुम नहीं थे ईश्वर

क्या हुआ जो हुई तुम्हारी कोई प्रेयसी
छोड़ दिया तुमने उसे भी
कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने हेतु
दिया तो ये सन्देश था तुमने
भावना से बड़ा कर्तव्य होता है
लेकिन जब तुम्हें सिद्ध करना था ईश्वर
तो मूलतत्व नकार दिया गया
जरूरी थी तुम्हारी प्रेममयी छवि स्थापित करनी
वर्ना कृष्ण नहीं थे तुम ईश्वर

करुणा और दया को बनाकर हथियार
तुमने रच दिया महाभारत
जहाँ धर्म और अधर्म महज दो कठपुतलियां थीं
जिनकी रास तुम्हारे हाथ थी
जैसे चाहे घुमाते रहे
अपने कौशल के बल पर
नचाते रहे
ये था तुम्हारा सम्पूर्ण व्यक्तित्व
जहाँ परदे के पीछे भी तुम थे और आगे भी
चीजों को अपने पक्ष में करना तुम्हें आता था
यही वो रणकौशल था
जिसके आगे सारा जहान नतमस्तक था


नहीं कृष्णा
वरदान और अभिशाप तो महज दो खिलौने हैं
जिन्हें कुछ भक्तिवादी कट्टरपंथियों ने
अपनी सुविधानुसार घुमाया है
वर्ना थे तुम अति साधारण इंसान ही
सिर्फ अपनी मेहनत लगन एकाग्रता और कौशल से
बन गए विशिष्ट
और विशिष्ट यहाँ पूजनीय होता है
देवतुल्य होता है
ये मानव है
इसे भी चाहिए दोषारोपण को एक बुत
और तुमसे बेहतर बुत कौन सा होता भला
आसान हो जाता है उसका जीना फिर
ये कहकर
जो होता है ईश्वर की इच्छा से होता है
या कृष्णा की इच्छा से होता है
जबकि
तुम ईश्वर नहीं थे कृष्ण


आज भी तर्क और कुतर्कों के मध्य
फंसा खड़ा है तुम्हारा अस्तित्व
ये है आज का सच
जहाँ तुम खुद से ही हो चुके हो निर्वासित
क्योंकि
पूज्य बनाना सबसे सुगम कृत्य था
क्योंकि
संभव ही नहीं
जो यहाँ उत्पन्न हो
वो विकारों से मुक्त हो पाए
जो कामना मुक्त रह पाए
आम इंसान का जीवन तो सभी जीते हैं
तुमने कुछ विरल कार्य कर चौंका दिया
जैसे सुदर्शन चक्र धारण करना
और उसका फिर अंतर्ध्यान हो जाना
नहीं था ये कोई जादू या दांव पेंच
बस तुम्हारा विज्ञान था
जिसमे तुम जानते थे
इस शस्त्र का प्रयोग और आह्वान दोनों ही
जैसे मिसाइल कब और कहाँ दागनी है
फिर कैसे मानूं तुम्हें ईश्वर
जब तुमने उस समय विज्ञान को मुट्ठी में कर
चमत्कृत किया जन जन
ये तो तुम्हें तुम्हारी गलतियों से मुक्त करने को
बना दी गयी अवधारणाये
कि
आने वाला कल न मांग ले कहीं जवाब
तुमसे या इतिहासकार से
वर्ना न कल न आज
कृष्ण तुम नहीं थे ईश्वर


हाँ , कहे जा सकते थे महामानव
मानवता के कल्याण हेतु किये तुमने अनेक कृत्य
मगर सब पर चढ़ा धर्म की पट्टी
कर दिया गया नेत्रहीन
आज एक नेत्रहीन समाज के पुरोधा बेच रहे हैं तुम्हें गली गली
कितने सस्ते हो गए हो तुम !!!

तुम्हारे ईश्वर होने न होने का
फिर भी प्रश्न उठता रहा
और शायद युगों तक उठता रहे
मगर
कारण चाहे जो रहा हो
हों तुम ईश्वर या मानव
नकारा नहीं जा सकता तुम्हारा होना
नकारे नहीं जा सकते
तुम्हारे देवतुल्य कर्म या निष्कामता
फिर चाहे कितना ही कहा जाता रहे
"कृष्ण तुम नहीं थे ईश्वर"
क्योंकि
"तुम्हारा होना ही तुम्हारी स्वीकार्यता है"
आस्था के उपवन में
खिले हैं तुम्हारे होने के रंग बिरंगे सुमन
तो जन्मदिन मुबारक
कृष्णा-गोविन्द-माधव-मुरारी-गिरधारी-बनवारी







1 टिप्पणी:

radha tiwari( radhegopal) ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (05-09-2018) को "शिक्षक दिवस, ज्ञान की अमावस" (चर्चा अंक-3085) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी