न जाने कौन था वो
जिसने आवाज़ दी
नाम लेकर - वंदना
जाने स्वप्न था कोई
या थी कोई कशिश
इस जन्म या उस जन्म की
यादों का न कोई शहर मिला
यात्रा के न पदचिन्ह दिखे
मैं ख़ामोशी की सीढ़ी चढ़ गयी
कौन सा सिरा पकडूँ
जो तार से तार जुड़े
पता चले किसकी प्रीत की परछाइयाँ लम्बवत पड़ीं
न आवाज़ पहचान का सबब बनी
न किसी चेहरे ने आकार लिया
कशमकश में घडी बीत गयी
और आँख खुल गयी
अब रूह सफ़र पर है
जाने किससे मिलन की आस में
'उस पार से आती है सदा मेरे नाम की'
आह! उमगता है आल्हाद
सोचती हूँ
कहीं वो आवाज़ देने वाले तुम तो न थे ... मोहना
प्रीत बावरी ने पाँव में पहने हैं बिछुए तेरे नाम के
तो ख्यालों का बागी होना लाजिमी है
फिर वो ख्वाब हो या हकीकत ...
1 टिप्पणी:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (01-09-2018) को "आंखों में ख्वाब" (चर्चा अंक-3081) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेई जी को नमन और श्रद्धांजलि।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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