मेरी स्मृति का आकाश अब रिक्त है
लिखनी होगी नयी इबारत फिर से
नव तरु नव पल्लव नव शिशु सम
मैं भी जी जाऊँ फिर से
अपने पुनर्जन्म की प्रक्रिया की साक्षी हूँ मैं
कर रही हूँ अपने आकाश का स्वयं निर्माण
प्रेम और शांति केवल दो विकल्पों से कर रही हूँ नया ब्रह्मांड तैयार
ये समय है 'स्व' के उत्स का
बिंदु से सिंधु
और
सिंधु से बिंदु
तक की यात्रा ही
मेरा परिमार्जन है
अब अनहद नाद से गुंजारित हैं मेरी दसों दिशाएं
हे पृथ्वी अग्नि जल वायु आकाश
समस्त ब्रह्मांड की चेतना का आधार मेरी पीठ है
6 टिप्पणियां:
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०२-१०-२०२१) को
'रेत के रिश्ते' (चर्चा अंक-४२०५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सुन्दर !
सुंदर रचना आदरणीय ।
वाह ! सुंदर आध्यात्मिक भाव ।
कर्म संदेश देती सुंदर रचना।
वाह! कर्म संदेश देती हुई बहुत सुन्दर रचना,
मेरी स्मृति का आकाश अब रिक्त है
लिखनी होगी नयी इबारत फिर से
नव तरु नव पल्लव नव शिशु सम
मैं भी जी जाऊँ फिर से
अपने पुनर्जन्म की प्रक्रिया की साक्षी हूँ मैं
कर रही हूँ अपने आकाश का स्वयं निर्माण
सुंदर भाव हैं, हमेशा की तरह बहुत बढ़िया, बहुत बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन। Om Namah Shivay Images
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