पेज

मेरी अनुमति के बिना मेरे ब्लॉग से कोई भी पोस्ट कहीं ना लगाई जाये और ना ही मेरे नाम और चित्र का प्रयोग किया जायेये

my free copyright

MyFreeCopyright.com Registered & Protected

शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

श्याम संग खेलें होली

कान्हा ओ कान्हा
कहाँ छुपा है श्याम सांवरिया
ढूँढ रही है राधा बावरिया
होली की धूम मची है
तुझको राधा खोज रही है
अबीर गुलाल लिए खडी है
तेरे लिए ही जोगन बनी है
माँ के आँचल में छुपा हुआ है
रंगों से क्यूँ डरा हुआ है
एक बार आ जा रे कन्हाई
तुझे दिखाएं अपनी रंगनायी
सखियाँ सारी ढूँढ रही हैं
रंग मलने को मचल रही हैं
कान्हा ओ कान्हा
कान्हा ओ कान्हा
तुझ बिन होली सूनी पड़ी है
श्याम रंग को तरस रही है
प्रीत का रंग आकर चढ़ा जा
श्याम रंग में सबको भिगो जा
प्रेम रस ऐसे छलका जा
राधा को मोहन बना जा
मोहन बन जाये राधा प्यारी
हिल मिल खेलें सखियाँ सारी
रंगों से सजाएँ मुखमंडल प्यारी
लाल रंग मुख पर लिपटाएँ
देख सुरतिया बलि बलि जायें
श्याम रंग यूँ निखर निखर जाये
श्यामल श्यामल सब हो जाये

16 टिप्‍पणियां:

रंजू भाटिया ने कहा…

श्याम रंग यूँ निखर निखर जाये
श्यामल श्यामल सब हो जाये..होली का रंग यूँ ही बरसता रहे होली मुबारक

limty khare ने कहा…

vah vah holi ko kis sundar tareke se prastut kiya hai aapne bahut he aacha laga padh kar

rashmi ravija ने कहा…

प्रेम रस ऐसे छलका जा
राधा को मोहन बना जा
मोहन बन जाये राधा प्यारी
बहुत सुन्दर....कान्हा को याद किये बिना होली क्या....

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

होली की शुभकामनाये, वन्दना जी !

Narendra Vyas ने कहा…

बहुत हटकर है आपकी रचना। हर बार कान्हा राधा को और उसकी सखियों को छेडता है, रंग लगाता है लेकिन, इस होली में कान्हा को राधा खुद अपनी सखियों के संग होली खेलने के लिये ढूँढ रही है और कान्हा माँ के आँचल में छुपा है। वाहजी! बेहतरीन भावाभिव्यक्ति!!

M VERMA ने कहा…

भक्ति और प्रेम का चटक रंग

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

vandana ji , teen baar nahin kai baar kahunga wah wah wah wah .............................

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

होली पर रंगकामनायें
कन्‍हैया बिन कैसे पायें

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

माँ के आँचल में छुपा हुआ है
रंगों से क्यूँ डरा हुआ है
एक बार आ जा रे कन्हाई
तुझे दिखाएं अपनी रंगनायी
सखियाँ सारी ढूँढ रही हैं
रंग मलने को मचल रही हैं
कान्हा ओ कान्हा

आपके गीत ने तो बरसाने की याद दिला दी!
बहुत ही समसामयिक और सटीक रचना है!

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

श्याम रंग यूँ निखर निखर जाये
श्यामल श्यामल सब हो जाये.
बेहतरीन,होली की शुभकामनाये.

बेनामी ने कहा…

"श्याम रंग यूँ निखर निखर जाये
श्यामल श्यामल सब हो जाये"
गोपियों की चाहत का सजीव चित्रण

हें प्रभु यह तेरापंथ ने कहा…

कान्हा ओ कान्हा
कहाँ छुपा है श्याम सांवरिया
ढूँढ रही है राधा बावरिया
होली की धूम मची है
तुझको राधा खोज रही है
अबीर गुलाल लिए खडी है
तेरे लिए ही जोगन बनी है
माँ के आँचल में छुपा हुआ है
रंगों से क्यूँ डरा हुआ है


जग के सभी व्यक्तियो मे कही ना कही बसा "कान्हा एवम राधा" की होली ढिठोली, प्रेम एवम भक्ती का दोहरा रुप आपकी इस कविता मे पढने को मिला, वही मॉ के आचल को वर्णित कर इस होली त्योहार को और पावनमय भक्तिमय बना देने की यह महान कला सिर्फ और सिर्फ् वन्दनाजी! आपही कर सकती है। अति सुन्दर पाठ ने हमे होली को प्रेम भक्तिमय भाव से मनाने मे अधिक प्रोहोत्सान मिलेगा।

बधाई सुन्दर रचना के लिए वन्दनाजी!

Udan Tashtari ने कहा…

श्याम रंग यूँ निखर निखर जाये
श्यामल श्यामल सब हो जाये.

-बहुत बेहतरीन!!


आप एवं आपके परिवार को होली मुबारक.

Pushpa Bajaj ने कहा…

बहुत सुंदर कहा है :
आओ देखें इक स्वप्न नया,
नई रचना हों, नई उम्मीदें,
छोटी-छोटी सी ख्वाहिशें हो,
हो अपनों की खुशियां जिनमें
ऐसा ही एक गुलिस्तान हमारा भी है जहाँ सारी कायनात के लिए शांति है सुख है

आइये आपका इंतजार है.

http://thakurmere.blogspot.com/

Satish Saxena ने कहा…

एक बढ़िया और रुकने को विवश करती अभिव्यक्ति के लिए शुभकामनायें !

लता 'हया' ने कहा…

शुक्रिया ,
देर से आने के लिए माज़रत चाहती हूँ ,
उम्दा पोस्ट .
accha prayas hai.