सखी री
पिया रूठ गए
मो से सांवरिया
रूठ गए
मोहे अकेला
छोड़ गए
विरह अगन का
दावानल जला गए
अब का से करूँ
शिकायत
का से कहूँ मैं
जिया की बात
कोऊ ना समझे
पीर
सखी री
प्रेम के सुलगते
सागर की
हर उठती -गिरती
लहरें
प्रेम अगन
बढाती हैं
कैसे बंधे
अब धीर
सखी री
वो यशोदा
का लाला
धोखा दे गया
भरे जोवन में
योगन बनाय गया
सखी का से कहूं
अब जिया की पीर
चैन मेरा
ले गया
भरे बाज़ार
धोखा दे गया
अब कैसे धरूँ
मैं धीर
सखी री
पिया रूठ गए
मो से सांवरिया
रूठ गए
17 टिप्पणियां:
बढ़िया .प्रस्तुति..... आभार.
अब हिंदी ब्लागजगत भी हैकरों की जद में .... निदान सुझाए.....
sundar rachna badhai
क्यों रूठ गए ?
पश्चाताप का स्वर अच्छा उभरा है रचना में ...
गोपी की पीड को बहुत सुंदरता से शब्दों में बाँधा है ....
विरह अगन का
दावानल जला गए
अब का से करूँ
शिकायत
का से कहूँ मैं
जिया की बात
कोऊ ना समझे
पीर
सखी री...
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बहुत सुन्दर रचना है!
वैसे भी मन की बात तो केवल
सखी से ही कही जा सकती है!
बहोत ही अच्छी प्रस्तुति
भावुक पंक्तियाँ।
bahut sudar prastuti...
again very good!!
बहुत ही भावपूर्ण रचना है .विरह की पीड़ा को आपने अभिव्यक्ति दी है.
बहुत ही भावपूर्ण रचना ....
मजा आ गया पढ़कर
प्रस्तुति के लिए बधाई
बहुत बढ़िया .
कृपया इसे भी पढ़े -http://www.ashokbajaj.com/2010/10/blog-post_03.html
जिया की पीर को बड़े मार्मिक शब्द दे दिए हैं...गोपियों की वेदना को अभिव्यक्त करती कविता
कमाल है ...बहुत बढ़िया रचना !
शुभकामनायें !!
ati uttam .
ताऊ पहेली ९५ का जवाब -- आप भी जानिए
http://chorikablog.blogspot.com/2010/10/blog-post_9974.html
भारत प्रश्न मंच कि पहेली का जवाब
http://chorikablog.blogspot.com/2010/10/blog-post_8440.html
so sweet...
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