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शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

नैसर्गिक संगीत कभी सुना है

हवा के बहने से
पत्ते के हिलने से
पैदा होता नैसर्गिक
संगीत कभी सुना है
सुनना ज़रा
कल- कल करती
नदी के बहने का
मधुर संगीत
फूल की पंखुड़ी
पर गिरती ओस की
बूँद का अनुपम संगीत
तितली की पंखुड़ी
के हिलने से पैदा होता
मनमोहक संगीत
सुना है कभी
सुनना कभी
कण -कण में व्याप्त
दिव्य संगीत की धुन
बिना आवाज़ का 
बहता प्रकृति का
अनुपम संगीत
 रोम- रोम 
को महका देगा
ह्रदय को 
प्रफुल्लित 
उल्लसित कर देगा
ब्रह्मनाद का आभास
करा जायेगा
तुझे तुझमे व्याप्त
ब्रह्म से मिला जायेगा
अनहद नाद बजा जायेगा

21 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

प्रकृति के सारे अंगों का स्वर अद्भुत है, कान लगा कर सुनिये तो।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

सुन रही हूँ इस कविता के माध्यम से और ब्रह्म के नैसर्गिक सुख को आत्मसात कर रही हूँ ... शब्द शब्द ब्रह्म को स्थापित कर रहे हैं ...

Kunwar Kusumesh ने कहा…

वंदना जी.
इधर आपके लेखन में माधुर्य बढ़ा है. क्यों और कैसे ये मैं नहीं जानता.माँ सरस्वती आपका साथ देती हुई नज़र आ रही हैं.नैसर्गिक संगीत की विभिन्न कोणों से काव्यात्मक व्याख्या बहुत खूबसूरत की है आपने. बधाई.

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

sari prakriti me usi anhad naad ka shashvat sangeet samahit hai ..
bas use anubhoot karne ki kuwwat chahiye..
swayam pravahit rachna.

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय वंदना जी.
नमस्कार !
काव्यात्मक व्याख्या बहुत खूबसूरत
ऐसा कमाल का लिखा है आपने कि पढ़ते समय एक बार भी ले बाधित नहीं हुआ और भाव तो सीधे मन तक पहुँच गए..
.........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

बेनामी ने कहा…

बिना आवाज़ का
बहता प्रकृति का
अनुपम संगीत
रोम- रोम
को महका देगा
ह्रदय को
प्रफुल्लित
उल्लसित कर देगा
--
बहुत सुन्दर कल्पना को सजाया है
आपने इस रचना में।

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

प्रकृति में व्याप्त संगीत का सुन्दर विश्लेषण किया है आपने.. सूक्ष्म अवलोकन है प्रकृति का.. एक संगीतमय कविता... मन झंकृत हो गया..

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत मधुर जी, धन्यवाद

शरद कोकास ने कहा…

संगीत उसी अनहद नाद की ही तलाश है लेकिन दुनिया में ऐसे बहुत से अवरोध हैं जो वहाँ तक पहुँचने ही नहीं देते ..वहीं लय टूट जाती है और ताल खत्म हो जाता है । जिन्दगी में अगर संगीत का सुख चाहिये तो उन अवरोधों को दूर करना ही होगा ।

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

वंदना जी, आपकी कविता में नैसर्गिक संगीत सी ही रूनझुन है।

---------
मोबाइल चार्ज करने के लाजवाब ट्रिक्‍स।
एग्रीगेटर: यानी एक आंख से देखने वाला।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अनहद नाद स बजने वाला संगीत बहुत कठिनाई से सुनने को मिलता है ....प्रकृति के संगीत को सुनने का प्रयास जारी है ...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अच्छी लगी यह कविता।

ASHOK BAJAJ ने कहा…

धन्य है .

Anupama Tripathi ने कहा…

सुंदर कविता -
सुंदर प्रकृति का एहसास कराती हुई -

Er. सत्यम शिवम ने कहा…

bhut hi sundarta se nature ke sabhi rango ko apni kavita me samet liya..............bhut hi sundar rachna

Kailash Sharma ने कहा…

कमाल की प्रस्तुति..हरेक शब्द का संगीत मन को मोहित कर गया. आभार

Rohit Singh ने कहा…

वाह क्या बात है। ये सारा संगीत रुक कर तल्लीन होकर सुना है कई बार। अब तो ये संगीत ध्वनि प्रदूषण के कारण शहर में तो आसानी से सुनाई नहीं देता, फिर भी जब बी मौका मिलता है तो तल्लीन होकर सुनता हूं। हां वो बह्म नाद नहीं सुना...वैसे भी हम पापियों को इतना पवित्र संगीत सुनाई नहीं देने वाला।

Dr.R.Ramkumar ने कहा…

दिव्य संगीत की धुन
बिना आवाज़ का
बहता प्रकृति का
अनुपम संगीत
रोम- रोम
को महका देगा

तुझे तुझमे व्याप्त
ब्रह्म से मिला जायेगा

दिव्य अहसास है इस गहराई में डूबना!!

nature7speaks.blogspot.com ने कहा…

bahut achcha varnan prakriti ka.jo prakriti kee bhasha jan le vo sab kuch parh sakta hai.sunder kavita

nature7speaks.blogspot.com ने कहा…

sunder prastuti. HAPPY NEW YEAR_2011

संत शर्मा ने कहा…

सुन्दर कविता |