आजकल तो
छुपे छुपे रहते हैं
अक्स खुद से भी
छुपाते हैं
डरते हैं
कोई बैरन कहीं
नज़र ना लगा दे
बताओ भला
कारे को भी कभी
कारी नज़र लगी है
सखी री कोई तो बताओ
कोई तो उन्हें आईना दिखाओ
प्यार करने वालों की
नज़र नहीं लगती
ये फलसफा उन्हें भी समझाओ
कहना उनसे ज़रा
घूंघट तो उठाएं
मोहिनी मूरत तो दिखाएं
आखिर अपनों से कैसी पर्दादारी?
छुपे छुपे रहते हैं
अक्स खुद से भी
छुपाते हैं
डरते हैं
कोई बैरन कहीं
नज़र ना लगा दे
बताओ भला
कारे को भी कभी
कारी नज़र लगी है
जो खुद नज़र का टीका हो
उसे भला नज़र कब लगती है सखी री कोई तो बताओ
कोई तो उन्हें आईना दिखाओ
प्यार करने वालों की
नज़र नहीं लगती
ये फलसफा उन्हें भी समझाओ
कहना उनसे ज़रा
घूंघट तो उठाएं
मोहिनी मूरत तो दिखाएं
आखिर अपनों से कैसी पर्दादारी?
39 टिप्पणियां:
खूबसूरत कह्विता... वास्तव में अपनों से... प्रेम में... परदे की जगह ही कहाँ है....
वाह सुन्दर भाव ...आखिर सच्चा प्रेम ऐसा ही होता है ...
बहुत खूब .. प्रेम में सच में कैसा परदा ... प्रेम में तो सब और प्रेम ही प्रेम दिखाई देता है ...
अपनों से कैसी पर्दादारी ....वाह वंदना जी , बहुत ही मासूम सी रचना ।
सुंदर भावों से भरी रचना.
जो खुद नज़र का टीका हो उसे भला नज़र कब लगती है ...kya baat hai
अति सुन्दर
और फिर नज़र जब लगती है तभी तो प्रेम होता है...
बहुत सुन्दर भाव
bahut khub...behad khubsurat bhav
prem ki abhivyakti...bahut khub
आज तो टिप्पणी मे यही कहूँगा कि बहुत उम्दा रचना है यह!
एक मिसरा यह भी देख लें!
दर्देदिल ग़ज़ल के मिसरों में उभर आया है
खुश्क आँखों में समन्दर सा उतर आया है
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 07- 06 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच --- चर्चामंच
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ।
bahut badhiya kavita...
बहुत बढ़िया !
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
नजर अपनों की ही ज्यादा लगती है वंदना जी , ऐसा लोग कहते हैं ...
सुन्दर गीत !
prayas itana sunder to anjam kitana sunder hoga ---
bahut achha srijan .shukriya ji .
आखिर अपनों से कैसी पर्दादारी,इस पंक्ति में आपने मुहब्बत की सारी फ़िलासफ़ी को उकेर कर रख दिया है। बधाई वन्दना जी।
apki kavitaye bahut pasand aayi
humare blog par bhi ek comment kar dijiye ;)
http://shayaridays.blogspot.com
'बताओ भला
कारे को भी कभी
कारी नज़र लगी है '
...............ह्रदय की गहराई से निकली भावपूर्ण मनमोहक रचना
आखिर अपनो से क्या पर्दादारी? वाकई...बहुत ख़ूब
आप का प्रयास हमेशा से ही सुन्दर रहताहै….वन्दना जी।
वाह ... बहुत ही बढि़या ...
अपनों से भी पर्दादारी...बहुत सुन्दर कोमल अहसास...सदैव की तरह एक बहुत सुन्दर प्रस्तुति..आभार
बहुत खूबसूरत रचना...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .प्रेम की नजर पडती है ,निहाल करती है इसीलिए कहा गया -तुम जिसपे नजर डालो उस दिल का खुदा हाफ़िज़ ...
बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला ,होता ही बज़र्बट्टू है ,ये बुरी नजर वाला .आभार आपकी रचनाशीलता का .अच्छी नजर का .
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .प्रेम की नजर पडती है ,निहाल करती है ।बे -हाल करती है -
तनिक कंकरी परत ,नैन होत बे -चैन,
उन नैननकी क्या दशा जिन नैनन में नैन .
सरल-सहज भावाभिव्यक्ति.सुन्दर रचना.
नज़र नहीं लगेगी . सुन्दर वर्णन
सुन्दर कविता
बधाई हो आपको - विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
घंूघट के पट खोल, तोहे पिया मिलेंगे
टाइप्स मामला लगता है यह तो।
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना! लाजवाब प्रस्तुती !
kya baat hai...vaah ...apno se kaisa pardaa...
घूँघट में क्या है नजर आने पर ही तो नजर लगेगी
सटीक प्रश्न उठाती अच्छी रचना वंदना जी.
सादर
श्यामल सुमन
+919955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
सवाल लाजिम है - बहुत खूब वन्दना जी.
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
सुंदर भावों से भरी रचना.
लीगल सैल से मिले वकील की मैंने अपनी शिकायत उच्चस्तर के अधिकारीयों के पास भेज तो दी हैं. अब बस देखना हैं कि-वो खुद कितने बड़े ईमानदार है और अब मेरी शिकायत उनकी ईमानदारी पर ही एक प्रश्नचिन्ह है
मैंने दिल्ली पुलिस के कमिश्नर श्री बी.के. गुप्ता जी को एक पत्र कल ही लिखकर भेजा है कि-दोषी को सजा हो और निर्दोष शोषित न हो. दिल्ली पुलिस विभाग में फैली अव्यवस्था मैं सुधार करें
कदम-कदम पर भ्रष्टाचार ने अब मेरी जीने की इच्छा खत्म कर दी है.. माननीय राष्ट्रपति जी मुझे इच्छा मृत्यु प्रदान करके कृतार्थ करें मैंने जो भी कदम उठाया है. वो सब मज़बूरी मैं लिया गया निर्णय है. हो सकता कुछ लोगों को यह पसंद न आये लेकिन जिस पर बीत रही होती हैं उसको ही पता होता है कि किस पीड़ा से गुजर रहा है.
मेरी पत्नी और सुसराल वालों ने महिलाओं के हितों के लिए बनाये कानूनों का दुरपयोग करते हुए मेरे ऊपर फर्जी केस दर्ज करवा दिए..मैंने पत्नी की जो मानसिक यातनाएं भुगती हैं थोड़ी बहुत पूंजी अपने कार्यों के माध्यम जमा की थी.सभी कार्य बंद होने के, बिमारियों की दवाइयों में और केसों की भागदौड़ में खर्च होने के कारण आज स्थिति यह है कि-पत्रकार हूँ इसलिए भीख भी नहीं मांग सकता हूँ और अपना ज़मीर व ईमान बेच नहीं सकता हूँ.
नूर ही नूर है कहाँ का ज़हूर।
उठ गया परदा अब रहा क्या है॥
रहने दे हुस्न का ढका परदा।
वक़्त-बेवक़्त झाँकता क्या है॥
.........................यगाना चंगेज़ी
bahut badhiya kavita
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