चंचल चंचल रे मना
काहे चंचल होय
श्याम की ब्रजमाधुरी तो
वृन्दावन में होय
धीरज धीरज रे मना
थोडा धीरज बोय
चाहे सींचे सौ घड़ा
ऋतु आवन फल होय
भागे भागे रे मना
काहे भागे रोये
श्याम सुख सरिता तो
मन आँगन में होय
काहे चंचल होय
श्याम की ब्रजमाधुरी तो
वृन्दावन में होय
धीरज धीरज रे मना
थोडा धीरज बोय
चाहे सींचे सौ घड़ा
ऋतु आवन फल होय
भागे भागे रे मना
काहे भागे रोये
श्याम सुख सरिता तो
मन आँगन में होय
निर्मल निर्मल रे मना
निर्मल मन जो होए
श्याम प्रेम का वास तो
वा तन में ही होय
21 टिप्पणियां:
पुराने शब्दों को लेकर सुन्दर गीत रचा है आपने.. बहुत बढ़िया...
सुन्दर भावों से रची सुन्दर रचना ..
भागे भागे रे मना
काहे भागे रोये
श्याम सुख सरिता तो
मन आँगन में होय
........ bahut hi bhawmay kerte ehsaas
भक्ति भाव के हिलोरों से भीगी रचना.
kya baat hai.........amazing
भक्ति रस से सराबोर दोहे पढ़वाने के लिए आभार!
सुन्दर भावों से रची सुन्दर अभिव्यक्ति....
सुन्दर एवं गेय भक्तिभाव से परिपूर्ण रचना।
आनंददायी।
सुन्दर, सरल, कोमल सी अभिव्यक्ति।
सूर और जायसी के युग में पहुच गए हम , गीत मनभावन है बधाई
सुन्दर भावों से रची सुन्दर रचना|
KHUBSURAT OR PYARI RACHA LIKHI HAI MAM APNE. . MAN PARSAN HO GYA. . MERA UTSAH BDHANE KE LIYE APKA BAHUT DHANYWAAD. . .
JAI HIND JAI BHARAT
शब्दों की झांझर यूँ बजी कि मन झूम उठा .बधाई.
बहुत मनभावन गेय प्रस्तुति !
सुन्दर है यह सूफियाना अन्दाज भी
अच्छी प्रस्तुति वंदना जी
सादर
श्यामल सुमन
+919955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
सार्थक सन्देश देती सुन्दर भावमयी प्रस्तुति..
बहुत सुंदर सरल सी रचना,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
भागे भागे रे मना
काहे भागे रोये
श्याम सुख सरिता तो
मन आँगन में होय ...
आन्तरिक भक्तिमय भावों की सहज प्रवाहमय सुन्दर रचना....
बहुत अच्छी कविता !
मन के बारे में बताती.
एक सलाह देना चाहूँगा
आपके ब्लॉग का बैक ग्राउंड सफ़ेद है, तो इस पे काला रंग के अक्षर ज्यादा सुकून देंगे आँखों को, नहीं तो ये आँखों में चुभते हुए से प्रतीत हो रहे हैं.
एक टिप्पणी भेजें