ललिता पूछे राधा से , ए राधा
कौन शरारत कर गया तेरे ख्वाबों में ,ख्वाबों में
आँख का अंजन बिखेर गया गालों पे-२-
ये चेहरा कैसे उतर गया ए राधा
दो नैनों में नीर कौन दीवाना भर गया ए राधा
ललिता पूछे राधा से ए राधा ...............
वो छैल छबीला आया था ओ ललिता -२-
मन मेरा भरमाया था ओ ललिता
मुझे प्रेम सुधा पिलाया था ओ ललिता
मेरी सुध बुध सब बिसराय गया वो छलिया
मेरा चैन वैन सब छीन गया री ललिता
ललिता पूछे राधा से ए राधा..................
वो मुरली मधुर बजाय गया सुन ललिता
वो प्रेम रस पिलाय गया ओ ललिता
मुझे अपना आप भुलाय गया ओ ललिता
मुझे मोहिनी रूप दिखाय गया ओ ललिता
बंसी की धुन सुनाय गया सुन ललिता
और चित मेरा चुराय गया वो छलिया
ललिता पूछे राधा से ए राधा ..............
अब ध्यानमग्न मैं बैठी हूँ सुन ललिता
उसकी जोगन बन बैठी हूँ सुन ललिता
ये कैसा रोग लगाय गया ओ ललिता
ये कैसा रास रचाए गया ओ ललिता
मोहिनी चितवन डार गया सुन ललिता
ये कैसी प्रीत सुलगाय गया वो छलिया
मुझे अपनी जोगन बनाय गया री ललिता
ललिता पूछे राधा से ए राधा ..............
अब हाथ छुडाय भाग गया वो छलिया
मुझे प्रेम का रोग लगाय गया वो छलिया
मेरी रूप माधुरी चुराय गया वो छलिया
मुझे कमली अपनी बनाय गया वो छलिया
अब कैसे धीरज बंधाऊं री ललिता
अब कैसे प्रीत पहाड़ चढाऊँ री ललिता
मोहे प्रीत की डोर से बाँध गया वो छलिया
मेरी सुध बुध सब बिसराय गया वो छलिया
ललिता पूछे राधा से ए राधा .................
21 टिप्पणियां:
वाह ... बहुत ही खूबसूरत भाव लिये सुन्दर प्रस्तुति ।
अब ध्यानमग्न मैं बैठी हूँ सुन ललिता
उसकी जोगन बन बैठी हूँ सुन ललिता
ये कैसा रोग लगाय गया ओ ललिता
ये कैसा रास रचाए गया ओ ललिता
मोहिनी चितवन डार गया सुन ललिता
ये कैसी प्रीत सुलगाय गया वो छलिया
मुझे अपनी जोगन बनाय गया री ललिता
ललिता पूछे राधा से ए राधा ..............
manmohini rachna
अपनी बांसुरी से तो मन मोह गया वो छलिया...
बहुत सुंदर...
खूबसूरत भाव ... अब तो राधा ध्यानमग्न हैं ...अच्छी प्रस्तुति
राधा ललिता के बीच सुन्दर वार्ता.. प्रेम में पगी.. प्रेम का रहस्य कौन जान सकता है...
सुन्दर सी अनुपम कृति।
prem ras se paripurn rachna ...bahut khub
prem ras se paripurn rachna ...bahut khub
बहुत बढ़िया रचना!
सभी छन्द बहुत खूबसूरत हैं!
Bahut,bahut sundar!
राधा के मनोभावों को सुन्दर अभिव्यक्ति दी है आपने. बधाई.
आज तो अलग ही रुप है...वाह!! अति सुन्दर!!
bahut hi achchha laga padhkar....abhar
आपने तो भक्तिरस के दरवाजे खोल रखे हैं आजकल ! शुभकामनायें !!
वाह, बहुत ही सुन्दर.
संयोग और वियोग श्रृंगार के दोनों पक्षों का निरूपण करती रचना .
सुन्दर रचना .
prem-maye rachna....har pankti sunder bhaav ke saath.
bahut sunder!!
सुन्दर प्रस्तुति वंदनाजी...साथ ही एक सुझाव भी आपके ब्लॉग का बेकग्राउण्ड कलर या फॉण्ट कलर परिवर्तित कीजिये...पढने में परेशानी हो रही है..धन्यवाद...
bahu hi sundar
वाह।
श्याम की तो महिमा ही निराली है,
आपकी पोस्ट बहुत मतवाली है।
जय श्री कृष्णा!
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